सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : बिहार में दिव्यांग बच्चे अपने पढ़ाई से नहीं होने से तरसत है बिहार की सरकार केंद्र में अपना आधिपत्य जमाने की तैयारियों में मस्त बच्चों तक पाठ्यपुस्तक नहीं पहुंची, पांच से स्पष्टीकरण पटना कक्षा एक से आठवीं तक की पाठ्यपुस्तक जिला शिक्षा कार्यालय में भेज दी गई है। इसके बावजूद अब तक सौ फीसदी बच्चों के हाथों में पाठ्यपुस्तक नहीं पहुंची है। इस बाबत बिहार शिक्षा परियोजना परिषद द्वारा पांच जिलों के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी से स्पष्टीकरण मांगा गया है।यह बात समीक्षा बैठक में सामने आयी है। राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी कुमार अरविंद सिन्हा के मुताबिक दरभंगा, भागलपुर, पूर्वी चंपारण, कैमूर और खगड़िया जिले के बच्चों को पाठ्यपुस्तक नहीं मिली है। अब तक दरभंगा के 59.48, भागलपुर से 67.80, पूर्वी चंपारण के 69.34, कैमूर के 75.30 जबकि खगड़िया के 76.73 फीसदी बच्चों को ही पाठ्यपुस्तक मिली है। वहीं पटना समेत कई जिलों में पांच से दस फीसदी बच्चों तक पाठ्यपुस्तक नहीं पहुंची है। दिव्यांग के लिए पढ़ाई एकमात्र ऐसा साधन है जिससे कि वह समाज के प्रमुख धारा से जुड़ सकते हैं और अपने जीवन को स्वाबलंबी बना सकते हैं बिहार की स्थिति को देखकर एक गाना याद आता है क्यों तरसता है तू बंदे जल्दी ही बदलेगा मंजर देख ले तू एक दफा अपने दिल के अंदर तुझ में भी हो बात है तेरी भी औकात है तू भी बन सकता है सिकंदर लेकिन कोई ऐसा सिकंदर नहीं होगा जो अपने राज्य को अनपढ़ गवार बनाकर विश्व पर अपना शासन करेगा महान दार्शनिक अरस्तु का कहना है कि किसी राज्य का एक व्यक्ति भी अनपढ़ रहेगा तो वह राज्य विकास के पथ पर अग्रसर नहीं होगा हम दूसरे को तो सीख देते हैं और अपनी गलतियां ही भूल जाते है पढ़ेंगा बिहार तभी तो बढ़ेगा बिहार दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016 बने हुए कई साल बीत गए राज्य में 5100000 दिव्यांगों की संख्या है इसमें सदी का नारा है नॉलेज इज द पावर और मुख्यमंत्री जी अपने पावरफुल बनने में लगे हुए और राज्य के दिव्यांग छात्रों को क्या बनाएंगे यह देख लीजिए क्या यही लोकतंत्र है हमें आज देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद बहुत याद आते हैं उन्होंने तीन बातों पर सबसे अधिक बल दिया था शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार और आज हम कहां खड़े हैं।