ऑटिज्म के लक्षणों की अनदेखी न करें

सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार :ऑटिज्म कोई बीमारी नहीं है। यह मानसिक विकास से जुड़ी एक अवस्था है। इसके  लिए बच्चे के माता-पिता या खुद बच्चा जिम्मेदार नहीं है। ऑटिज्म के लक्षण सबमें अलग होते हैं और इसका ये मतलब नहीं कि बच्चे का कोई भविष्य नहीं होगा ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर को आम बोलचाल में ऑटिज्म कहा जाता है। यह मानसिक विकास से जुड़ी एक ऐसी अवस्था है, जो व्यक्ति के स्वभाव, बोलचाल और समाज में एक-दूसरे से घुलने-मिलने की क्षमता तथा अपनी भावनाओं की जाहिर करने व उन पर काबू पाने की क्षमता को भी प्रभावित करती है। ऑटिज्म से प्रभावित ज्यादावर बच्चे औसत से लेकर विलक्षण बुद्धि वाले होते हैं। महान वैज्ञानिक आइंस्टीन न्यूटन व चाल्स डार्विन उन कुछ लोगों में देकर इसे पहचान सकते हैं, जैसे बच्चे का नाम पुकारे जाने पर के शब्द या ध्वनियां शामिल करना थैरेपी सेंटर चलाती हैं। के कभी बहुत गुस्सा हो जाना और गुस्से वे अवस्था जन्मजात होती है। उम्र अपनी ही दुनिया में खोए रहना में सिर पटकना से हैं, जो ऑटिज्म से प्रभावित थे। प्रतिक्रिया ना देना चढ़ने के साथ धीरे-धीरे इसके लक्षण उभरते हैं। किसी में इसका प्रभाव कम, बार दोहराना तो किसी में ज्यादा देखने को मिल सकता आंखों में आंखें डालकर बात ना कर है। जन्म के बाद के एक-दो वर्ष में इसके में पाना, दूसरी तरफ देखना लक्षण कुछ खास नजर नहीं आते पर उसके बाद कुछ खास लक्षणों पर ध्यान एक अलग टोन में बात करता बातचीत के बीच कुछ अलग तरह कई थेरेपी हैं फायदेमंद ऑटिग्म का कोई एक इलाज नहीं है, पर इसे सही तरीके से मैनेज किया जा सकता है। इसके लिए जितनी कम उम्र में हो सके. इसको पहचान होना और सही उपचार मिलना जरूरी है। बच्चे का मजबूत पक्ष कौन-सा है, उसकी कमजोरी क्या है, बच्चे को किस तरह की थेरेपी चाहिए, उसे स्पेशल एजुकेशन की जरूरत है या नहीं, बनाता है। बच्चे के साथ हर आदि पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके दिन पिक्चर कार्ड खेलें ये लिए सही डॉक्टर मिलना और परिवार का सपोर्ट बेहद अहम है। परिवार के सब सदस्य रोज एक निश्चित समय बच्चे के साथ खेले। ऐसा करना बच्चे को परिवेश के प्रति जागरूक कार्ड आसानी से घर में बनाए जा सकते हैं। ध्यान रखें, बच्चे को सिखाने में जल्दबाजी न करें। एक समय में एक लक्ष्य लेकर चलें। आरती (ऑटिस्टिक बच्चों की भाषा पर कई किताबें लिखी है।ऑटिज्म प्रभावित बच्चों के लिए स्पीच थैरेपी, सामाजिक व्यवहार से जुड़ी थेरेपी, फिजियोथेरेपी और व्यावसायिक शिक्षा देने वाली थैरेपी फायदेमंद साबित होती आई हैं। ज्यादातर राज्यों में राज्य सरकारें अस्पतालों या गैर-सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर इस तरह के राज्य के मुख्य सरकारी अस्पतालों से ये जानकरी मिल सकती है। सकारात्मक सोच और सही जानकारी के साथ कई बार हम इन लक्षणों को बचपना या ऑटिज्म का प्रबंधन करके बच्चे को बेहतर जीवन दिया जा सकता है। डॉ. ऐश्वर्या चौहान (एडवामेड एक ही खेल या एक्टिविटी को बार बिना बात चीखना-चिल्लाना एक ही खेल या एक्टिविटी को बार आंखों में आंखें डालकर बात कर स्वभाव समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। जीवन के शुरुआती साल ऑटिज्म को पहचानने और उसके सही मेनेजमेंट को दिशा तय करने में जरूरी। हैं।

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