एक दिव्यांग पूछता है सिर्फ इमारतें बनाकर कैसे होंगी बीमारियां ठीक?

सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार :बिहार सरकार ने अपने वित्तीय बजट 2021-2022 में स्वास्थ्य के लिए रुपये 13,264 करोड़ का प्रावधान किया है जिसमें से रुपये 6,900 करोड़ योजनाओं पर खर्च किए जाएंगे, जबकि रुपये 6,300 करोड़ स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्माण कार्यों में उपयोग किए जाएंगे। इस बजट को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि बिहार में स्वास्थ्य की मौजूदा स्थिति में ये प्रस्तावित राशि काफी कम है। इसके साथ ही इस बजट में ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को भी अनदेखा किया गया है, जिन्हें इस राशि की ज्यादा जरूरत है। इन क्षेत्रों में चिकित्सकों की भर्ती, दवाओं की आपूर्ति और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करना आदि आते है। 22 फरवरी, 2021 को पेश किए गए बजट में इस बार रुपये 13,264 करोड़ खर्च करने का प्रस्ताव दिया गया है, जिसे पिछले साल के मुकाबले 21.28% अधिक बताया जा रहा है। मगर जब हम इस बजट प्रस्ताव के प्रावधानों पर गौर करते हैं तो पता चलता है कि इनमें बड़ी राशि अस्पतालों के निर्माण पर खर्च हो रही है, उनमें से भी ज्यादातर अस्पताल पटना और आसपास के इलाके में बन रहे हैं।स्वास्थ्य सुविधाओं का ‘पटना’-करण! इस बजट में सबसे अधिक राशि पटना मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल (पीएमसीएच) को विश्वस्तरीय अस्पताल बनाने के लिए खर्च होने वाली है। इसके लिए कुल रुपये 5540.07 करोड़ की राशि आवंटित की गयी है। जो इस साल के कुल स्वास्थ्य बजट की 42% है। इसके अलावा पटना के ही एक अन्य अस्पताल एलएनजेपी अस्पताल को 400 बेड वाले अति विशिष्ट अस्पताल बनाने के लिए रुपये 215 करोड़ खर्च होंगे। पटना के ही नवाब मंजिल में 50 बेड के अस्पताल के निर्माण के लिए रुपये 9 करोड़ और आईजीआईएमएस में उपकरणों को खरीदने के लिए रुपये 74.56 करोड़ खर्च होंगे। इस तरह हम देखते हैं कि भले बिहार सरकार ने इस साल अपना स्वास्थ्य बजट 21.28% बढ़ा लिया है, उसका लगभग 45% हिस्सा राजधानी पटना में ही खर्च करने की योजना है। वह भी सिर्फ निर्माण संबंधी गतिविधियों में।इसके अलावा नौ जिलों में मॉडल अस्पताल के निर्माण पर रुपये 172.95 करोड़ खर्च होने की बात कही गयी है और 10 जिलों में नए मेडिकल कॉलेज खोलने की स्वीकृति दी गयी है, मगर इसका बजट में स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।ये सूचनाएं दो बातों की तरफ इशारा करती हैं। पहला यह कि स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के लिए बिहार सरकार का सारा जोर अधोसंरचना विकास पर केंद्रित है। दूसरा यह कि इन अधोसंरचनाओं का विकास भी अमूमन राजधानी पटना में ही हो रहा है।इस बात को दूसरे तरीके से ऐसे भी समझ सकते हैं कि स्वास्थ्य बजट में से वेतन और अन्य आवश्यक खर्च को घटा दिया जाय तो योजनाओं को लागू करने के लिए सरकार ने रुपये 6,927 करोड़ की ही राशि आवंटित की है। इनमें से लगभग रुपये 6 हजार करोड़ सिर्फ भवन और अधोसंरचनाओं के निर्माण पर खर्च होंगे। इलाज और दवाओं के मद में और मैन पावर बढ़ाने के काम के लिए सिर्फ रुपये 927 करोड़ बचते हैं। दुखद तथ्य यह भी है कि अधोसंरचना विकास के नाम पर खर्च होने वाली राशि का भी 97% धन राजधानी पटना में खर्च होगा।”अगर लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना है तो निश्चित तौर पर इन सुविधाओं का विकास जिलों और प्रखंडों तक होना चाहिए। अभी तो सब कुछ पटना में ही है। लोग छोटी-छोटी बीमारियों के लिए पटना दौड़े चले आते हैं और यहां नम्बर लगाने के लिये परेशान रहते हैं।”ऐसा नहीं है कि बिहार को स्वास्थ्य सुविधाओं के इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास की जरूरत नहीं है। मगर वह विकास ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और स्वास्थ्य उपकेंद्रों का किया जाना है। जबकि सरकार का अभी सारा जोर टर्सरी सेंटरों के विकास पर है। इन सेंटरों के विकास का मतलब है कि बिहार के दूरदराज के लोगों को छोटी-छोटी बीमारियों के इलाज के लिए पटना आने और परेशान होने की जरूरत बनी रहेगी, जन स्वास्थ्य अभियान के संचालक और पटना के जाने माने चिकित्सक डॉ शकील का ऐसा कहना है। मगर साथ ही वे कहते हैं, “सिर्फ बिल्डिंग बनाने से भी कुछ नहीं होता। इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी एक साल से बनकर तैयार है, मगर उसे अभी तक स्वास्थ्य विभाग को हैंडओवर नहीं किया गया है। मैनपावर की कमी अभी भी वैसी ही है, सरकार जो थोड़ी बहुत कोशिश करती है वह ऊंट के मुंह में जीरा साबित होता है। आजकल सरकार भर्तियां भी ठेके पर करना चाहती है और डॉक्टर कॉन्ट्रैक्ट पर नौकरी करना नहीं चाहते।”चिकित्सकों की कमी बिहार की बड़ी बीमारी 2019 में जब उत्तर बिहार के जिलों में चमकी बुखार का प्रकोप फैला था और 185 से अधिक बच्चे की मौत हो गयी थी। तब एक जनहित याचिका के जवाब में बिहार सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया था कि उनके राज्य में चिकित्सकों के 57% पद खाली हैं। नर्सों और स्वास्थ्य कर्मियों के भी तीन चौथाई पद खाली हैं। 2020 में जब पूरी दुनिया के साथ बिहार भी कोराना महामारी की चपेट में आ गया तो 16 मई, 2020 को एक शपथ पत्र में बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने पटना उच्च न्यायालय को सूचित किया कि राज्य में चिकित्सकों के कुल 11645 स्वीकृत पदों में से 8768 पद खाली पड़े हैं।बिहार सरकार द्वारा पटना उच्च न्यायालय में चिकित्सकों के कुल पदों के सन्दर्भ में प्रस्तुत किया गया शपथ पत्र ।

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