अनुसूचित जनजाति कल्याण हेतु कार्यरत राष्ट्रीय स्तरीय संस्थान…!

सर्वप्रथम न्यूज़ आदित्य राज पटना:-एनएसटीएफडीसी (नेशनल शेड्यूल ट्राइब्स फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कारपोरेशन

अनुसूचित जनजाति कल्याण हेतु कार्यरत राष्ट्रीय स्तरीय संस्थान एनएसटीएफडीसी(नेशनल शेड्यूल ट्राइब्स फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कारपोरेशन) के मुख्य उद्देश्यों का संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है

  1. अनुसूचित जनजातियों के लिए महत्व के आर्थिक कार्यकलापों की पहचान करना जिससे रोजगार के अवसरों का सृजन हो और उनके आय के स्तर में वृद्धि हो सके ।
  2. संस्थागत तथा नौकरी से संबंधित प्रशिक्षण प्रदान करने के माध्यम से अनुसूचित जनजातियों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे कौशलों और प्रक्रियाओं का उन्नयन करना ।
  3. ऐसे वर्तमान राज्य/संघ राज्य क्षेत्र अनुसूचित जनजाति वित्त एवं विकास निगमों को जो एनएसटीएफडीसी से सहायता का लाभ उठाने के लिए राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों (एससीए) के रूप में नामित हैं तथा अनुसूचित जनजातियों के आर्थिक विकास में लगी हुई अन्य विकासात्मक एजेंसियों को अधिक प्रभावी बनाना ।
  4. राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों को परियोजना तैयार करने और एनएसटीएफडीसी की सहायता प्राप्त योजनाओं के कार्यान्वयन में तथा अपने कर्मचारियों को आवश्यक प्रशिक्षण देने में सहायता करना ।
  5. केन्द्र/राज्य सरकार के स्वामित्व वाली एजेंसियों की कार्य-पूंजी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अनुसूचित जनजातियों द्वारा उगाए गए/बनाए गए या एकत्र किए गए वन उत्पादों कृषि उत्पादों तथा अन्य उत्पादों की प्राप्ति और विपणन के लिए तथा संबंधित कार्यकलापों/उत्पादों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना ।
  6. मौजूदा एजेंसियों के कार्य को दोहराए जाने की अपेक्षा नवपरिवर्तन लाना प्रयोग करना तथा प्रोत्साहित करना ।

 

संस्थान के कार्य

  1. पात्र अनुसूचित जनजातियों के आर्थिक विकास के लिए संबंधित मंत्रालयों/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों द्वारा नामित केन्द्र/राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों के माध्यम से 10.00 लाख रुपए तक की लागत वाली व्यावसायिक आयसृजक योजना(योजनाओं)/परियोजना (परियोजनाओं)को रियायती वित्त उपलब्ध करना ।
  2. पात्र अनुसूचित जनजातियों के कौशल और उद्यमीय विकास के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आरंभ करने के लिए राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियो के माध्यम से अनुदान उपलब्ध करना ।
  3. आवधिक प्रशिक्षण के माध्यम से राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों के अधिकारियों के कौशलों के  स्तर में वृद्धि करना।

 

संस्थान की योजनायें

पूरक ऋण

इकाई लागत

प्रति इकाई/लाभ केन्द्र 10.00 लाख रुपए तक की योजना(योजनाओं)/ परियोजना(परियोजनाओं) की निधिकरण की आवश्यकता में कमी को पूरा करने के लिए एनएसटीएफडीसी द्वारा राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों के माध्यम से योजना(योजनाओं)/ परियोजना(परियोजनाओं) के लिए उपलब्ध आर्थिक सहायता (सब्सिडी)/पूंजीगत प्रोत्साहनों आदि के प्रति पूरक ऋण उपलब्ध किया जा सकता है ।

ब्याज दरें

पूरक ऋण की ब्याज दरें मियादी ऋण की ब्याज दरों के ही बराबर हैं ।

पुनर्भुगतान अवधि

मंजूरकर्ता एजेंसी की सुनिश्चित करना है कि पात्र आर्थिक सहायता/पूंजीगत प्रोत्साहन का भुगतान राज्य स्तरीय चैनेलाइजिंग एजेंसी को एनएसटीएफडीसी द्वारा पूरक ऋण की पहली निर्मुक्ति की तारीख से अधिकतम 2 वर्ष की अवधि के अंतर्गत सीधे किया जाता है ।

विपणन समर्थन सहायता

कृषि/वन उत्पादों की प्राप्ति और विपणन एवं संबंधित कार्यकलाप आरंभ करने के लिए और ऐसे कार्यकलापों में लगे केन्द्रीय/राज्य/संघ राज्य क्षेत्र संगठनों तथा राष्ट्रीय स्तर के संगठनों को एनएसटीएफडीसी द्वारा मियादी ऋण के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है ।

ब्याज दरें

क) राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों के माध्यम से दी गई वित्तीय सहायता के लिए एनएसटीएफडीसी द्वारा राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों से 4%वार्षिक की दर से ब्याज लिया जाएगा । राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियाँ क्रम से कार्यान्वयन एजेंसी (एजेंसियों)/अंतिम लाभार्थी(लाभार्थियों) से 7% वार्षिक की दर से ब्याज ले सकती हैं ।

ख) केन्द्र/राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के स्वामित्व वाले संगठनों राष्ट्रीय स्तर के परिसंघ को सीधे प्रदान की गई वित्तीय सहायता के लिए एनएसटीएफडीसी द्वारा ऐसे संगठनों से 7% वार्षिक की दर से ब्याज लिया जाएगा ।

स्व-सहायता समूह

प्रति स्व-सहायता समूह (एसएचजी) 25.00 लाख रुपए तक की इकाई लागत वाली योजना(योजनाओं)/परियोजना(परियोजनाओं) के लिए ।

प्रति व्यक्ति निवेश अधिक से अधिक 50000 रुपए प्रति इकाई की शर्त पर योजना/परियोजना की लागत के 90% तक । उपर्युक्त इस शर्त के अधीन है कि चैनेलाइजिंग एजेंसियाँ अपनी योजना के अनुसार आर्थिक सहायता (सब्सिडी)की व्यवस्था/उपलब्ध करें । राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियाँ वित्तीय सहायता को अन्य स्रोतों से यदि कोई हो जुटा सकती हैं ।

कार्यपूंजी

योजना/परियोजना के 30% तक को परियोजना/योजना की लागत के भाग के रूप में समझा जा सकता है ।

संप्रवर्तक का न्यूनतम अंशदान

परियोजना/योजना की लागत के 10% की दर पर ।

ब्याज दर

एनएसटीएफडीसी (एनएसटीएफडीसी के अंश पर) 5%वार्षिक दर से ब्याज लागाएगा और राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियां स्व-सहायता समूहों से 8% वार्षिक दर से ब्याज लगा सकती हैं।

नए/वर्तमान लाभ कमा रहे स्व-सहायता समूह

नए/वर्तमान लाभ कमा रहे स्व-सहायता समूहों को व्यावहारिक इकाई(कार्यों)के लिए एनएसटीएफडीसी द्वारा राज्य चैनलाइजिग एजेंसियों के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी बशर्ते अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों के लिए आय-सीमा की प्राथमिक शर्त पूरी हो ।

टिप्पणी

मियादी ऋण योजना के अंतर्गत 10.00 लाख रुपए की इकाई लागत के लिए अन्य ऋण संबंधी मानदंड स्व-सहायता समूहों के वित्त पोषण के लिए भी लागू होंगे ।

आदिवासी महिला सशक्तिकरण योजना

यह पात्र अनुसूचित जनजाति महिलाओं के आर्थिक विकास के लिए आरंभ की गई अनन्य रियायती योजना है और इसका नाम आदिवासी महिला सशक्तिकरण योजना है ।

इकाई लागत

एनएसटीएफडीसी प्रति इकाई/लाभ केन्द्र 50000 रुपए तक की लागत वाली योजना(योजनाओं)/ परियोजना(परियोजनाओं) के लिए मियादी ऋण उपलब्ध करता है ।

सहायता की मात्रा

एनएसटीएफडीसी योजना(योजनाओं)/परियोजना(परियोजनाओं) की लागत के 90% तक का मियादी ऋण इस शर्त पर उपलब्ध करता है कि राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियाँ योजना के अनुसार सहायता अंश का अंशदान करें और अपेक्षित आर्थिक सहायता की व्यवस्था करें । राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियाँ वित्तीय सहायता को अन्य श्रोतों से यदि कोई हो जुटा सकती हैं ।

संप्रवर्तक का अंशदान

संप्रवर्तक (प्रोमोटर) के न्यूनतम अंशदान पर बल नहीं दिया जा सकता ।

ब्याज दर

इस योजना के लिए एनएसटीएफडीसी राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों से 2% वार्षिक की दर से अत्यंत रियायती ब्याज लेता है । राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियाँ अंतिम महिला लाभार्थियों पर अधिकतम 4% वार्षिक की दर पर ब्याज लगा सकती हैं ।

पुनर्भुगतान अवधि

ऋण को तिमाही/छःमाही किस्तों में जैसा भी मामला हो उचित अधिस्थगन काल सहित अधिकतम 10 वर्ष के अंतर्गत चुकाया जाना है ।

स्व सहायता समूहों के लिए लघु ऋण योजना

इस योजना का लक्ष्य केवल वर्तमान में लाभ कमाने वाली स्व सहायता समूहों के माध्यम से पात्र अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों के लिए स्व रोजगार उद्यम गतिविधियां चलाने हेतु लघु ऋण उपलब्ध कराना है ।

सहायता की प्रमात्रा

  1. एनएसटीएफडीसी 35000/-रुपए तक प्रति सदस्य एवं अधिकतम 5.00 लाख रुपए तक प्रति स्व सहायता समूहों के लिए ऋण उपलब्ध कराता है । राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियां अपनी मानदंडों के अनुसार लक्ष्य समूह के लिए पात्र सब्सिडी राशि /मार्जिन मनी उपलब्ध कराएगी एवं बाकी राशि एनएसटीएफडीसी द्वारा मियादी ऋण की तरह उपलब्ध कराई जा सकती है
  2. यदि किसी मामले में राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियां सब्सिडी ऋण एवं मार्जिन मनी उपलब्ध कराने में असमर्थ हों तो एनएसटीएफडीसी जरूरी ऋण का 100% मियादी ऋण की तरह उपलब्ध करा सकती है ।

आवृति ऋण

स्व सहायता समूहों को आवृति ऋण दिया जा सकता है । हालांकि एनएसटीएफडीसी योजना के अंतर्गत स्व सहायता समूहों द्वारा राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों से लिया गया पूर्व ऋण राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों को तथा उसके समान ही राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों द्वारा एनएसटीएफडीसी से लिया गया सम्पूर्ण ऋण लौटाने पर ही राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों द्वारा स्व सहायता समूहों को आवृति ऋण दिया जाएगा ।

ब्याज दरें

  1. एनएसटीएफडीसी द्वारा राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों से – एनएसटीएफडीसी राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों से 3% वार्षिक की दर से ब्याज प्रभारित करेगा ।
  2. राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों द्वारा स्व सहायता समूहों से – राज्य चैनेलाइजिंग स्व सहायता समूहों से 6% वार्षिक की दर से ब्याज प्रभारित करेगी।
  3. स्व सहायता समूहों द्वारा सदस्यों से – संबंधित स्व सहायता समूहों के सदस्यों को अपने सदस्यों से प्रभारित किए जाने वाले ब्याज दर का निर्धारण स्व्यं करना होता है परन्तु वह 15% वार्षिक से अधिक नहीं होना चाहिए ।

पुनर्भुगतान अवधि

  1. राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों द्वारा समूहों के लिए – राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों द्वारा पुनर्भुगतान अवधि की सिफारिश गतिविधियों की प्रकृति के आधार पर की जाएगी । हालांकि राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों द्वारा स्व सहायता समूहों को वितरित राशि की तिथि से राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों द्वारा स्व स्वहायता समूहों को अनुमत्य छह माह की मानक विलम्बन अवधि सहित चार साल की अधिकतम अवधि के अंदर स्व सहायता समूहों द्वारा राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों को पुनर्भुगतान किया जाना चाहिए ।
  2. राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों द्वारा एनएसटीएफडीसी को – राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों द्वारा तिमाही के आधार पर राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों द्वारा स्व सहायता समूहों को अनुमत्य छह माह की मानक विलम्बन अवधि सहित एनएसटीएफडीसी द्वारा राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों को वितरित राशि की तिथि से 5 वर्षों के अंदर किया जाना चाहिए।
मियादी ऋण (आयसृजक कार्यकलाप)

इकाई लागत

प्रति इकाई/लाभ केन्द्र 10.00 लाख रुपए तक की व्यावहारिक योजना (योजनाओं)/ परियोजना (परियोजनाओं) के लिए एनएसटीएफडीसी मियादी ऋण उपलब्ध करता  है ।

सहायता की मात्रा

  1. एनएसटीएफडीसी योजना(योजनाओं)/परियोजना(परियोजनाओं) की लागत के 90% तक का मियादी ऋण इस शर्त पर उपलब्ध करता है कि राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियाँ योजना के अनुसार सहायता का अपने अंश का अंशदान करती हैं और अपेक्षित वित्तीय सहायता उपलब्ध करती हैं । राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियाँ वित्तीय सहायता की व्यवस्था अन्य स्रोतों यदि काई हो से भी कर सकती हैं ।
  2. 1.00 लाख रुपए की लागत वाली इकाई/लाभ केन्द्र के लिए संपूर्ण कार्यपूंजी को परियोजना लागत के रूप में समझा जाता है ।
  3. 1.00 लाख रुपए से अधिक की लागत वाली योजना (योजनाओं)/परियोजना (परियोजनाओं) के लिए कार्य पूंजी की आवश्यकता के लिए अधिकतम 3.00 लाख रुपए की शर्त पर परियोजना लागत के भाग के रूप में विचार किया जाता है ।

संप्रवर्तक (प्रोमोटर) का अंशदान

प्रति इकाई/लाभ केन्द्र लागत  संप्रवर्तक का न्यूनतम अंशदान(परियोजना लागत की प्रतिशतता के रूप में)

क) 1.00 लाख रुपए तक बल नहीं दिया जाना है ।

ख) 1.00 लाख रुपए से अधिक तथा 2.50 लाख रुपए तक 2%

ग) 2.50 लाख रुपए से अधिक तथा 5.00 लाख रुपए तक 3%

घ) 5.00 लाख रुपए से अधिक 5%

ब्याज दर

प्रति इकाई/लाभ केन्द्र  निम्नलिखित से प्रभार्य ऋण की राशि ब्याज प्रतिवर्ष(एनएसटीएफडीसी का अंश) राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसी लाभार्थी (लाभार्थियों)

क)  5.00 लाख रुपए तक 3% – 6%

ख)  5.00 लाख रुपए से अधिक 5% – 8%

नोट – उपर्युक्त ब्याज दरें स्लैब आधार पर नहीं हैं ।

पुनर्भुगतान अवधि

ऋण को तिमाही/छः माही किस्तों में जैसा भी मामला हो उचित अधिस्थगन काल सहित अधिकतम 10 वर्षों की अवधि के अंतर्गत चुकाया जाना है ।

आदिवासी वनवासी सशक्तिकरण योजना

योजना का उद्देश्य

भारत सरकार ने अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य परंपरागत वनवासियों के लिए (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 बनाया है। इस अधिनियम के अंतर्गत, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य परंपरागत वनवासियों को रहने और/अथवा खुद खेती करने या किसी अन्य परंपरागत गतिविधि के माध्यम से अपनी आजीविका  अर्जन हेतु वन भूमि धारण करने का अधिकार दिया गया है । इस प्रस्तावित योजना का प्रयोजन अनुसूचित जनजातियों के वनवासियों को भूमि को उत्पाद उपयोग योग्य बनाने के प्रति जागरूक बनाना,उनमें स्किल,अप-स्किल/रि-स्पिल पैदा करना, एनएसटीएफडीसी का रियायती वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना,बाजार में लिंकेज में सहायता करना, हैंड होल्डिंग समर्थन आदि उपलब्ध कराना हैं ।

पात्रता  की शर्तें

  1. अनूसूचित जनजाति का व्यक्ति, जिसे वन अधिकार अधिनियम, 2006 के अंतर्गत भूमि अधिकार प्राप्त है ।
  2. आवेदक के परिवार की वार्षिक आय गरीबी रेखा के दुगुनी (डीपीएल) से अधिक न हो।ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह आय सीमा 81,000/-रुपए तथा शहरी क्षेत्रों के लिए 1,04,000/-रुपए प्रतिवर्ष है।

सहायता राशि की प्रमात्रा

यूनिट लागत

इस योजना की इकाई लागत 1 लाख रुपए तक हो सकती है ।

सहायता की प्रमात्रा राशि

एनएसटीएफडीसी की ओर से  रियायती ऋण के रूप में 50% तक की सहायता तथा शेष राशि जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा राज्य सरकारों को जारी टी.एस.पी.निधि से राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसी की सब्सिडी के माध्यम से दी जाती है अथवा राज्य सरकारों के किसी स्रोतों  से उपलब्ध कराई जाती है ।

हैंडहोल्डिंग समर्थन

इसके लिए पारदर्शी तरीके से पूर्व निर्धारित चयन मानदंड के आधार पर चुने हुए गैर सरकारी संगठनों/अन्य चयनित निकायों द्वारा राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों/सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों/क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) को सहायता प्रदान किया जाएगा । यूनिट लागत का कुल 2%  हैंडहोल्डिंग निकायों, (जिसमें 1% योजना के अनुमोदन के पश्चात तथा 1% एक वर्ष के लिए योजना के सफल कार्यान्वयन पर) देय होगा । इसकी पूर्ति केन्द्र सरकार/राज्य सरकारों से सब्सिडी अवयव से की जाएगी ।

ब्याज दर

एनएसटीएफडीसी राज्य चैनेलाइजिंग स्रोतों/बैंकों से 2.50% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज प्रभारित करेगा । जबकि राज्य चैनेलाइजिंग स्रोतों/बैंक लाभार्थियों से 5% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज प्रभारित कर सकते हैं ।

पुनर्भुगतान अवधि

  1. योजना के लिए पुनर्भुगतान की अवधि कार्य की प्रकृति एवं ईकाई की धन अर्जन क्षमता के आधार पर निर्धारित की जानी है ।
  2. हालांकि ऋण की 05 वर्ष की अधिकतम अवधि के अंदर तिमाही किश्तों से वापस चुकाया जाना है जिसमें 06 महीने की अधिस्थगन अवधि (मोराटोरियम पीरियड) शामिल है ।

प्रस्तावित गतिविधियों की सूची

  • लघु सिंचाई
  • कृमि खाद
  • अधिक पैदावार वाले बीज
  • औषधीय/सजावटी पौधे
  • बागवानी
  • मुर्गी पालन
  • रबड़ की खेती
  • डेयरी
  • सुपारी बागवानी
  • भेड़/बकरी पालन
  • लघु वन उत्पाद
  • मधुमक्खी पालन
  • रेशम उत्पाद
  • फलों के बगीचे
  • पुष्प उत्पादन

नोट- उपरोक्त सूची केवल संकेतात्मक सूची है तथा आवेदक  आय अर्जन करने वाले किसी अन्य व्यवहारिक कार्य  भी कर सकते हैं ।

कार्यान्वयन /धन जारी करना

  1. राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियां आवेदकों के वर्तमान कौशल का आंकलन कर सकते हैं तथा जब भी आवश्यक, हो राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियां आवदेकों की पहचान करते हुए उन्हें समुचित प्रशिक्षण के लिए प्रायोजित कर सकते हैं ।
  2. राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों के विशेष अनुग्रह पर एनएसटीएफडीसी द्वारा मंजूर योजनाओं के लिए निधि जारी की जाएगी बशर्ते कि संवितरण हेतु निर्धारित मानकों जैसे निधियों का उपभोग, अतिदेय राशि का निपटान, सरकारी गारंटी, सब्सिडी इत्यादि, की पूर्ति करते हों ।

निधि उपभोग

  1. एनएसटीएफडीसी द्वारा निधियों के जारी होने की तिथि से 120 दिनों के भीतर राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों को निधियों का उपभोग करना है ।
  2. राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियां निधियों के उपयोग की तिथि से 90 दिनों के भीतर एनएसटीएफडीसी को निर्धारित प्रपत्र में सहायता प्राप्त लाभार्थियों की सूची सहित उपयोगिता रिपोर्ट भेजेंगी ।
  3. एनएसटीएफडीसी द्वारा निधियों के जारी होने की तिथि से एक वर्ष के भीतर निधियों का उपयोग न करने की स्थिति में राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियां तत्काल सारी राशि एनएसटीएफडीसी को वापस करेगी ।

अनूसूचित जनजातियों द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त करने की प्रक्रिया

  1. पात्र अनुसूचित जनजाति आवेदक अपने संबंधित राज्य/संघ राज्य क्षेत्र से वहां स्थित राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों के माध्यम से निर्धारित प्रपत्र पर ऋण हेतु आवेदन कर सकते हैं ।
  2. आवेदक संबंधित राज्य सरकार के सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी जनजाति एवं आय प्रमाण-पत्र के साथ भूमि मालिकाना हक की एक प्रति संलग्न करेंगे ।
  3. आवेदक द्वारा राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों को इस आशय का वचन-पत्र प्रस्तुत किया जाना अपेक्षित है कि आवेदक द्वारा उसी कार्य के लिए किसी अन्य स्रोत से ऋण  नहीं लिया गया है ।

बैंकों के माध्यम से वित्तीय सहायता

पात्र अनुसूचित जनजाति के वनवासी भारतीय सैन्ट्रल बैंक, वनांचल ग्रामीण बैंक एव शारदा ग्रामीण बैंक की शाखाओं के माध्यम से भी वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकते है।एनएसटीएफडीसी अन्य बैंकों के साथ भी पुनः वित्त प्रदान करने की व्यवस्था करता है । बैंकों के नाम है- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, यूको बैंक, सिंडिकेट बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, देना बैंक, विजया बैंक एवं असम ग्रामीण विकास बैंक, बैतरणी ग्राम्य बैंक, झारखंड ग्रामीण बैंक,त्रिपुरा ग्रामीण बैंक, बड़ौदा गुजरात ग्रामीण बैंक एवं देना गुजरात ग्रामीण बैंक । ये बैंक केवल स्व सहायता समूहों को सहायता देने के लिए पुनः वित्त की सुविधा ले रहे हैं । (अनुसूचित जनजाति के वनवासियों के लिए तात्कालिक योजना को कार्यान्वित करने के लिए एनएसटीएफडीसी द्वारा इन बैंकों से भी संपर्क किया जाएगा ।)

कार्यान्वयन

लाभार्थियों की लक्षित कवरेज का लक्ष्य

31.12.2012 के अनुसार, विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा 12.79 लाख अनुसूचित जनजातियों को टाइटल वितरित कर दिए गए हैं तथा करीब 14000 टाइटल वितरण हेतु तैयार  हैं । एनएसटीएफडीसी की वित्तीय सहायता के अंतर्गत इन सभी वन अधिकार धारकों को कवर किया जाना प्रस्तावित है ।

धन की आवश्यकता

लगभग 12.90 लाख वन अधिकार धारकों को कवर किए जाने हेतु प्रति लाभार्थी अधिकतम 1 लाख रुपए के हिसाब से यदि सभी आवेदक आर्थिक लाभ लेते हैं तो धन की कुल अधिकतम आवश्यकता 12,900/-करोड़ रूपए हो सकती है । फिर भी, यदि वास्तविक एकक लागत अथवा लाभर्थियों की संख्या में विभिन्नता होती है तो कुल धन की आवश्यकता उसी अनुपात में कम हो सकती है । इस कुल धनराशि का कुछ हिस्सा केन्द्र सरकार अथवा राज्य सरकारों द्वारा मिले सब्सिडी तथा शेष को एनएसटीएफडीसी के ऋण से पूरा किया जा सकता है । एनएसटीएफडीसी को अपने ऋण अवयव के अंशदान हेतु अतिरिक्त इक्विटी समर्थन की आवश्यकता होगी ।

प्रशिक्षण

एनएसटीएफडीसी से वन अधिकार धारकों को भी संबंधित क्षेत्रों में जरूरत के मुताबिक प्रशिक्षण दिया जा सकता है ।

प्रोन्नत

लक्ष्य समूह तक पहुंचने के लिए व्यापक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जाने की आवश्यकता होगी । निगम इस उद्देश्य के लिए जागरूकता शिविरों का आयोजन करेगा और/अथवा अन्य माध्यमों को अपनाएगा ।

विपणन

लाभार्थियों को अपने उत्पादों को मार्केट तक पहुंचाने हेतु एनएसटीएफडीसी उनकी सहायता  करेगा । ट्राइफेड तथा अन्य एजेंसियां इस कार्य में सहयोग प्रदान करेंगी ।

कौशल एवं उद्यमीय विकास कार्यक्रमों के लिए अनुदान

मानदंड

  1. अनुदान के रूप में वित्तीय सहायता रोजगार/स्व-रोजगार के अवसरों का सृजन करने के लिए सरकारी/ अर्ध-सरकारी/ स्वायत्त सरकारी निकाय(निकायों)के द्वारा आयोजित नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों के माध्यम से अनुदान के रूप में दी जाती है।
  2. इस योजना के अंतर्गत एनएसटीएफडीसी द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम के आवर्ती व्यय का 100% तक अनुदान के रूप में दिया जाता है ।
  3. राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियां प्रशिक्षण कार्यक्रम की सिफारिश करते समय प्रशिक्षित उम्मीदवारों को प्रशिक्षण के बाद उपयुक्त रोजगार/स्व-रोजगार प्राप्त करने में सहायता करने के लिए आवश्यक उपाय भी करेगी ।
  4. संबंधित प्रशिक्षण संस्थान प्रस्ताव के साथ प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के संबंध में सभी संगत सूचना भेजेगा जैसे पाठ्यक्रम उम्मीदवारों का आयु वर्ग शैक्षिक स्तर पाठ्यक्रम का मान्यता प्रमाणपत्र (यदि कोई हो) संस्थान के मुख्य कार्यकलापों से संबंधित ब्यौरा पहले से संचालित किए गए कार्यक्रम उनकी उपविधियों पंजीकरण प्रमाण-पत्र तथा वार्षिक रिपोर्टें (गत तीन वर्षों की यदि उपलब्ध हों) आदि।
  5. प्रस्ताव के अनुमोदन और राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों द्वारा शर्तों एवं निबंधनों को स्वीकृत कर लेने के बाद एनएसटीएफडीसी के अंश को दो किस्तों में अर्थात्‌ चुने गए उम्मीदवारों की सूची और विज्ञापन(विज्ञापनों) की प्रति (प्रतियों) यदि कोई हों के साथ चयन समिति की बैठक के कार्यवृत्त की प्राप्ति के पश्चात्‌ 70% निर्मुक्त किया जाएगा । शेष राशि को स्वीकृति की शर्तों और निबंधनों के अनुसार उसके कार्यान्वयन की शर्त पर केवल पाठ्यक्रम/प्रशिक्षण के पूर्ण होने के पश्चात निर्मुक्त किया जाएगा ।

अनुदान का उपयोग करने के लिए कार्यविधि

राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों द्वारा एनएसटीएफडीसी को विस्तृत प्रस्ताव भेजा जा सकता है।

स्रोत: एनएसटीएफडीसी (नेशनल शेड्यूल ट्राइब्स फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कारपोरेशन)

ट्राइबल कोआपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (ट्राईफेड)

लक्ष्य

भारत के आदिवासी लोगों के लिए विकास का कार्य करना उनके उत्पादों के सतत और व्यापक विपणन समर्थन और सहायता प्रदान करना और अन्य विकास कार्यों से जुड़े संस्थानों के साथ सामंजस्य करना प्राप्त करना जिससे उनकी आय में बढोतरी हो और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सके|

मिशन

जनजातीय लोगों के लिए स्थायी आजीविका प्रणालियों को बढ़ावा देना, उत्पादों के विकास और विपणन द्वारा लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने, न्यूनतम राशि सहायता उपलब्ध कराना और गैर इमारती लकड़ी वन उत्पाद ( लघु वनोपज ) का मूल्य समर्थन, उन्हें सशक्त बनाना क्षमता निर्माण के माध्यम से, अपने संसाधनों को बढ़ाने के मूल्य संवर्धन प्रदान करना, केन्द्र / राज्य सरकार की एजेंसियों और अन्य विकास भागीदारों के साथ विपणन साझेदारी को स्थापित करने में सहायता करना है|

ट्राईफेड के कार्यकलाप

जनजातीय उत्पादों के विपणन विकास

जनजातीय उत्पादों के विपणन विकास गतिविधि में ट्राईफेड की भूमिका एक सहायक और बाजार विकासकर्ता तथा सेवा प्रदाता के रुप में है। इसमें राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बाजारों में विपणन संभावनाओं की तलाश, दीर्घकालिक स्तर पर जनजातीय उत्पादों के विपणन अवसरों का सृजन आदि शामिल है। ट्राईफेड का मुख्य उद्देश्य देशभर में जनजातीय उत्पादों के विपणन विकास के माध्यम से जनजातियों के सामाजिक एवं आर्थिक विकास करना है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु ट्राईफेड, ट्राइब्स इण्डिया बिक्री केन्द्र के नाम से अपने 37 बिक्री केन्द्र एवं राज्य स्तरीय संस्थानों के साथ मिलकर कन्साइन्मेंट आधारित 7 बिक्री केन्द्रों के माध्यम से जनजातीय उत्पादों का विपणन कर रहा है।

ट्राईफेड जनजातीय शिल्पकारों, जनजातीय स्वयं सेवी समूहो/ एजेंसियों/जनजातियों के काम कर रही गैर सरकारी संस्थाओं ने विभिन्न प्रकार हस्तशिल्प, हथकरघा, प्राकृतिक व खाद्य उत्पादों की सोर्सिंग करता है तथा अपने बिक्री केन्द्रों एवं प्रदर्शनियों के माध्यम से बेचता है।

आदिशिल्प

ट्राईफेड राष्ट्रीय जनजातीय हस्तशिल्प प्रदर्शनी ”आदिशिल्प” का आयोजन करता है, जहाँ जनजातीय शिल्पकारों और समूहों/ संस्थाओं को प्रर्दशनी में भाग लेने एवं उनकी जनजातीय समृद्व विरासत की प्रर्दशनी हेतु आमंत्रित किया जाता है। इस प्रकार के आयोजन का मुख्य उद्देश्य जनजातीय शिल्पकारों को उनके हस्तशिल्पों की प्रदर्शनी करने एवं कला प्रेमियों से सीधे तौर पर मिलकर उनकी रुचि के बारे में जानने का अवसर प्रदान करता है। इससे उन्हें अपने उत्पादों के डिजाईन बृद्वि में सहायता मिलती है। यह जनजातीय कला एवं संस्कृति को समग्र रुप से प्रर्दशित करने का एक प्रयास है जिसके लिए चारो ओर से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है।

आदिचित्र

ट्राईफेड जनजातीय चित्रकारी की प्रर्दशनी हेतु ”आदिचित्र” का आयोजन करता है जिसमें जनजातीय चित्रकारी की प्रदर्शनी एवं बिक्री की जाती है। इसमें जनजातीय शिल्पकारों को उनकी कला प्रदर्शनी हेतु आमंत्रित किया जाता है। इससे मिलने वाली प्रतिक्रिया से उत्साहित होकर ट्राईफेड देश के विभिन्न स्थानों पर ऐसी कई प्रर्दशनियॉ आयोजित कर रहा है।

आक्टेव

आक्टेव सांस्कृतिक मंत्रालय भारत सरकार द्वारा पूर्वोत्तर नृत्य का एक उत्सव है जिसमें ट्राईफेड भागीदारी करता है। ट्राईफेड इस आयोजन से वर्ष 2008-09 से जुड़ा है । यह पूर्वोत्तर के शिल्पकारों की भागीदारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और उन्हें अपने उत्पादों की प्रर्दशनी एवं विपणन हेतु अवसर भी उपलब्ध कराता है।

विभिन्न घरेलू प्रर्दशनियों के अलावा ट्राईफेड हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद (ई.पी.सी.एच.) तथा भारत व्यापार संवर्धन संस्थान (आई.टी.पी.ओ.) के माध्यम से विभिन्न देशों में जनजातीय उत्पादों के प्रचार-प्रसार हेतु अंतरराष्ट्रीय प्रर्दशनियों/व्यापर मेलों में भागीदारी करता है। चालू वर्ष में ट्राईफेड ने दो अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों जैसे-आयात बिक्री केन्द्र बर्लिन, जर्मनी और ए.एफ.एल. मिलान, इटली में भागीदारी की।

लघुवन वनोपज प्रशिक्षण और विकास

‘नॉन टिम्बर फॉरेस्ट प्रोडक्ट’ जिसे प्रायः “लघुवन उत्पाद” की संज्ञा दी जाती है, जनजातियों की आजिविका का महत्वपूर्ण स्रोत है अर्थात पेड़ो से प्राप्त सभी ‘नॉन टिम्बर फॉरेस्ट प्रोडक्ट’ जिसमें बांस, बेत, चारा, पत्तियाँ, गोंद, मोम, रोगन, रेशिन और विभिन्न प्रकार खाद्य पदार्थो जैसे- नट्स, जंगली फल, शहद, लाख, ट्रसर इत्यादि शामिल हैं। लघुवन उत्पादों से जंगल में और जंगल के करीब रहने वाले लोगों को दोनों ही – नकद आय और जीविकोपार्जन के साधन भी प्राप्त होते हैं। ये न केवल उनके भोजन, फल, दवाईयाँ उपभोग की अन्य वस्तुओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि इनकी बिक्री के जरिये उन्हें नकद आय भी प्राप्त होती है। लघुबन उत्पाद हालांकि शुरु तो होता है ”लघु” शब्द से, लेकिन यह उन जनजातियों की आजीविका का मुख्य स्रोत है जो समाज के अत्यंत गरीब तबके से आते हैं। वन निवासियों के लिए लघुवन उत्पादों का आर्थिक एवं सामाजिक महत्व है, क्योंकि एक अनुमान के अनुसार लगभग सौ लाख लोग लघुवन उत्पादों के विपणन एवं संग्रहण के माध्यम से अपना जीविकोपार्जन करते हैं( राष्ट्रीय समिति की वन अधिकार अधिनियम, 2011 की रिपोर्ट )। समाज के इस तबके के लिए लघुवन उत्पादों की महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वनों में निवास करने वाले लगभग 100 लाख की आबादी अपने भोजन, आश्रय, दवाई एवं नकद आय के लिए लघुवन उत्पादों पर निर्भर करती है। यह न केवल उनके भोजन, आश्रय, दवाई एवं नकद आय के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि खेती के खाली मौसम के दौरान विशेषकर प्राचीन जनजातीय समूहों जैसे शिकारियों एवं भूमिहीन जनजातियों को महत्वपूर्ण जीविका का महत्वपूर्ण साधन प्रदान करता है। जनजातीय, अपनी वार्षिक आय का लगभग 20- 40% हिस्सा लघुवन उत्पादों से प्राप्त करते हैं जिस पर वे अपना सबसे ज्यादा समय व्यतीत करते हैं। यह गतिविधि महिलाओं के वित्तीय सशक्तिकरण से भी मजबूती से जुड़ा हैं क्योंकि अधिकतर लघुवन उत्पाद महिलाओं द्वारा संग्रहित एवं उपयोग/ बिक्री किये जाते हैं। लघुवन उत्पाद क्षेत्र के पास सालाना 10 लाख कार्य दिन सृजित करने की क्षमता है।

लघुवन उत्पादों के लिए न्यूनतम सर्मथन मूल्य (एम.एस.पी.)

भारत सरकार ने जनजातियों के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए कई पहल किए हैं एवं जनजातियों के लिए लघुवन उत्पादों की महत्ता, रोजगार के अवसरों की इसकी व्यापक क्षमता, देश के पिछड़े जिलों में गरीबी को कम करने एवं जनजातियों को सशक्त करने विशेषकर महिलाओं, गरीबों एवं देश के पिछड़े इलाकों को सशक्त करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने जनजातियों द्वारा संग्रहित लघुवन उत्पादों के के लिए उचित मूल्य दिलाने व उचित मूल्य दिलाने व उनके उनकी आय में बृद्वि तथा लघुवन उत्पादों की दीर्घकालिक कटाई सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किया गया है। लघुवन सर्मथन मूल्य योजना का मुख्य उद्देश्य जनजातियों द्वारा संग्रहित लघुवन उत्पादों के उचित मूल्य, उचित मूल्य पर खरीदी का अश्वासन, भण्डारण, प्राथमिक प्रसंस्करण, ढुलाई आदि को सुनिश्चित करते हुए स्रोत आधार की दीर्घकालिकता को बनाये रखना है। इस योजना के तहत निम्नलिखित मदों के लिए न्यूनतम मूल्य की सुनिश्चितता, खरीदी एवं राज्य खरीदी एजेंसियों द्वारा पूर्वनिर्धारित न्यूनतम सर्मथन मूल्य हेतु विपणन, संचालन आदि शामिल हैं।

1.तेन्दू पत्ता 2.बांस 3. महुआ बीज 4. साल पत्ता 5. साल बीज 6. लाख 7. चिरौंजी 8. जंगली शहद 9. हरड़ 10. इमली 11. गोंद (गम कराया) 12. करंज

भविष्य के लिए खरीद एकाधिकार दायरे से हटाई गई कोई भी राष्ट्रीयकृत लघुवन उत्पाद भी इस योजना के तहत शामिल किये जा सकेगें। इस तरह कोई भी राष्ट्रीयकृत/एकाधिकृत लघुवन उत्पाद खरीदी इस योजना के भीतर नहीं आ सकेंगें। जनजातियों द्वारा स्वयं के लिए उपयोग किये जाने वाले महुआ फूल को भी न्यूनतम सर्मथन मूल्य के दायरे से बाहर रखा गया है। पर अगर कोई राज्य किसी भी राष्ट्रीयकृत मद को न्यूनतम सर्मथन मूल्य में शामिल करने को इच्छुक हो तो उसे उसके अनुसार अपने राष्ट्रीयकृत विवरण को बदलना होगा। योजना को प्रारंभ में तौर पर निम्नलिखित पेसा राज्यों में लागू किया जायेगा (हिमाचल प्रदेश के अलावा) “ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र व राजस्थान।

योजना का उद्देश्य

इस योजना को निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ आंरभ किया गया है

  1. लघुवन उत्पाद संग्रहकों को उनके द्वारा संग्रहित उत्पादों के उचित मूल्य दिलाने एवं उनकी आय मेंवृद्धि  करने हेतु।
  2. लघुवन उत्पादों के दीर्घकालिक कटाई को सुनिश्चित करने हेतु।
  3. इस योजना का लघुवन उत्पाद संग्रहकों के लिए व्यापक सामाजिक भागीदारी है जिनमें अधिकतर जनजातीय है।

लघुवन उत्पाद विपणन विकास एवं इसकी मूल्य श्रृंखला और स्थानीय स्तर पर आवश्यक ढांचागत विकास की एक समग्र योजना है। न्यूनतम सर्मथन मूल्य योजना का उद्देश्य जनजातियों द्वारा संग्रहित उत्पादों के उचित मूल्य , एक खास मूल्य पर खरीदी की सुनिश्चितता, प्राथमिक प्रसंस्करण भण्डारण, ढुलाई आदि तथा स्रोत आधार को सुदृढ करने हेतु एक ढांचा तैयार करना है।

योजना की मुख्य बातें

  1. जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार योजना को लागू व निगरानी करने वाली एक नोडल एजेंसी होगी। जनजातीय कार्य मंत्रालय ट्राईफेड के तकनीकी सहयोग से चयनित लघुवन उत्पादों के लिए न्यूनतम सर्मथन मूल्य (एम एस पी) घोषित करेगी ।
  2. ट्राईफेड, राज्य स्तरीय लागू करने वाली एजेंसियों के जरिये इस योजना को लागू करने वाली एक केन्द्रीय नोडल एजेंसी होगी।
  3. ट्राईफेड के मूल्य प्रकोष्ठ की सिफारिशों के आधार पर केन्द्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट लघुवन उत्पादों के लिए न्यूनतम सर्मथन मूल्य की घोषणा आदि योजना का आधारभूत हिस्सा है, शामिल है। मूल्य प्रकोष्ठ पहले से ही प्रबंध निदेशक, ट्राईफेड की अध्यक्षता में कार्य कर रहा है, जिसमें योजना आयोग, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारतीय वन्य प्रबंधन संस्थान, भारतीय वन शोध एवं शिक्षा परिषद, राष्ट्रीय अनुप्रयुक्त आर्थिक अनुसंधान परिषद एवं संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों के प्रतिनिधि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त प्राधिकृत राज्य स्तरीय खरीदी एजेंसियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को भी इसमें मुख्य अतिथि के रुप में आमंत्रित किया जायेगा।
  4. राज्य नामित एजेंसियाँ, हाटों/ गाँवो से पूर्व अधिसूचित खरीदी केन्द्र से पूर्व निर्धारित न्यूनतम सर्मथन मूल्य पर लघुवन संग्राहकों से (व्यक्तिगत या सामूहिक) तौर पर अधिसूचित लघुवन उत्पादों की खरीदी करेगी और देशभर में लघुवन उत्पाद संग्राहकों को समय पर भुगतान किये जाने को सुनिश्चित करेंगी। राज्य, पर्याप्त संख्या में खरीदी केन्द्रों की व्यवस्था एवं आवश्यक मानव शक्ति तथा भण्डारण सुविधा सुनिश्चित करेंगी ताकि लघुवन उत्पाद संग्राहकों की आवश्यकता पूरी करने और उन्हें बिचौलियों के शोषण से बचाने के लिए राज्य खरीदी एजेंसियाँ उचित संग्रहण, ढुलाई, रख रखाव एवं भण्डारण की व्यवस्था करेगी ताकि उत्पाद की गुणवत्ता को बरकरार रखा जा सकें। खरीदी एजेसियों द्वारा क्षेत्र में काम करने वाले कार्य कर्ताओं के लिए सक्षम एवं पारदर्शी खरीदी के लिए उचित दिशा निर्देश, प्रचालन निगरानी जारी किया जायेगा।
  5. परिक्रमी निधि (रिवाल्विंग फंड) -राज्य सरकारी एजेंसियाँ न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के तहत लघुवन उत्पादों का विपणन, संचालन एवं खरीदी करेंगी। प्रत्येक अधिसूचित राज्य को संग्रहकों से पूर्व निर्धारित न्यूनतम सर्मथन मूल्य पर लघुवन उत्पादों की खरीदी हेतु परिक्रमी निधि दी जायेगी। प्रत्येक राज्य के लिए परिक्रमी निधि की आवश्यकता को वार्षिक खरीदी योजना के आधार पर मूल्यांकित किया जायेगा। केन्द्र के साझेदारी के रुप में रुपये 345 करोड़ के परिक्रमी निधि का प्रावधान किया गया है और शेष 25% राशि राज्य सरकार द्वारा प्रबंधित की जायेगी।
  6. अनुदान आवश्यकता – न्यूनतम सर्मथन मूल्य प्रचालन के दौरान होने वाले घाटे को पाटने के लिए राज्यों के लिए अनुदान जरुरी होगा। यह निश्चित तौर पर गरीबी रोधी मापक है जो देश के अत्यंत गरीब तबकों की आजीविका की समस्या बताता है। अधिसूचित राज्य खरीदी एजेंसियाँ वार्षिक आधार पर प्रत्येक वस्तु से संबंधित लेखाओं को अन्तिम रुप देगी और प्रमाणित लेखाओं के आधार पर राज्य खरीदी एजेंसियों को अधिकतम 75% तक अनुदान दिया जायेगा और शेष 25% राज्य द्वारा वहन किया जायेगा। इस उद्देश्य हेतु बजट में रुपये 285 करोड़ का प्रावधान किया गया है।
  7. इस योजना के तहत एक लाख जनजातीय लघुवन उत्पाद संग्रहकों को दीर्घकालीन कटाई एवं मूल्य संवर्धन गतिविधियों तथा विपणन प्रक्रिया आधारित प्रशिक्षण दिया जायेगा।
  8. बाजार सूचना तंत्र – संपूर्ण एवं उचित बाजार सूचना की उपलब्धता एवं प्रसार ही प्रचालन एवं मूल्य क्षमता प्राप्त करने की कुंजी है। अतः सूचना एवं संचारन तकनीकी आधारित योजना लागू करने हेतु लघुवन उत्पादों के लिए एम.एफ.पी. नेट पोर्टल बनाये जा रहे हैं। इसका उद्देश्य देश भर में बाजार सूचना आंकड़ों के त्वरित संग्रहण एवं बाजार सूचना वितरण को स्थापित करना है ताकि सही समय पर इसका सक्षम उपयोग किया जा सके।
  9. हाटों का आधुनिकीकरण, मुख्य स्थानों पर भण्डारण सुविधा एवं प्रशिक्षण एवं क्षमतावर्धन हेतु बहुउद्देश्यीय केन्द्रों का निर्माण, मूल्यवर्धन एवं भण्डारण आदि भी इस योजना के महत्वपूर्ण भाग हैं।
  10. ग्राम सभा में पारदर्शिता एवं उनके उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करने हेतु सभी खरीदी एजेंसियाँ, ग्राम सभाओं के साथ स्थानीय लेखाओं तथा न्यूनतम सर्मथन मूल्य प्रचलन से जुड़ी सूचनायें साझी करेंगी।
  11. केन्द्र की साझेदारी के रुप में वर्ष 2013-14 से 2016-17 की योजना अवधि हेतु इस योजना का कुल व्यय रुपये 967 करोड़ है।

प्रशिक्षण

ट्राईफेड, लघुवन उत्पादों के विपणन विकास के अपने प्रयासों में जनजातियों की आय वृद्धि  हेतु अहानिकारक कटाई , प्राथमिक प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन एवं लघुवन उत्पादों के विपणन आधारित प्रशिक्षण के जरिये लघुवन उत्पाद संग्राहकों का क्षमतावर्धन एवं कौशल उन्नयन कर रहा है। ट्राईफेड ने पिछले पाँच वर्षो में लगभग 5600 संग्राहकों को दीर्घकालिक संग्रहण, कटाई, प्राथमिक प्रसंस्करण, शहद के मूल्यवर्धन एवं विपणन, गोंद कतीरा, महुआ फूल, लाख, दोना पत्तल निर्माण , पहाड़ी घास और बांस की खेती पर आधारित वृहत प्रशिक्षण दिया है। जनजातीय विकास के लिए कार्य कर रही सूचीबद्ध  एम्प्लेमेंटिंग एजेंसियों के माध्यम से इन प्रशिक्षणों का आयोजन किया जाता है।

ऐसा माना गया है कि लघुवन उत्पादों के मूल्य संवर्धन के बगैर लघुवन उत्पाद संग्राहकों को लाभकारी मूल्य प्रदान नहीं किया जा सकता। तदनुसार ट्राईफेड ने अपने प्रशिक्षण कार्यक्रम में, आगे और पीछे के जुडाव (फारवर्ड और बैकवर्ड लिन्केज) को प्रशिक्षण के एक महत्वपूर्ण भाग के रुप डिजाईन किया है। लाभार्थियों को सशक्त करना, ट्राईफेड के आपूर्तिकर्ताओं के रुप में जोड़कर उन्हें सूचना प्रदान करना तथा जहॉ तक संभव हो उन्हें विभिन्न बाजार माध्यमों से जोड़ना इसका प्रशिक्षण उद्देश्य है। ट्राइफेड के प्रशिक्षण कार्यक्रमों को दो श्रेणियों में रखा जा सकता है –

  1. जो प्रशिक्षण के परिणामस्वरुप बाजारीकृत उत्पादों के उत्पादन पर आधारित है जिसके आधार पर राज्य के सहयोग से कोई उद्यम शुरु किया जा सकता है। ऐसे प्रशिक्षण पहाड़ी घास, इमली, दोना पत्तल, आंवला, शहद एवं कृषि आधारित उत्पाद जैसे- मसाले जड़ी-बूटी, काजू आदि के मूल्यवर्धन पर आधारित प्रशिक्षण शामिल है। इसके तहत प्रशिक्षणार्थियों को बाजार से जुड़ाव स्थापित करने एवं अपना उद्यम शुरु करने हेतु सहायता प्रदान की जायेगी। हालांकि आरंभ में, ट्राईफेड उपकरण किट भी देगा जो लंबे समय तक दीर्घकालिकता को सुनिश्चित करने एवं राज्य सरकार की साझेदारी से अपना उद्यम शुरु करने हेतु उनके के लिए यह सहायक होगा। राज्य सरकार की साझेदारी से लाभार्थियों के आधार विस्तारण के जरिये द्वारा अभिसरण को सुनिश्चित किया जायेगा। कार्यशील पूंजी ऋण, अनुदान, सब्सीडी, ढाँचागत सहायता आदि के रुप में प्रशासनिक एवं वित्तीय सेवा के जरिये यह एक सकारात्मक रुप में प्रशंसात्मक एवं पूरक पहल होगी । ट्राईफेड के ”ट्राइब्स इंण्डिया” बिक्री केन्द्र या उनके द्वारा स्थापित बिक्री केन्द्रों के जरिये उत्पादों के विपणन को भी इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के एक हिस्से के रुप में बाजार जुड़ाव के जरिये किया जाना प्रस्तावित है। उन्हें उनके उत्पादों को स्थानीय बाजारों में सुव्यवस्थित तरीके से बेचने के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा ताकि बिना किसी बाहरी एजेंसी के लगातार सहयोग के बगैर वे अपने उद्यम को खुद नियंत्रण कर सकें। ऐसे लघुवन उत्पादों के लिए एक ब्रांण्ड स्थापित करने का एक प्रस्ताव है जो ऐसे उत्पादों को खुदरा बाजारों में बेचने हेतु एक अलग पहचान प्रदान करेगा।
  2. शुद्ध  रुप से क्षमता विकास प्रशिक्षण है जिसके तहत जनजातियों को वैज्ञानिक तरीके से लघुवन उत्पादों के संग्रहण, कटाई, उत्पादन आदि के बारे में इनपुट दिये जाते हैं जिससे न केवल उत्पादों की गुणवत्ता और परिमाण में वृद्धि  होगी बल्कि पर्यावरण भी संरक्षित होगा। इन प्रशिक्षणों से लाख की खेती, वृक्षजनित तेल बीज के प्रसंस्करण व वैज्ञानिक तरीके से मुहआ के फूलों के विपणन गतिविधियों के जरिये उनकी आजीविका में वृद्धि  होगी। यह विशुद्ध  रुप से क्षमता विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम है जिसमें उन्हें उत्पादों की गुणवत्ता और परिमाण में वृद्धि  के बारे में प्रशिक्षित किया जायेगा ताकि उनकी आय में वृद्धि  हो सके। उन्हें स्वयं सहायता समूहों के तरीकों से कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है और उनकी आय में वृद्धि  हेतु सामूहिक रुप से कार्य करने के लिए प्रशिक्षित किया जायेगा।

लघुवन उत्पाद विकास

वर्ष लाभार्थी खर्च (रुपये लाखों में)
2007-08 11866 604
2008-09 8026 650
2009-10 9217 450
2010-11 7263 362
2011-12 5775 170
2012-13 6720 365
2013-14 3520 952
हस्तकला प्रशिक्षण

भारत में अनंतकाल से हस्तशिल्प क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों से लोगों में सन्निहित रचनात्मक कौशल से कार्य करने के कौशल को पीढ़ी दर पीढ़ी स्वाभाविकता के साथ बढ़ाता आ रहा है। बाद में लोग अपने जीविकोपार्जन हेतु इस क्षेत्र पर और ज्यादा  निर्भर हो गये जिससे यह एक फलती-फूलती आर्थिक गतिविधि बन गई। हालांकि वैश्विक मंदी, औद्योगिक सुस्ती, प्राकृतिक आपदा आदि के  कारण इस क्षेत्र में, निर्यात व वैदेशिक मुद्रा आय के लिहाज से थोड़ी मंदी आई है,फिर भी देशभर में लगभग 8 लाख दस्तकारों को जिसमें ज्यादातर सामाजिक आर्थिक रुप से गरीब एवं पिछड़े वर्ग से हैं, को इससे रोजगार (अल्पकालिक व पूर्णकालिक) प्राप्त होता है।

वर्तमान में, हस्तशिल्प देश के कुल घरेलू उद्योग में 1/5 की भागीदारी रखता है, पर दुर्भाग्य से इस क्षेत्र से प्राप्त राजस्व दस्तकारों तक नहीं पहुँच पा रहा है और दस्तकार अभी भी अपनी निरंतर कमाई और समय के साथ बदल रहे बाजारीकृत डिजाईन के प्रर्दशन हेतु बिचौलिये, व्यापारी और निर्यातको की दया पर आश्रित है। इस समस्या के समाधान व इस क्षेत्र से जुड़े जनजातीय दस्तकारो और हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए, ट्राईफेड द्वारा कौशल उन्नयन प्रशिक्षण एवं डिजाईन विकास कार्यशाला को परिकल्पित किया गया है।

ट्राईफेड के अधिदेश के अनुसार सुविधाहीन हस्तशिल्प दस्तकार के समूहों में से जनजातीय दस्तकार ही लक्षित लाभार्थी होंगे। ये जनजातीय लाभार्थी व्यक्तिगत तौर पर अपने घर पर ही हस्तशिल्प कार्य करते हैं। अतः हस्तशिल्प वस्तुओं के निर्माण व बिक्री लागत श्रम व प्रयासों की तुलना में उनकी पारिवारिक आय निकृष्ट रुप से बहुत ही कम है। अतः उन्हें उत्पादक समूहों के रुप में संगठित किये जाने और मंच दिये जाने की जरुरत है, ताकि वे ट्राईफेड सहित सरकारी संस्थानों द्वारा  किये जा रहे कार्यो से फायदा उठा सकें। इस हेतु ट्राईफेड निम्नलिखित गतिविधियाँ लागू कर रहा है।

  1. जनजातीय दस्तकारों के लिए क्षमतावर्धन प्रशिक्षण एवं डिजाईन विकास कार्यशाला।
  2. जनजातियों को इकट्ठा करने के लिए अन्य संस्थाओं के साथ नेटवर्किंग और उन्हें तकनीकी व बाजार सहयोग देना।
  3. बाजार रुचि व चुनाव के अनुसार प्रचलित डिजाईन चलन हेतु अग्रणी डिजाईन संस्थानों के साथ मिलकर प्रशिक्षण देना।
  4. संघ के रुप में जनजातीय दस्तकार समूह का संस्थानीकरण।
  5. जनजातीय दस्तकार मेला (टैम)
अनुसंधान और विकास

ट्राईफेड, विभिन्न नान टिम्बर फारेस्ट उत्पाद को प्रायोजित कर अनुसंधान के माध्यम से शोध एवं विकास कार्य कर रहा है। ट्राईफेड के परिप्रेक्ष्य, में शोध एवं विकास एक महत्वपूर्ण पहलू है।क्योंकि विभिन्न आय, आयुवर्ग एवं सांस्कृतिक पृष्ठ भूमि वाले जनजातीय आजीविका के निर्वहन हेतु नॉन टिम्बर फॉरेस्ट उत्पाद की कटाई, । सांस्कृतिक व पारंपरिक परंपराओं का निर्वहन, अध्यात्मिक तुष्टि, शारीरिक एवं मानसिक कल्याण, वैज्ञानिक ज्ञानार्जन एव आय अर्जित करते हैं लेकिन अभी भी वे पारंपरिक रुप से संग्रहण व सीमित उपयोग के साथ प्रसंस्करण तकनीकी का प्रयोग तथा कच्चे रुप में ही न्यूनतम प्रसंस्करण पर ही उत्पादों का विपणन करते हैं जो ज्यादातर नॉन टिम्बर फॉरेस्ट उत्पाद है और देश में कुछ ही ऐसे संस्थान है जो लघुवन उत्पादों पर काम कर रहे हैं। इस परिप्रेक्ष्य में नॉन टिम्बर फॉरेस्ट उत्पाद पर आधारित शोध एवं विकास का जनजातीय संग्रहकों की आय में वृद्धि  करने कठिन परिश्रम व बर्बादी को कम करने और जनजातियों की क्षमता बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान है। ट्राईफेड जनजातीय उत्पादों को विपणन सहायता प्रदान करने वाली एक शीर्ष संस्थान के रुप में जनजातीय कार्य मंत्रालय के वित्तीय सहयोग से शोध एवं विकास योजनाओं को प्रायोजित करने का कार्य कर रहा है।

उद्देश्य

ट्राईफेड द्वारा नॉन टिम्बर फॉरेस्ट उत्पाद पर आधारित शोध एवं विकास योजनाओं की पहल के उद्देश्य इस प्रकार है-

  1. उपलब्ध नॉन टिम्बर फॉरेस्ट उत्पाद के सर्वोत्तम उपयोग हेतु नये अल्प मूल्य प्रसंस्करण/तकनीकी परिशोधन किये जाते हैं ताकि जनजातियों तक इसका सीधा लाभ पहुँच सके।
  2. उपकरणों, तरीको, प्रक्रियाओ व निधियों का विकास जिससे दीर्घकालिक स्तर पर ‘नॉन टिम्बर फॉरेस्ट प्रोडक्ट’ के संग्रहण व खेती को बढ़ाया जा सके जिससे उनके कठिन परिश्रम व बर्बादी को कम कर जनजातियों का क्षमतावर्धन किया जा सके।
  3. नान टिम्बर फॉरेस्ट उत्पाद की कटाई के उपरांत प्रबंधन जिसमें भंण्डारण, छटाई, सफाई, धूल मिट्टी की सफाई वैज्ञानिक भण्डारण, बर्बादी को कम कर मूल्य वर्धन आदि के तकनीकी का उचित विकास।
  4. जंगलों की दीर्घकालिकता सुनिश्चित करने हेतु टिकाऊ कटाई तकनीक।
  5. नान टिम्बर फॉरेस्ट उत्पाद के मूल्य वर्धन के जरिये आय में वृद्धि  ।

ट्राईफेड नवीन एवं अभिनव उत्पादों/तरीकों के विकास हेतु विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों जैसे भारतीय तकनीकी संस्थान , आई.आई.सी.टी. हैदराबाद, सी.एफ.टी.आर.आई. मैसूर, विश्वविद्यालयों के द्वारा शोघ एवं विकास परियोजनाओं के द्वारा शोध एवं विकास परियोजनाओं को प्रायोजित कर रहा है ताकि लघुवन उत्पादों के मूल्य बढ़ाये जा सके और जनजातियों की आय में वृद्धि  की जा सके । विगत कुछ वर्षो में ट्राइफेड ने 10 ऐसे शोध एवं विकास परियोजनाओं को प्रायोजित किया है जो पूरे होने वाले है और व्यवसायिकता के विभिन्न चरणों से गुजर रहे हैं।

शोध एवं विकास परियोजनाओं की स्थिति

सफलतापूर्वक पूरी की गई परियोजनाएँ

  1. खनिज एवं पदार्थ तकनीकी संस्थान (आई.एम.एम.टी.) भुवनेश्वर द्वारा गुणवत्ता पूर्ण लघुवन उत्पादों के उत्पादन के लिए समेकित कटाई तकनीकी का विकास -इस शोध अध्ययन से कम कीमत की हाइब्रिड ड्रायर विकसित की गई है जिससे लघुवन उत्पादों को दीर्घावधि तक बचाया जा सके और जनजातियों द्वारा प्रयोग किया जा सके।
  2. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान(आई.आई.टी.)तथा सूचना एवं प्रौद्योगिकी जे.पी. विश्वविद्यालय (जे.यू.आई.टी.) सोलन द्वारा संयुक्त रुप से महुआ फूलों से पौष्टिकारक पेय का उत्पादन -महुआ फूल के अर्क के साथ अमरुद के अर्क को मिलाकर महुआ की शराब तैयार की जाती है। विकसित शराब में रोग प्रतिरोधक क्षमता पाई गई है। इसका वैद्यीकरण, पेटेन्ट एवं बाजार परीक्षण जारी है।
  3. बेल फल से स्वास्थवर्धक उत्पादों का निर्माण-सी.एफ.टी.आर.आई. मैसूर द्वारा विकसित उत्पादों से रोग प्रतिरोधक, अल्सर रोधक, मधुमेह रोधक एवं कैंसर रोधक क्षमताओं का मूल्यांकन, इस परियोजना को पूरा किया जा चुका है और बाजार में इसका परीक्षण भी किया जा चुका है जिससे अच्छी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई है। इस उत्पाद को हमारी उत्पाद श्रृंखला में रुपात्मक रुप से शामिल किए जाने को लगभग तय किया जा चुका है।

लघुवन उत्पादों के मूल्यवर्धन पर जारी शोध एवं विकास परियोजनाएँ –

बी.आई.टी. तकनीकी संस्थान, मेसरा द्वारा इमली के बीज, साल के बीज तेल और करंज तेल से कम लागत पर स्वास्थ्यवर्धक उत्पादों का निर्माण- इस परियोजना को मार्च 2013 में प्रारंभ किया गया था और यह अध्ययनाधीन है। यह परियोजना दो वर्ष के लिए है।पूरी की जा चुकी परियोजनाएँ जिनके शोध परिणामों के मानकीकरण/व्यवसायीकरण के लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता है ।पूर्व में किए गये शोध एवं विकास अध्ययनों/अनुसंधानों से अभिनव उत्पादों एवं प्रक्रियाओं को विकसित करने में सहायता मिली है। हांलाकि इन्हें बाजार में उतारने से पूर्व व्यापक स्तर पर इन शोध अध्ययनों को मानकीकृत किए जाने की आवश्यकता है। ट्राईफेड निम्नलिखित परियोजनाओं के मानकीकरण के लिए अन्य एजेंसियों से वित्तीय सहायता की संभावनाएँ तलाश रहा है।

  1. साल के तेल केक से जैविक खाद, जैविक कीटनाशक एवं नाईट्रीफिकेशन अवरोधक की खोजः इस शोध से साल से खाद तैयार की गई है और उससे फसलों की उत्पादकता में काफी बढ़ोतरी हुई है। साल खाद के व्यवसायीकरण से इसके अध्ययन परिणामों को मानकीकृत किये जाने की आवश्यकता है।
  2. बंगाल इंजीनियरिंग विज्ञान एवं तकनीकी संस्थान (बी.ई.एस.टी.यू., हाबड़ा) द्वारा साल केक से टै नीन एवं स्टार्च का विकासः इस परियोजना के तहत साल डी.ओ.सी. से टैनिन, स्टार्च, प्रोटीन एवं घुलनशील कार्बोहाईड्रेड को परिष्कृत किया गया है। परिष्कृत किये गये टैनिन, स्टार्च एवं प्रोटीन का विभिन्न उद्योग क्षेत्रों में उपयोग किया जा सकता है।

स्रोत: ट्राइबल कोआपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (ट्राईफेड)

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