सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : कहां गया शिक्षा का मौलिक अधिकार कहां है दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016 की सबसे बड़ी विशेषता की सभी दिव्यांगों को समानता का अधिकार मिलेगा शिक्षा का अधिकार मिलेगा एवं रोजगार के लिए किसी दिव्यांग को परेशान नहीं किया जाएगा हम आपसे पूछना चाहते हैं कि बिहार में वर्तमान स्थिति में जो चल रहा है शिक्षक बहाली 2023 में जिसका विज्ञापन संख्या है-26/2023 वह कहीं से भी जायज क्या हो रहा है आप सभी को पता है की एक दिव्यांग प्रमाण पत्र बनाने में एक दिव्यांग को कितने कष्टों का सामना करना पड़ता है तब जाकर वह प्रमाण पत्र बनता है जब 2017 में यूनिक डिसेबिलिटी बन चुका है तथा उसे पूरे भारत में सत्यापित मान लिया गया तुगलकी फरमान से कहीं ना कहीं दिव्यांग समाज बिहार के बहुत ही आहट एक तरफ तो दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016 में ई गवर्नेंस की बात प्रमुखता से लिखा गया है यह कहा गया है की दिव्यांगों को शारीरिक पीड़ा से बचाया जाएगा जिसके लिए सभी शिक्षण संस्थान में सुगम भारत अभियान की शुरुआत भी की गई और दूसरी तरफ एक दिव्यांग के पास 2-2 प्रमाण पत्र राज्य का प्रमाण पत्र अलग और केंद्र का प्रमाण पत्र अलग और यूनिक डिसेबिलिटी अलग फिर भी कहा जा रहा है कि आप इस दो प्रमाण पत्र के बाद तीसरा प्रमाण पत्र बना कर लाएंगे यह कहीं से भी जायज नहीं दिखता एक तरफ विश्व दिव्यांग दिवस के दिन 3 दिसंबर को आप स्लोगन देते हैं और उसी स्लोगन पर 1 वर्ष तक कार्य होता है उसमें स्पष्ट रूप से आप कहते हैं कि इस बार हम समानता का अधिकार दिव्यांगों को प्रदान करेंगे शिक्षा का अधिकार दिव्यांगों को प्रदान करेंगे दिव्यांगों को नौकरी आसानी से प्रदान करेंगे दूसरी तरफ अपनी तुगलकी फरमान के द्वारा दिव्यांगों को प्रदर्शित होने के लिए प्रमाण पत्र बनाने के लिए आदेशित करते हैं नहीं तो नौकरी से वंचित कराने का भय पैदा करते हैं तो एक समय में एक व्यक्ति एक ही कार्य कर सकता है या उसका शोषण करें या उसका उत्थान करें दोनों का एक साथ नहीं हो सकता है ऐसी स्थिति में तो यह बात स्पष्ट हो चुका है कि बिहार में दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016 तार-तार हो चुका है और सरकार अपने निजी फायदे के लिए दिव्यांग को आरक्षण से ही विमुख कर दिए हैं मैं ऐसा बात इस आधार पर कर रहा हूं क्योंकि दिव्यांग प्रमाण पत्र के द्वारा ही वह दिव्यांग श्रेणी एवं बेंचमार्क डिसेबिलिटी का लाभ उठा सकते हैं और जब उनका प्रमाणपत्र ही निरस्त कर दिया जाएगा आपको को आरक्षण का लाभ कहां से मिल पाएगा गौर करने की बात है की एक समय आप यूनिक डिसेबिलिटी बढ़ाने की मंजूरी देते हैं और बिहार सरकार और केंद्र सरकार दोनों मिलकर यूनिक डिसेबिलिटी बनाते हैं और एक समय उसी यूनिक डिसेबिलिटी को अयोग्य घोषित करते हैं तो दिव्यांग पढ़ाई करेगा या फिर अपने सर्टिफिकेट को ही बचाता रहेगा मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि अगर सर्टिफिकेट बनाने में कोई दिव्यांग लग जाता है इस बहाली प्रतिक्रिया में दो परीक्षा इसके बाद भी है तो भाग दौड़ में वह अपना पढ़ाई करेगा एग्जाम की तैयारी करेगा या फिर सर्टिफिकेट बनाता रहेगा आरक्षण को बचाता रहेगा और दोनों एक दूसरे के संपूरक है इसलिए अगर कल को दिव्यांगों का रिजल्ट खराब होता है योग्यता और क्षमता को वह पहुंच नहीं पाते हैं तो इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा क्योंकि भारतीय संविधान में सभी को नौकरी पाने का अधिकार है लेकिन योग्यता और क्षमता के आधार पर और जब आप पढ़ने का मौका ही नहीं दीजिएगा तो योग्यता और क्षमता आएगा कहां से दूसरी सबसे बड़ी बात निर्देशित कर दिया कि पीएमसीएच दिव्यांगों के लिए दिव्यांग सर्टिफिकेट निर्गत करेगा और वह आपके आदेश का उल्लंघन करते हुए जो पीएमसीएच पूरे बिहार का प्रमुख भी महाविद्यालय है वह कह रहा है कि हम सिर्फ पटना के दिव्यांगों का सर्टिफिकेट बनाएंगे तो पद पर बैठे हुए व्यक्ति सिर्फ नियम का उल्लंघन करने के लिए ही बैठे हैं दिव्यांगों को परेशान करने के लिए बैठे हैं किसी तरह से अयोग्य घोषित करने के लिए ही बैठे हैं कि दिव्यांगों को लाभ पहुंचाने के लिए बैठे हैं यह सोचने की बात है और कहां गई समानता का अधिकार कहां है दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016 और उसमें दिए गए दंड के प्रावधान खुलेआम तोड़ से हर नियम को तोड़ने का और दिव्यांग को परेशान करने का अधिकार इनको किसने दिया दूसरी जो सरकार की नीति है की डोमिसाइल नीति जो हर राज्य में एक समान लागू है अब बिहार सरकार अपने निजी स्वार्थ के लिए उस नीति को हटाने जा रही है तो ऐसी स्थिति में बहुत ही दुखद स्थिति उत्पन्न होने जा रही है एक तरफ तो आप यह कहना है कि हम लाख लोगों को नियुक्त करेंगे दूसरी तरफ आपका जो एग्जाम कराने वाला एजेंसी है बीपीएससी वह पिछले 12 साल का रिकॉर्ड आप देख लीजिए तो बीपीएससी 12000 छात्र से अधिक छात्रों की नियुक्ति 1 वर्ष में नहीं करवा सकता है तो क्या फिर से आप की नीति शिक्षित युवा पर लाठी चार्ज करने की है या फिर उसको सम्मानजनक शिक्षक बनाने की है और जिस राज्य में शिक्षा की यह दुर्दशा होगी उस राज्य का सर्वांगीण विकास कैसे हो पाएगा क्योंकि हम जो लोकतंत्र में रहते हैं उसमें लिखित संविधान है और अप्रत्यक्ष रूप से पड़ा देखा जा सकता है और जब पढ़े-लिखे लोगों का मौलिक अधिकार से इस प्रकार का खिलवाड़ होगा तो कहीं ना कहीं हमारा राज्य हमारा देश पतन की ओर जाएगा एक तरफ तो जहां आप कहते हैं कि एक परीक्षा पास करो आपको नौकरी हो जाएगा दूसरी तरफ आप निर्दोष शिक्षकों पर कई परीक्षाओं का बोझ डाल रहे हैं इससे तो यह स्पष्ट होता है कि आप कोई योग्य शिक्षक नहीं आयोग शिक्षक की अत्यंत आवश्यकता है ताकि इस बायोडाटा को दिखाकर आप विधानसभा में अपना पीठ थपथपा सके और पढ़े लिखे दिव्यांग इस अर्थ युग में रोड की खाक छान सके यह बात काफी निंदनीय है दूसरी बात यह एक तरफ वह दिव्यांग छात्र को लेने की बात कर रहे हैं दूसरी तरफ आंख से दिव्यांग छात्रों के साथ और दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016 में आंख से दिव्यांग छात्र को 100% पर नौकरी देने का प्रावधान है दूसरी तरफ इस नियम को दिए लोग चुनौती दे रहे हैं और इस नियम को भी चुनौती देते पदाधिकारी कह रहे हैं की हम 60% 70% वाले छात्रों को लेंगे अन्य छात्रों को नहीं लेंगे तो कहीं ना कहीं यहां पर दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016 का भी खुलेआम उल्लंघन हुआ है इसलिए इस पर कार्रवाई की जाए और उसके तहत जो दंड का प्रावधान है वह जवाब दें पदाधिकारियों पर लगाया जाए ताकि दिव्यांगों को उनके संवैधानिक अधिकार उनके मौलिक अधिकार से जोड़ा जा सके इस समस्या को लेकर मुख्यमंत्री सचिवालय एवं राज्य भवन मैं और तमाम शिक्षा विभाग स्वास्थ्य विभाग बीपीएससी मैं इस अन्याय के खिलाफ आवाज को बुलंद करेगा और न्याय दिलाने की कोशिश करेगा तोशियास अपनी नौकरी को पाकर वह इस स्लोगन को सत्यार्थ कर सके दिव्यांगों की मुस्कान है हमारी पहचान।
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