सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : क्रिकेट की दुनिया में बी.एस. चंद्रशेखर यानी भागवत भागवत सुब्रमण्य चंद्रशेखर ऐसा नाम है जो अपनी खास तरह की बॉलिंग के लिए जाने जाते हैं. 17 मई 1945 में मैसूर में पैदा हुए बी.एस. चंद्रशेखर सिर्फ अपनी बॉलिंग को लेकर ही प्रेरित नहीं करते बल्कि उन लोगों के लिए भी एक इंस्पिरेशन हैं, जो विकलांग हैं.1964 से 1979 के बीच में भारतीय क्रिकेट ने कई जीत और हार देखीं लेकिन ये एक ऐसे व्यक्ति का भी गवाह है जो अपने पोलियो वाले हाथों से बॉलिंग करता था. दाहिने हाथ में पोलियो होने के बावजूद चंद्रशेखर अपनी मारक गेंदबाज़ी के तरीके के लिए जाने जाते थे. उनके इसी नायाब तरीके के लिए उन्हें न सिर्फ साथी खिलाड़ियों की भरपूर तारीफ मिली बल्कि चंद्रशेखर ने भारत को क्रिकेट के मैदान पर कई जीत भी दिलाईं.बीएस चंद्रशेखर यानि भागवत सुब्रमण्य चंद्रशेखर को 5 या 6 साल की उम्र में पोलियो हो गया था. खुद उन्हें और उनके परिवार को ये नहीं मालूम चला कि कब उनके साथ ऐसा हो गया. उस समय इनका हाथ बिल्कुल भी काम नहीं करता था. हालांकि 10 साल की उम्र से इनके हाथ में सुधार हो हो गया लेकिन यह 100 फीसदी सही नहीं हुआ. उस समय तक चंद्रशेखर को भी नहीं पता था कि गली में क्रिकेट खेलते खेलते वे कभी भारतीय क्रिकेट के सुपरस्टार बन जायेंगे.जब चंद्रशेखर 10 साल के थे तब उनके घर वाले बैंगलोर आकर रहने लगे. यहां गली में शौकिया क्रिकेट खेलते-खेलते चंद्रशेखर को सिटी क्रिकेटर्स में खेलने का मौका मिला. लेकिन अभी तक चंद्रशेखर के मन में इंडियन क्रिकेट में खेलने का खयाल नहीं आया था. और न ही उन्होंने सोचा था कि वो कभी इंडियन क्रिकेट टीम का हिस्सा बन पायेंगे. उन्होंने सिटी क्रिकेटर्स को सिर्फ इसलिए ज्वाइन किया था ताकि रबर की बॉल से खेलने से निजात मिल सके और वो लेदर की बॉल से खेल सकें.पोलियो का प्रभाव उनकी कलाई पर अधिक था,लेकिन इसी के प्रभाव के कारण चंद्रशेखर की कलाई गेंद फेंकते वक्त ज्यादा ट्विस्ट हो जाती थी. वह सामान्य प्रकार के स्पिनरों से अलग रहे. वह वास्तव में सबसे तेज लेग-ब्रेक बॉलर रहे, जिसके कारण अच्छे-अच्छे बल्लेबाज आसानी से आउट हो जाते थे. इस मामले में चंद्रशेखर के क्रिकेट का सफर लगान के एक कैरेक्टर कचरा की याद दिलाता है जिसके स्पेशली एबल्ड हाथ ही उसकी ताकत बन गई.चंद्रशेखर शुरूआत में कई तरह से बॉलिंग करते थे, खासकर फास्ट बॉलिंग. वो रिची बेनॉड के फैन थे. रिची बेनॉ़ड ऑस्ट्रेलिया के लेग स्पिनर और ऑलराउंडर थे. शायद रिची बेनॉड के प्रभाव के कारण 1963 चंद्रशेखर को रियलाइज़ हुआ कि उन्हें लेग स्पिनर बनना है. यह निर्णय उनके लिए बेहतर भी साबित हुआ और इसी कारण से वे इंडियन क्रिकेट टीम के लिए चुन लिए गए. चंद्रशेखर ने इंटरनेशनल क्रिकेट की शुरूआत 1964 में की. जब उन्होंने अपना पहला मैच इंग्लैण्ड के खिलाफ खेला. तब से लेकर अपने करियर के अंतिम समय तक 58 टेस्ट खेले और कुल 242 विकेट लिए. अपने करियर में उनका सबसे अच्छा प्रदर्शन वो रहा जब उन्होंने 79 रन देकर 8 विकेट लिए. ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में होने वाली सीरीज़ में उन्होंने 12 विकेट देकर 104 रन लिए और भारत को ऑस्ट्रेलिया में पहली बार जीत दिलाई.चंद्रशेखर ने अपना एकमात्र वन-डे न्यूज़ीलैण्ड के खिलाफ खेला जिसमें उन्होंने 3 विकेट लिए. इनके बेहतरीन प्रदर्शन और कन्ट्रीब्यूशन के लिए उन्हें 1972 में विज्डन क्रिकेटर ऑफ़ द इयर का अवॉर्ड दिया गया.1960 से 1970 के बीच चंद्रशेखर के अलावा प्रसन्ना, बिशन सिंह बेदी और वेंकट राघवन भी बेहतरीन स्पिनर्स थे. इन चारों को उस समय स्पिन क्वार्टेट कहा जाता था. चंद्रशेखर मात्र क्लासिकल लेग स्पिनर नहीं रहे, उनकी गेंदबाजी में तरह-तरह की ट्रिक्स रहीं. लम्बे बाउन्सिंग रन-अप के बाद वो तेज गुगली गेंद फेंकते थे.19 वर्ष की आयु में टीम में शामिल हो जाने के बाद उन्होंने वेस्टइंडीज व इंग्लैंड की टीमों के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन किया. लेकिन इस दौरान स्कूटर से उनकी दुर्घटना हो गयी जिससे उन्हें कुछ महत्त्वपूर्ण सीरीज में बाहर रहना पड़ा. लेकिन तीन सालों के बाद जब चंद्रशेखर को 1971 में इंग्लैंड दौरे के लिए टीम में शामिल किया गया. यहां ओवल में (1971) इंग्लैंड की टीम के खिलाफ सिर्फ़ 38 रन देकर 6 विकेट ले लिए और पूरी टीम 101 रनों पर सिमट कर रह गई. लगातार दो बॉल में उन्होंने दो विकेट लिये. जॉन एड्रिक और कीथ फ्लेचर. और इंग्लैंड की धरती पर इंग्लैंड को हराकर भारत ने जीत दर्ज की.बचपन से ही चंद्रशेखर मुकेश के फैन रहे. लेजेंड्री गायक मुकेश के लगभग 800 गानों का कलेक्शन उनके पास है. कन्नड़ बोलने वाले चंद्रशेखर को कई गानों के बोल समझ नहीं भी समझ आते हैं लेकिन वो फिर भी इसे सुनते हैं. बचपन में मुकेश के गानों को सुनने के लिए वो सुबह-सुबह उठकर सीलोन रेडियो लगाते थे. लेकिन उनका सपना था कि वे कभी मुकेश को लाइव गाते हुए सुनें. उनका यह सपना तब पूरा हुआ जब वे इंडियन क्रिकेट टीम में सिलेक्ट होकर बॉम्बे गए. बाद में मुकेश कुमार और इनमें दोस्ती हो गई.सुब्रमण्य को घूमने का बेहद शौक रहा है. जिसकी वजह से उन्हें अलग-अलग व्यक्तियों से मिलने का मौका मिला. इसकी वजह से अलग अलग देशों के प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों से इन्हें मिलने का मौका मिला. लेकिन इसमें उनकी सबसे बेहतरीन यादगार है जब वे इंग्लैण्ड की महारानी से मिले. इसके अलावा सीढ़ियों पर चढ़ने का खेल भी इन्हें खासा पसंद था.चंद्रशेखर जितना अपने बेहतरीन बॉलिंग के लिए जाने जाते हैं उतना ही अपनी खराब बैटिंग के लिए भी जाने जाते हैं. कुछ तो उनके ख़राब हाथ की देन थी और बची-खुची कसर उनकी ख़राब बैटिंग स्किल्स ने पूरी कर दी थी. इंडिया ने वैसे भी नम्बर 6 के बाद आने वाले बल्लेबाजों का खासा स्ट्रगल देखा है. 2010 के आस पास ये कमी काफ़ी हद तक पूरी हुई है. लेकिन ये वो वक़्त था जब टेल-एंडर्स से बैटिंग की उम्मीद करना बेवकूफ़ी ही साबित होता था. चंद्रशेखर जब 1977-78 में ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर थे तो उन्हें एक बैट दिया गया जिसमें एक छेद था. उस सीरीज़ में वो एक के बाद एक 4 बार बिना खाता खोले आउट हुए थे. जबकि गेंद से वो बढ़िया परफॉर्म कर रहे थे. इसकी ही याद में उन्हें ऑस्ट्रेलिया की टीम ने बढ़िया बल्ला दिया था जिसमें बीच में एक छेद था. अपने पूरे कैरियर में वो 23 बार ज़ीरो पर आउट हुए और कुल 167 रने बनाये जबकि कुल विकेट 242 हैं.
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