सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016 का पालन नहीं हो रहा है।

सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : दिव्यांग व्यक्ति जो अधिवक्ता हो वह नियम के महासंग्राम में फस चुका है एक तरफ तो दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016 जिसमें स्पष्ट रूप से या कहा गया है कि जितने भी न्यायालय हो चाहे वह दिल्ली का हाईकोर्ट या सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली सुप्रीम कोर्ट या किसी भी राज्य का डिस्ट्रिक्ट कोर्ट जहां भी 20 लोग काम करते हो वहां पर दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016 पूरी तरह से कार्यरत रहेगा या दूसरे शब्दों में कहें लागू होगा लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है उदाहरण के तौर पर समझे कि नई दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016 के सुगम भारत अभियान के तहत दिव्यांग पार्किंग एवं दिव्यांग शौचालय दिव्यांग रैप व्हीलचेयर दिव्यांगों के लिए अलग से काउंटर की व्यवस्था होगी वह भी नहीं है यह बात भी अगर हम नजरअंदाज करते हैं तो दूसरा नियम कहता है कि दिव्यांगों के लिए सहायक उपकरण दिव्यांग स्कूटी यह कार या किसी प्रकार का सहायक वाहन हो जिसके अलावा वह कहीं का यात्रा नहीं कर सकते हैं तो वह उनका शरीर का अभिन्न अंग आदि की व्यवस्था वहां पर होगी लेकिन देखने को नहीं मिलता है ऐसे में कोई भी दिव्यांग वकील शारीरिक पीडा का सामना किस प्रकार से करता होगा दूसरे शब्दों में कहें तो चिराग तले अंधेरा अधिवक्ता अधिनियम की धारा 30 अधिवक्ताओं को प्रैक्टिस करने का अधिकार प्रदान करती है। यह किसी भी अधिवक्ता को न्यायालय परिसर के अंदर अपना वाहन पार्क करने का कोई अधिकार प्रदान नहीं करता है।अपने वाहन पार्क करने से प्रतिबंधित किया जाएगा। यह अधिवक्ताओं के अधिनियम, 1961 की धारा 30 के तहत अधिवक्ताओं के अधिकारों का उल्लंघन करता है, इसलिए हमारा या अनुरोध है कि जो न्यायालय सभी से नियम का पालन करवाता है वही नियम का उल्लंघन क्यों कर रहा है इस पर विचार हो और आप विलंब यह सभी सुविधा दिव्यांग अधिवक्ता एवं समान अधिवक्ता के नियम के अनुसार लागू हो जो अभी तक नहीं और इस प्रकार का कदाचार अभिलंब बंद हो।

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