समाज में इस दिव्यांगता को रोकने की आवश्यकता नहीं तो हो जाएगा समाज का विनाश।

सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : इस बीमारी और दिव्यांगता को रोकने की आवश्यकता तीन साल में 300 प्रतिशत बढ़ी बच्चों में ऑटिज्म की समस्या इस समस्या से पीड़ित होकर बड़ी संख्या में बच्चे इलाज कराने पटना के अलग-अलग अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। एक आंकड़े के मुताबिक आईजीआईएमएस के मनोरोग विभाग में आनेवाले 50 मरीजों में से पांच से छह बच्चे ऑटिज्म पीड़ित पाए जा रहे हैं। पटना आयुर्वेदिक कॉलेज में प्रत्येक सप्ताह 10 से 12 मरीज पहुंचने लगे हैं। यहां कोरोना के पहले सप्ताह में एक-दो मरीज इस बीमारी से पीड़ित होकर पहुंचते थे। कॉलेज के शिशु लक्षण: अपने में मगन रहते हैं बच्चे रोग विशेषज्ञ डॉ. अरविंद चौरसिया ने बताया कि तीन साल पहले की तुलना में लगभग 300 प्रतिशत ज्यादा मरीज अस्पताल पहुंच रहे हैं। मानसिक विकास में कुछ कमी के कारण मोबाइल और टीवी का ज्यादा इस्तेमाल घातक आयुर्वेदिक कॉलेज के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अरविंद चौरसिया ने बताया कि इस समस्या से पीड़ित 150 बच्चों पर उनके विभाग की टीम द्वारा अध्ययन किया गया। इन बच्चों के व्यवहार पर मोबाइल- टीबी का भी कुप्रभाव देखा गया है। छोटे बच्चों को मोबाइल में व्यस्त रखना, घंटों | टीवी पर कार्टून देखना, खेलकूद से दूरी, एकाकी परिवार के कारण अपने में सिमटा रहना और माता-पिता की अनदेखी से भी बच्चों में कई तरह की समस्याएं बढ़ी हैं। डॉ. राजेश कुमार सिंह ने बताया कि अपने देश में दो साल के बाद से बच्चों में ऑटिज्म की पहचान होनी शुरू होने लगती है। माता- पिता की सक्रियता से इससे पहले भी पता लग सकता है। पीड़ित ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे अपने आप में सिमटे, अकेले रहने, किसी बात को बार-बार बोलने, अत्यधिक जिद्दी, काल्पनिक दुनिया में खोए रहने व शारीरिक विकास में कमी से परेशानी, खान-पान का प्रभाव भी बच्चों को पीड़ित बना सकता है। वहीं कम या ज्यादा उम्र में गर्भधारण भी कमजोर मानसिक विकास का कारण बनता है। पढ़े-लिखे व उच्च वर्गों के बच्चों में यह बीमारी जल्दी पकड़ में आ जाती है। ग्रामीण परिवेश में बच्चे के व्यवहार को लोग देर से पकड़ पाते हैं। क्यों बढ़ रही बीमारी आईजीआईएमएस के मनोरोग विभाग के हेड प्रो. डॉ. राजेश कुमार सिंह, डॉ. कृष्ण कुमार सिंह ने बताया माता-पिता में जागरूकता के कारण पीड़ित बच्चे ज्यादा संख्या में अस्पताल पहुंच रहे हैं। यह बीमारी आनुवांशिक और दिमागी विकास से जुड़ी है। गर्भावस्था के दौरान होनेवाली बच्चे अपने-आप में मगन रहते हैं, सामाजिक मेल-जोल से कतराते हैं, आंख में आंख मिलाकर बात नहीं करते और किसी भी घटना के प्रति उदासीन रहते हैं। ग्रसित होते हैं। दिमाग का अपेक्षित विकास नहीं होने से ऐसे बच्चे देर से चलना, देर से बोलना और देर से कुछ सीखते-समझते हैं। डॉ. कृष्ण कुमार सिंह और डॉ. अरविंद चौरसिया ने बताया कि इस बीमारी की जितनी जल्दी पहचान हो जाए, उतना ही बेहतर इलाज संभव है। ज्यादा उम्र होने पर यह बीमारी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाती है

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