शारीरिक दिव्यांग को आरक्षण मिला है या आरक्षण के नाम पर मजाक हो रहा है।

सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : जिसके नाम से आरक्षण शब्द का शुरुआत हुआ वह दिव्यांग लेकिन आज अपने राज्य में दिव्यांग हो रहे हैं उपेक्षित इसको समझने के लिए आप को समझना होगा की दिव्यांग अधिकार अधिनियम 1995 एवं दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016 में क्या विशेष परिवर्तन हुआ अधिनियम 1995 9 प्रकार के दिव्यांग थे और तब आरक्षण 3 प्रतिशत था जोकि अधिनियम 2016 में बढ़कर 21 प्रकार के दिव्यांग हो गए प्रमुख रूप से आंख वाले दिव्यांग को 1% आरक्षण मिल गया पूर्ण रूप से उसमें दूसरा दिव्यांग सम्मिलित नहीं हो सकता है मुख्य बधिर को 1% मिल गया उसमें दूसरा दिव्यांग सम्मिलित नहीं हो सकता है एमडी को 1% मिल गया उसमें दूसरा दिव्यांग सम्मिलित नहीं हो सकता है जबकि अस्थि दिव्यांग को 1% प्राप्त हुआ उसमें 18 प्रकार के दिव्यांग को सम्मिलित कर लिया गया तो कभी भी शारीरिक दिव्यांग के साथ न्याय हो सकता है क्या सवाल मैं अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस और मेधा दिवस 3 दिसंबर से पहले भारत के सभी नागरिकों से पूछना चाहता हूं देश में आरक्षण (रिजर्वेशन) का मुद्दा सालों से चला आ रहा है। आजादी से पहले ही नौकरियों और शिक्षा में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण देने की शुरुआत कर दी गई थी। इसके लिए अलग-अगल राज्यों में विशेष आरक्षण के लिए आंदोलन होते रहे हैं। राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट और अब गुजरात में पाटीदारों (पटेल) ने आरक्षण की मांग उठाई है।  आपको बता रहा है देश में रिजर्वेशन के जुड़ी हर वो बात जो आप जानना चाहते हैं। आजादी के पहले प्रेसिडेंसी रीजन और रियासतों के एक बड़े हिस्से में पिछड़े वर्गों (बीसी) के लिए आरक्षण की शुरुआत हुई थी। महाराष्ट्र में कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति साहूजी महाराज ने 1901 में पिछड़े वर्ग से गरीबी दूर करने और राज्य प्रशासन में उन्हें उनकी हिस्सेदारी (नौकरी) देने के लिए आरक्षण शुरू किया था। यह भारत में दलित वर्गों के कल्याण के लिए आरक्षण उपलब्ध कराने वाला पहला सरकारी आदेश है। 1908 में अंग्रेजों ने प्रशासन में हिस्सेदारी के लिए आरक्षण शुरू किया। 1921 में मद्रास प्रेसिडेंसी ने सरकारी आदेश जारी किया, जिसमें गैर-ब्राह्मण के लिए 44 फीसदी, ब्राह्मण, मुसलमान, भारतीय-एंग्लो/ईसाई के लिए 16-16 फीसदी और अनुसूचित जातियों के लिए 8 फीसदी आरक्षण दिया गया। 1935 में भारत सरकार अधिनियम 1935 में सरकारी आरक्षण को सुनिश्चित किया गया। 1942 में बाबा साहब अम्बेडकर ने सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मांग उठाई। आरक्षण का उद्देश्य केंद्र और राज्य में सरकारी नौकरियों, कल्याणकारी योजनाओं, चुनाव और शिक्षा के क्षेत्र में हर वर्ग की हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए की गई।जिससे समाज के हर वर्ग को आगे आने का मौका मिले। सवाल उठा कि आरक्षण किसे मिले, इसके लिए पिछड़े वर्गों को तीन कैटेगरी अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में बांटा गया।

केंद्र के द्वारा दिया गया आरक्षण
वर्ग कितना आरक्षण
अनुसूचित जाति (SC) 15 %
अनुसूचित जनजाति (ST) 7.5 %
अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) 27 %
कुल आरक्षण 49.5 %
(नोट- बाकी 50.5 % आरक्षण जनरल कैटेगरी के लिए रखा गया, जो कि SC/ST/OBC के लिए भी खुला है) महाराष्ट्र में शिक्षा और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को 16% और मुसलमानों को 5% अतिरिक्त आरक्षण दिया गया। तमिलनाडु में सबसे अधिक 69 फीसदी आरक्षण लागू किया गया है। इसके बाद महाराष्ट्र में 52 और मध्यप्रदेश में कुल 50 फीसदी आरक्षण लागू है। 15(4) और 16(4) के तहत अगर साबित हो जाता है कि किसी समाज या वर्ग का शैक्षणिक संस्थाओं और सरकारी सेवाओं में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो आरक्षण दिया जा सकता है। 1930 में एच. वी. स्टोर कमेटी ने पिछड़े जातियों को ‘दलित वर्ग’, ‘आदिवासी और पर्वतीय जनजाति’ और ‘अन्य पिछड़े वर्ग’ (OBC) में बांटा था भारतीय अधिनियम 1935 के तहत ‘दलित वर्ग’ को अनुसूचित जाति और ‘आदिम जनजाति’ को पिछड़ी जनजाति नाम दिया गया।

 

 

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