प्रेरणा स्रोत है दिव्यांगों के लिए रत्नेश कुमार

 

सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : भारत में दिव्यांगों की संख्या बहुतायत है जिसमें से दो प्रतिशत से भी कम पढ़े-लिखे |उसमें भी वैसे राज्य जो आज की प्रक्रिया में कहने के लिए साक्षरता में पिछड़े हुए हैं , निकलकर दिल्ली के विश्वविद्यालय मैं डिपार्टमेंट ऑफ लाइब्रेरी एंड इंफॉर्मेशन साइंस जो कि दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत आता है से लाइब्रेरी साइंस की उपाधि प्राप्त करने एवं इंडियन लाइब्रेरी एसोसिएशन दिल्ली के द्वारा वर्ष 2004-05 का सर्वप्रथम एकमात्र विजेता जिसे वेद नायकी फैलोशिप का खिताब दिया गया था| यह एकमात्र ऐसे दिव्यांग हैं जो आज के समय में संघर्षशील रहते हुए, अपने लक्ष्य तक पहुंचे हैं| जी हां, आपने सही सुना, आप जानना चाहते हैं इस व्यक्ति को, श्री रत्नेश कुमार दिव्यांग बिहार राज्य संबंधित है, जिन्होंने वर्ष 2013 की DSSSB द्वारा आयोजित लाइब्रेरियन की परीक्षा पास कर आज दिल्ली के वैसे स्कूल में पोस्टेड हैं जहां की लाइब्रेरी की बेहद खराब हालत में थी , यहां पर इन्होंने अपने योगदान से पुस्तकालय को जीवंत कर दिया और बच्चों में ऐसी ऊर्जा का संचार किया जिससे छठी से बारहवीं तक के बच्चों में एक एनर्जी कुछ करने की क्षमता का विकास और ऐसे में इन बच्चों इन बच्चों में भी लाइब्रेरी साइंस को पढ़ने की इच्छा और उसके प्रति कार्यों को समझने की इच्छा दिखाई देने लगी| जी हां यह बात कर रहे हैं राजकीय सर्वोदय बाल विद्यालय रमेश नगर नई दिल्ली जहां दिव्यांग लाइब्रेरियन के पद पर नियुक्त है | राज्य सरकार के नोडल अधिकारियों ने भी इनकी प्रशंसा की है शिक्षा अधिकारी एवं विभिन्न पदाधिकारियों ने सराहना की है और कहा है एक दिव्यांग व्यक्ति से इतनी उम्मीद नहीं की जा सकती थी लेकिन आप ने कर दिखाया|

इनकी इस प्रशंसनीय कार्यों को देखते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर पुस्तकालय विभाग डॉक्टर शैलेंद्र कुमार एवं इंडियन लाइब्रेरी एसोसिएशन दिल्ली की ओर से होने जा रहे नेशनल सेमिनार में जोकि 14 सितंबर को नई दिल्ली प्रगति मैदान में होने जा रही है जिसमें इस दिव्यांग व्यक्ति अर्थात रत्नेश कुमार को इस नेशनल कॉन्फ्रेंस को अटेंड कर ,डॉ एस आर रंगनाथन के 5 नियम के उत्थान के लिए कैसे विकसित किया जाए विद्यालय स्तर पर विभाग स्तर पर या सही पुस्तकालयों में जहां पर इनका नियम लागू होता है उसका कैसे विकास हो इस पर परिचर्चा करेंगे|इस सेमिनार में देश के प्रतिष्ठित लाइब्रेरियन आई एल ए के अध्यक्ष उपाध्यक्ष सभी उपस्थित होंगे| पूर्व में फैलोशिप उस व्यक्ति को दिया जाता है जिसका सर्वाधिक सर्वाधिक अंक ग्रेजुएशन स्तर पर होता है और पुस्तकालय विज्ञान की डिग्री में समायोजन करते हुए इस उपाधि के लिए चुना जाता है|| अब शायद यह जानते होंगे कि संघर्ष करने वाले व्यक्ति को ही सफलता मिलती है, इन्होंने लाइब्रेरी साइंस के संघर्ष के दिनों में भी अनेकानेक विभागों में परीक्षाएं दी, असफलताओं से गुजरते हुए भी, इस दिव्यांग व्यक्ति ने अपनी हिम्मत नहीं हारी और अंततः दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग में नियुक्त हुए||| हम सभी को इनसे सीख लेनी चाहिए और हमारे युवा साथियों को संघर्ष करना चाहिए, साइंस के इस फील्ड में उसके उत्थान के लिए विद्यालय स्तर से विश्वविद्यालय स्तर तक संशोधन के लिए, कुशल संचयन के लिए कार्य करने होंगे जिसमें यह रत्नेश कुमार हमेशा लगे रहते हैं|

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