एनी सलीवान जीवन से दिव्यांगों को मिलता है कुछ खास सीख

 

सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : एनी सलीवान का जन्म 1867 में आयरलैंड के एक शरणार्थी परिवार में हुआ था। उसके पिता ने बहुत जल्दी परिवार छोड़ दिया था। जब वह 8 वर्ष की थी, तब उसकी माता का भी निधन हो गया था। माता के निधन के बाद एनी के दो भाई-बहन तो सामान्य सरकारी अनाथालय में रहने लगे, पर एनी जो लगभग नेत्रहीन थी, मेसाचुएट्स के राजकीय विकलांगों के अनाथालय में भेज दी गई। वहाँ उसने परकिंस संस्थान का नाम सुना और उसकी इच्छा वहाँ जाकर कुछ बनने की हुई। एक दिन विकलांग अनाथालय बोर्ड के गवर्नरों का दौरा हुआ। एनी ने उनमें से एक व्यक्ति को पकड़ लिया और चिल्लाने लगी,”मिस्टर सेन बोन: मिस्टर सेन बोर्न प्लीज!” वह व्यक्ति बोर्ड का चेयरमैन मिस्टर सेन बोर्न नहीं था, पर इस प्रकार उसने बोर्ड का ध्यान अपनी इच्छा की ओर आकृष्ट कर लिया। थोड़े दिनों बाद उसकी इच्छा के अनुसार उसे परकिंस संस्थान में भेज दिया गया। जब वह परकिंस संस्थान में भर्ती हुई, तब लगभग पूर्ण नेत्रहीन थी। यह बात 1881 की है। एनी सलीवान परकिंस संस्थान में 6 वर्ष रही। यहाँ उसने गहन अध्ययन किया और नेत्रहीनों और खास तौर से नेत्रहीनता के साथ श्रवणहीनता और मूकता से पीड़ितों को विशेष शिक्षा देने में भी महारत हासिल की। सौभाग्यवश इस बीच उसकी आँखों का दो बार ऑपरेशन हुआ और वह काफी हद तक देखने लगी। एनी सलीवान ने परकिंस संस्थान की बुजुर्ग शिक्षिका लारा ब्रिजमैन से काफी प्रेरणा ली। लारा को डॉ० हो ने स्वयं पढ़ाया था। वह महिला संस्थान से बाहर आने केलायक नहीं रह गई थी। लारा ने शिक्षा पूरी कराने के बाद एनी को बहुविकलांगता के शिकार बच्चों की शिक्षा के लिए संस्थान से विदा किया। जब एनी परकिंस से विदा हुई, तो लगभग 20-21 वर्ष की थी। उस समय परकिंस का कार्यभार संभाल रहे अनाग्नोस ने उसे अलबामा में एक नेत्रहीन, श्रवणहीन और मूक बालिका हेलेन कीलर को शिक्षा देने और परवरिश करने की सलाह दी। एगी ने इस चुनौती को सहर्ष स्वीकार किया। एनी 3 मार्च, 1887 को आकर कीलर परिवार से मिली। हेलेन कीलर ने इस दिन को हमेशा अपनी आत्मा के जन्म-दिवस के रूप में मनाया। यहाँ आकर एनी को भयंकर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। हेलेन उस समय जंगली बच्चों की तरह व्यवहार करती थी और उसे किसी भी तरह समझाना संभव नहीं था। हेलेन बुरी तरह रोती थी, चिल्लाती थी और मारती भी थी। यहाँ तक कि बुरी तरह काट भी लेती थी, पर चार हफ्तों में ही एनी ने हेलेन की अंगुली पानी में डालकर उसे पहले पानी का स्पर्श कराया और फिर अंगुलियों की भाषा से उसे बार-बार समझाया और बताया कि यह पानी है। उसने बच्ची को समझा दिया कि हर चीज का नाम होता है। उसका परिश्रम और हेलेन की लगन रंग लाई और उस समय एनी को अपार हर्ष और सन्तोष हुआ जब हेलेन ने वापस अंगुलियों की भाषा में एनी को संकेत दिया और उसे शिक्षिका मान लिया।फिर क्या था! एनी और हेलेन की लगन और बढ़ती चली गई। उसने हेलेन को ब्रेल भाषा में अंग्रेजी पढ़ाई । फिर लैटिन, ग्रीक, फ्रेंच और जर्मन भाषा सिखाई। साथ में पढ़े हुए विषय को अँगुलियों द्वारा संकेत की भाषा से बताया। यह भाषा स्पेन में भिक्षुओं ने ईजाद की थी। उसने हेलेन को आसपास होने वाली हलचल समझने और उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने की कला भी सिखा दी। उसने यह भी सुन रखा था कि नार्वे में किस प्रकार श्रवणहीन बच्चों को बोलना सिखाया जाता है। एनी ने उसी प्रकार हेलेन को बोलने का अभ्यास कराना प्रारम्भ कराया। ग्यारहवें अध्याय में हेलेन अचानक सामान्य बच्चों की तरह बोल पड़ी। अब वह गूंगी नहीं थी। फिर क्या था, हेलेन की पढ़ाई और उसका विकास दिन दुगुना और रात चौगुना होता चला गया। वह कैम्ब्रिज स्कूल जाने लगी, पर एनी हमेशा उसके साथ रही। एनी ने उसे मानव की आवाज को सीधे सुनने की अभूतपूर्व कला सिखाई। वह बोलने वाले के गले पर अंगुलियों के पोरों को रख लेती थी और गले में होने वाले कम्पनों के जरिए यह जान लेती थी कि बोलने वाला क्या बोल रहा है। उसने हेलेन को इस लायक बना दिया कि उसके साथी अकसर यह भूल जाते थे कि हेलन उनसे भिन्न है और सुनने व देखने में असमर्थ है। उसने हेलेन को लेखन और पत्रकारिता के पेशे में प्रवृत्त किया। अब तक हेलेन अनेक सामाजिक और आर्थिक विषयों पर लिखने लगी थी। सर्वप्रथम जब हेलेन ने एक कहानी लिखी तो एनी बहुत प्रसन्न हुई और दौड़कर स्वयं परकिंस की पत्रिका में देने गई। वह कहानी छप भी गई, पर एनी को प्रशंसा नहीं आरोपों का पुलिंदा ही मिला। वहकहानी दस साल पहले उसी पत्रिका में छप चुकी थी। लोगों ने इलजाम लगाया कि एनी ने उस कहानी को दुबारा देकर न सिर्फ पत्रिका के साथ, वरन हेलेन के साथ भी धोखा बेचकर हेलेन और एनी न्यूयार्क में रहने लगीं। वहाँ पर एनी ने हेलेन के जीवन पर आधारित फिल्म बनाने में भरपूर योगदान दिया।हेलेन की माता केटी अपने अंतिम दिनों में एनी के प्रति एहसानमंद हो चली थी।प्रारंभिक जीवन में जब एनी ने अपने तरीके से हेलेन को शिक्षा देनी प्रारम्भ की, तो बाकी लोगों की तरह केटी को भी काफी शंकाएँ थीं, पर एनी की लगन और मेहनत जब परिणाम लाने लगी, तो बाकी लोगों की तरह केटी को भी विश्वास हो गया कि एनी का उद्देश्य सही था। 1921 में केटी हेलेन को एनी के हाथों में सौंपकर स्वर्ग सिधार गई। एनी ने केटी के विश्वास को कभी ठेस नहीं पहुंचाई और 1924 में नेत्रहीनों के लिए स्थापित अमेरिकी फाउंडेशन में काम करते हुए एनी का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। हेलेन ने अब उसकी सेवा प्रारम्भ की। हेलेन को अब तक काफी प्रसिद्धि मिल चुकी थी। अनेक प्रकाशक अच्छे-अच्छे लेखकों को भेजकर उसके जीवन के रोचक प्रसंग हासिल कर रहे थे। एक प्रकाशक ने एक लेखक को भेजकर एनी की जीवनी भी तैयार कराई। इसमें एनी ने अपने जीवन के प्रारंभिक दिनों की कठिनाइयाँ बताईं। बाद के दिनों की दास्तान तो हेलेन के साथ जुड़ी हुई थी। एनी फिर नेत्रहीन हो चली थी। हेलेन के विकास के लिए की गई तपस्या ज्यों-ज्यों रंग ला रही थी, त्यों-त्यों उसका शरीर साथ छोड़ता जा रहा था। अब हेलेन अपना काफी समय एनी की सेवा में लगाने लगी।!?हालाँकि एनी अब भी यह चाहती थी कि हेलेन अपना समय विश्व-सेवा में ही लगाए। हेलेन को देश की महानतम महिला माना जाने लगा। टैंपल विश्वविद्यालय ने हेलेन के साथ एनी को भी मानद डिग्री प्रदान की। 1933 में एनी को अपने पति जॉन मेसी के निधन का समाचार मिला। उसे अपार दुःख हुआ। वह इस बात को भूल गई कि जॉन उसे छोड़कर चला गया था। उसे इस बात का भी पछतावा था कि हेलेन की खातिर वह अपने पति के साथ न्याय नहीं कर पाई।1933 में एनी के जीवन पर आधारित पुस्तक ‘एनी सलीवान मेसी’ प्रकाशित हुई, ःःजिसे नेला हैनी ने लिखा था। हेलेन इस पुस्तक से प्रसन्न नहीं हुई। उसके अनुसार एनीके गुणों को इस पुस्तक में सही रूप से प्रस्तुत नहीं किया गया। उसने घोषणा की कि एनी के ऊपर वह स्वयं पुस्तक लिखेगी। पर हेलेन का यह स्वप्न पूरा नहीं हुआ। एनी की शिक्षा ने हेलेन को विश्व-सेवा के प्रति इतना प्रवृत्त कर दिया कि वह एनी के जीवन के विभिन्न पहलुओं को बहुतधीरे-धीरे लिख पाई और इससे पहले कि एनी के जीवन के अनछुए प्रसंग एक पुस्तक के रूप में दुनिया के सामने आते, 1946 में हेलेन के मकान में आग लग गई और हेलेन द्वारा एनी की लिखी गई जीवनी की पांडुलिपि उसमें जल गई। हेलेन को लगा कि उसका सर्वस्व जल गया। उसे लगा कि वह अपनी टीचर को दिए गए वचन को पूरा नहीं ।

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