भारतीय संविधान में दिव्यांगों के साथ अपराध करने पर सामान नियम

सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : 30A. जहां इस अधिनियम के अन्तर्गत कोई अपराध किसी प्रतिष्ठान द्वारा की गयी हो,1.अपराध घटित होने के समय वह प्रत्येक व्यक्ति जिसकी नियुक्ति प्रमुख के तौर पर हुई थी अथवा प्रत्यक्ष रुप से प्रभारी रहा हो, और प्रतिष्ठान के कार्य प्रंचालन तथा प्रतिष्ठान हेतु जिम्मेदार रहा हो, वह अपराध का दोषी माना जायगा। तथा उनके विरुध्द कार्रवाई होगी तथा उपर्युक्त सजा होगी।

बशर्ते कि, इस उप-धारा के अन्तर्गत निहित ऐसा कुछ भी नही हो जा किसी ऐसे व्यक्ति को किसी दण्ड के लिए जिम्मेदार बनाते हों, यदि वह यह प्रमाणित करता है कि अपराध उसके बगैर जानकारी के हुआ हो या ऐसे अपराध को रोकने के लिए कार्रवाई की गयी हो।

2.  उपधारा (1), में निहित पर ध्यान दिये बिना, इस अधिनियम के अन्तर्गत किसी प्रतिष्ठान द्वारा अपराध किया गया है तथा यह प्रमाणित हुआ है कि अपराध सहमति अथवा मिलीभगत से किया गया है या प्रतिष्ठान के किसी अन्य पदाधिकारी कि लापरवाही की भूमिका का परिणाम है, ऐसे व्यक्ति को दोषी का अपराध माना जायगा और उसके विरुध्द कार्रवाई होगी तथा तदनुसार दंडित किया जाएगा।

30B. अपराधों के लिए सामान्य जुर्मानाः

1.  इस अधिनियम के अन्तर्गत नियमों अथवा आदेशों अथवा निर्देशों का के प्रत्येक अनुपालन में विफलता अथवा उल्लंधन पर दो वर्षो की अवधि अथवा जुर्माना, जिसकी सीमा पचास हजार तक हो सकती है, और यदि यह उल्लंधन जारी रहता है जब अतिरिक्त जुर्माना एक हजार रुपये प्रतिदिन से, दोष सिध्द होने की तिथि से ऐसी विफलता पर दंडनीय होगा,

2.  यह उप-धारा (1) में उल्लेखित विफलता अथवा उल्लंधन एक वर्ष से अधिक की अवधि तक जारी रहता है, अपराधी को 4 वर्षो की सीमा तक कारवास की सजा हो सकती है।

30C. धारा 4K के उल्लंधन के लिए जुर्मानाः

1.  धारा 4K के अन्तर्गत प्रावधानों के अनुपालन में विफल रहने वाले किसी भी सेवा प्रदान करने वाले को सेवा हेतु सर्विस लाईसेंस अथवा उत्पादन को निरस्त किए जाने, प्रतिसंहरण अथवा निलंबन, अथवा जुर्माना-यह एक लाख रुपये तक हो सकता है या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

2.  यदि आरोपित धारा 4K के प्रावधानों का दोष सिध्द होने की तिथि से 6 महीनों के अन्दर, अनुपालन में विफल हो तब, आरोपित को पांच हजार रुपए प्रतिदिन अतिरिक्त जुर्माना से प्रथम दोष सिध्दि की विफलता के जारी रहने के दौरान दंडित किया जाएगा।

30D. धारा 4I के उल्लंधन के लिए जुर्मानाः

1.  किसी व्यक्ति अथवा संगठन अथवा प्रतिष्ठान धारा 4I के अन्तर्गत प्रावधानों के अनुपालन में विफल रहने पर निम्न से दंडित किया जायगाः

क)     जल तथा बिजली की आपूर्ति का ‘प्राप्ति’ की आवश्यकताओं की पूर्ति होने तक निलंबन, अथवा,

ख)    बिल्डर के लाइसेंस का निरस्तीकरण, प्रतिसंहरण अथवा निलंबन, अथवा

ग)     भवन के बाजार मूल्य या आकलित बाजार मूल्य, जैसे भी मामले हों, के पांच प्रतिशत की सीमा तक जुर्माना, अथवा

घ)     उपरोक्त के एक या अधिक के संयोग होने पर।

2.  यदि आरोपी दोष सिध्द होने के पश्चात् 6 महीनों के अंदर 4I के अन्तर्गत प्रावधानों के अनुपालन में विफल रहता है तब उसे प्रतिदिन एक लाख रुपये की सीमा तक, ऐसी विफलता के जारी रहने के दौरान दोष सिध्दि के पश्चात् पहली ऐसी विफलता के लिए दंडित किया जा सकता है।

30E. धारा 4J उल्लंधन के लिए जुर्मानाः

1.  कोई भी व्यक्ति अथवा कोई संगठन अथवा प्रतिष्ठान जो धारा 4J के अन्तर्गत 6 महीनों के अंदर प्रावधानों के अनुपालन में विफल रहता है, जब तक ‘पहुच’ की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो जाती पानी तथा बिजली की आपूर्ति के निलंबन से दोष सिध्दि की तिथि से दंडित किया जायगा अथवा भवन के बाजार मूल्य के पांच प्रशित तक, जो भी मामले हों, या दोनों से दंडित किया जा सकता है,

2.  यदि आरोपी दोष सिध्द होने के पश्चात् 6 महीनों के अन्दर धारा 4J के अन्तर्गत प्रावधानो के अनुपालन में विफल रहता है तब उसे प्रतिदिन एक लाख रुपये की सीमा तक ऐसी विफलता के जारी रहने के दौरान दोष सिध्दि के पश्चात् पहली ऐसी विफलता के लिए दंडित किया जा सकता है।

30F. धारा 10(3) के उल्लंधन पर दण्डः

कोई भी स्वेच्छापूर्वक किसी विकलांग व्यक्ति को चोट पहुंचाता है, किसी व्यक्ति के द्वारा किसी अंग और गुण को स्थायी या अस्थायी रुप से क्षतिग्रस्त करता है या अंग के उपयोग में हस्तक्षेप करता है, उसे कारावास की सजा दी जा सकती है जो 6 महीनों से कम नही होगी, लेकिन आठ वर्षो तक की हो सकती है, अथवा दंड या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

30G. भारतीय दंड संहिता के अन्तर्गत-दोष के लिए सजा में वृध्दिः

भारतीय दंड संहिता (45 of 1860)  के अन्तर्गत किसी व्यक्ति या किसी विकलांग व्यक्ति की परिसंपत्ति के विरुध्द इस आधार पर अपराध किया हो कि ऐसा व्यक्ति एक विकलांग व्यक्ति है, भारतीय दंड संहिता के प्रासंगिक प्रावधानों के अन्तर्गत अधिकतम निर्धारित कारावास को ऐसे प्रासंगिक प्रावधानों हेतु निर्धारित सजा पर ध्यान रखते हुए दो वर्षो की अवधि तक बढ़ाई जा सकेगी,

बशर्ते कि, उन मामलों में किसी अपराध में दी गयी सर्वाधिक सजा दो वर्षो से कम हो अथवा समान हो, वृध्दि के फलस्वरुप भा0 दं0 सं0  में दिए गए सर्वाधिक सजा में उसके दोगुने से अधिक नहीं होगी।

उदाहरणः

क)     धारा 325 के अन्तर्गत, स्वेच्छापूर्वक गंभीर चोट पहुंचाने की सजा सात वर्ष है। तथापि, यदि ऐसा अपराध किसी विकलांग व्यक्ति के विरुध्द होता है, इस तथ्य के आधार पर कि ऐसा व्यक्ति विकलांग है, तब न्यायाधीश सजा की किसी भी अवधि में दो वर्षो तक की वृध्दि कर सकता है, इस प्रकार की अधिकतम कारावास सात वर्ष 6 महीनों, आठ वर्ष 6 महीनों और इस प्रकार अधिकतम 9 वर्षो तक हो सकती है। तथापि, किसी भी अवस्था में कुल 9 वर्षो से अधिक नहीं होगी।

ख)    यदि किसी व्यक्ति या परिसम्पत्ति के विरुध्द भा0 दं0 सं0 के अन्तर्गत अधिकतम 6 महीनों के लिए होगी, यदि ऐसा अपराध किसी विकलांग व्यक्ति के विरुध्द इस तथ्य के आधार किया गया हो कि व्यक्ति विकलांग है, तब न्यायाधीश कारावास की सजा में एक माह अथवा तीन माह या पांच महीनों, अधिकतम 6 महीनों तक की वृध्दि कर सकता है, इस प्रकार की कुल अधिकतम 12 महीनों के लिए दंडित किया जा सकेगा।

30H. धारा 20 (8) (ii) तथा धारा 7F (2) के उल्लंधन के लिएः

1.  किसी विकलांग व्यक्ति के विरुध्द कोई भी मेडिकल प्रक्रिया किसी महिला पर निष्पादित, संचालित अथवा निर्देशित करता है जिसके परिणाम स्वरुप बिना उसकी सहमति के धारा 16(8)(ii) के उल्लंधन के कारण प्रजनन क्षमता समाप्त हो जाय (उसे) जुर्माना सहित सात वर्ष से या जुर्माना दोनों से सात वर्ष तक या उससे अधिक नहीं, जुर्माना सहित दंडित किया जायगा।

2.  किसी विकलांग व्यक्ति की देखरेख सेवा देने वाले, चाहे पेरेन्ट अथवा अभिभावक की तरह अथवा अन्य किसी योग्यता के आधार पर, कानूनी या गैर कानूनी, किसी ऐसे कार्य की सुविधा प्रदान करता है, अथवा लापरवाही के कारण ऐसी मेडिकल प्रक्रिया को अथवा निष्पादन को रोकने में असफल होने पर, पांच वर्षो की सीमा तक जुर्माना सहित कारावास की सजा हो सकती है।

30I.  गर्भ का जबरन समापन पर जुर्मानाः

1.  किसी विकलांग महिला पर कोई भी ऐसी मेडिकल प्रक्रिया का निष्पादन, संचालन अथवा निर्देशन करता है जिसके परिणाम स्वरुप गर्भ का समापन हो जाय या समाप्त होने की स्थिति आ जाय बिना उसकी (महिला) स्पष्ट सहमति के, इसे दस वर्षो की अवधि के कारावास अथवा जुर्माना सहित दंडित किया जायगा।

बशर्ते कि, मेडिकल आवश्यकता के कारण ऐसी मेडिकल प्रक्रिया का निष्पादन किसी अवयस्क पर उसके पेरेन्ट अथवास अभिभावक की सहमति से किया गया हो।

बशर्ते और भी कि ऐसी मेडिकल आवश्यकता की घोषणा किसी अहर्ता प्राप्त मेडिकल पेशेवर ने की हो।

2.  किसी विकलांग व्यक्ति की देखरेख सेवा देने वाले, चाहे पेरेन्ट अथवा अभिभावक की तरह अथवा अन्य किसी योग्यता के आधार पर, कानूनी या गैर कानूनी, किसी ऐसे कार्य की सुविधा प्रदान करता है, अथवा लापरवाही के कारण ऐसी मेडिकल प्रक्रिया को अथवा निष्पादन को रोकने में असफल होने पर, पांच वर्षो की सीमा तक जुर्माना सहित कारावास की सजा हो सकती है।

30J.  धारा 20(ii) के उल्लंधन पर सजाः

3.  किसी विकलांग बच्चे को उसके पेरेन्टस अथवा अभिभावक से कोई स्वेच्छापूर्वक अथवा जानबूझकर कर अलग करता है या अलग करने की प्रक्रिया धारा 20(ii) के उल्लंधन का कारण बनता है, (उसे) सात वर्षो की सीमा तक जुर्माना के साथ कारावास की सजा सहित दंडित किया जा सकता है।

30K. धारा 21D (2) के उल्लंधन पर जुर्माना :

किसी विकलांग व्यक्ति को कोई स्वेच्छापूर्वक अथवा जानबूझकर भोजन या तरल पदार्थ से वंचित करता है या ऐसे वंचित करने की कार्यवाई का सहायता या बढ़ावा देता है तब (उसे) कारावास से दंडित किया जा सकता है जिसकी अवधि 6 महीनों से कम नहीं होगी, लेकिन यह – जुर्माना सहित तीन वर्षो तक भी बढ़ाया जा सकता है

30L. घृणापूर्ण वचन हेतु जुर्माना:

यदि कोई स्वेच्छापूर्वक अथवा जानबूझकर घृणापूर्ण वचन बोलने का अपराध करता है (उसे) एक या एक से अधिक सामुदायिक सेवा कार्यक्रमों में उसे लगाया जाएगा, अथवा जुर्माना सहित अथवा दोनों से दंडित किया जायगा।

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