सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : दिव्यांग व्यक्तियों को काफी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है बिहार के रोगी बात-बात पर दिल्ली वाले एम्स में न पहुंच जाएं, इसी वजह से पटना में भी एम्स खोला गया था. मगर पटना का एम्स गंभीर बीमारियों से पीड़ित बिहारवासियों की जरूरतों को आज तक पूरा नहीं कर पा रहा. उम्मीद लिये दूर-दराज से मरीज वहां पहुंचते तो हैं, पर निराशा ही हाथ लगती है. दर्द आज होता है और इलाज चार दिन बाद होता है. पर्चा बनवाने से लेकर इलाज पाने तक मरीज और उसके परिजन पिस कर रह जाते हैं. 12 बजे हो जाता है काउंटर बंद : एम्स में अगर कोई मरीज लाइन में लगा हो और घड़ी ने 12 बजा दिये तो समझ लीजिए उसका उस दिन इलाज संभव नहीं है. क्योंकि 12 बजे ही रजिस्ट्रेशन का काउंटर बंद हो जाता है. यह व्यवस्था न सिर्फ दूर-दराज से आने वालों को, बल्कि पटना शहर से भी पहुंचने वालों को परेशान करती है. एम्स प्रबंधन की तरफ से इस मामले में दो-टूक जवाब मिलता है कि डाक्टर कम हैं, सीमित संख्या में मरीजों का इलाज करना हमारी मजबूरी है. रेफर होते हैं गंभीर मरीज किफायती इलाज के लिए यहां रोजाना 1000 से 1200 मरीज ओपीडी में आते हैं. इनमें कई ऐसे मरीज हैं, जो सड़क दुर्घटना या फिर गंभीर बीमारी के शिकार होते हैं. भर्ती की सुविधा नहीं होने के चलते मरीजों को आईजीआईएमएस, पीएमसीएच या फिर प्राइवेट अस्पतालों में रेफर किया जा रहा है. रोजाना 15 से 20 मरीजों को इमरजेंसी वार्ड की सुविधा नहीं होने के चलते रेफर कर दिया जाता है. इलाज होगा बाद में रजिस्ट्रेशन के बाद मरीजों को किस डॉक्टर के पास भेजा जायेगा, यह आंतरिक चिकित्सा विभाग तय करता है. ऐसे में मरीजों को रजिस्ट्रेशन के बाद फिर से चिकित्सा विभाग में भी लाइन लगाना पड़ता है. दोनों लाइनों की जंग जीतने के बाद ही डॉक्टर के दर्शन होते हैं. रोग गंभीर हुआ तो डॉक्टर इलाज के बदले जांच लिख देता है. जिसमें दो दिन और लग जाते हैं. तब जाकर इलाज शुरू होता है. इमरजेंसी के लिए इंतजार एम्स में गंभीर मरीजों को इमरजेंसी वार्ड के लिए अभी लंबा इंतजार करना पड़ेगा. क्योंकि, वार्ड में न तो ऑक्सीजन पाइप लाइन बिछाने का काम पूरा हुआ है और न ही ओपन सर्जरी मशीन लायी गयी है. इसके अलावा डॉक्टरों की भी काफी कमी है. सर्जरी के उपकरण व वार्ड में फिनिशिंग, लाइट, पंखे, एसी आदि सभी काम अधूरे हैं. इन्हें दुरुस्त करने में दो माह का वक्त लग सकता है. क्या कहते हैं मरीज रजिस्ट्रेशन काउंटर पर तीन घंटे लाइन में लगने के बाद पर्ची मिली. वहां पर्ची पर मुहर लगाने और डॉक्टर से मिलने में मुझे पांच घंटे का समय लग गया. आंतरिक चिकित्सा विभाग में पंखे व एसी की व्यवस्था भी नहीं की गयी है. -मनोज कुमार, मरीज पैर में चोट लग जाने के कारण मैं अपने पोते अमन कुमार को लेकर आया हूं. यहां पहले दिन काउंटर बंद हो गया, तो दूसरे दिन रजिस्ट्रेशन हुआ और डॉक्टर ने एक्स-रे कराने को लिखा. इलाज कराने में चार दिन लग गये।
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