सर्वप्रथम न्यूज़ आदित्य राज पटना:-
भूमिका
हाल ही में भारत सरकार ने जनजातीय समुदाय के लोगों को लाभान्वित करने के लिये वन धन विकास योजना लांच की है। इस योजना को स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने 14 अप्रैल 2018 को संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के जन्मदिवस के मौके लांच किया था।
प्रधानमंत्री द्वारा 14 अप्रैल, 2018 को बीजापुर में वन धन विकास केंद्र का शुभारंभ करने तथा जन धन, वन धन तथा गोवर्धन योजनाओं को एकजुट करने के उनके आग्रह पर भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय ने देश के जनजातीय ज़िलों में वन धन विकास केन्द्रों का विस्तार करने का प्रस्ताव किया है। इस कार्य हेतु आवश्यक दिशा निर्देश तय करने का कार्य किया जा रहा है।
योजना का परिचय
योजना के अनुसार, ट्राइफेड(ट्राइबल कोआपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया) गौण वनोत्पाद (एमएफपी) आधारित बहुउद्देशीय वन धन विकास केंद्र स्थापित करने में मदद करेगा। यह 10 स्वयं सेवी समूहों (एसएचजी) का केंद्र होगा, जिसमें जनजातीय क्षेत्रों में 30 एमएफपी एकत्रित करने वाले शामिल होंगे।
वन धन मिशन गैर-लकड़ी के वन उत्पादन का उपयोग करके जनजातियों के लिए आजीविका के साधन उत्पन्न करने की पहल है। जंगलों से प्राप्त होने वाली संपदा, जो कि वन धन है, का कुल मूल्य दो लाख करोड़ प्रतिवर्ष है। इस पहल से जनजातीय समुदाय के सामूहिक सशक्तिकरण को प्रोत्साहन मिलेगा। वन धन योजना का उद्देश्य परंपरागत ज्ञान और कौशल को सूचना प्रौद्योगिकी की मदद से और निखारना भी है। वन संपदा समृद्ध जनजातीय जिलों में वन धन विकास केंद्र जनजातीय समुदाय के जरिये संचालित होंगे। एक केंद्र 10 जनजातीय स्वयं सहायता समूह का गठन करेगा। प्रत्येक समूह में 30 जनजातीय संग्रहकर्ता होंगे। एक केंद्र के जरिये 300 लाभार्थी इस योजना में शामिल होंगे।
गौण वन उपज (एमएफपी) वन क्षेत्र में रहने वाले जनजातीयों के लिए आजीविका के प्रमुख स्रोत हैं। समाज के इस वर्ग के लिए एमएफपी के महत्व का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि वन में रहने वाले लगभग 100 मिलियन लोग भोजन, आश्रय, औषधि एवं नकदी आय के लिए एमएफपी पर निर्भर करते हैं। इसका महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण से भी मजबूत संबंध है क्योंकि अधिकांश एमएफपी का संग्रहण, उपयोग एवं बिक्री महिलाओं द्वारा की जाती है।
वन धन विकास केंद्र
जनजातीय मामले मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ राज्य के बीज़ापुर जिले में प्रायोगिक आधार पर पहले बहुद्देश्यीय वन धन विकास केंद्र की स्थापना को मंज़ूरी दी है। इस केंद्र की स्थापना का मुख्य लक्ष्य कौशल उन्नयन तथा क्षमता निर्माण प्रशिक्षण प्रदान करने के साथ-साथ प्राथमिक प्रस्संकरण एवं मूल्य संवर्द्धन सुविधा केंद्र की स्थापना करना है।
इस पहले वन धन विकास केंद्र मॉडल के कार्यान्वयन, प्रशिक्षण, प्राथमिक स्तर पर प्रसंस्करण के लिये उपकरण तथा औज़ार उपलब्ध कराने और केंद्र की स्थापना के लिये बुनियादी ढाँचे तथा भवन निर्माण हेतु 43.38 लाख रुपए का आवंटन किया जाएगा।
- आरंभ में इस केंद्र में टेमारिंड ईंट निर्माण, महुआ फूल भंडारण केंद्र तथा चिरौंजी को साफ करने एवं पैकेजिंग के लिये प्रसंस्करण सुविधा होगी।
- टीआरआईएफईडी ने छत्तसीगढ़ के बीजापुर ज़िले में इस प्रायोगिक विकास केंद्र की स्थापना का कार्य सीजीएमएफपी फेडरेशन को सौंपा है तथा बीजापुर के कलेक्टर समन्वय का कार्य करेंगे।
- जनजातीय लाभार्थियों के चयन एवं स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के निर्माण का कार्य टीआरआईएफईडी द्वारा आरंभ किया गया है। 10 अप्रैल, 2018 से इसका प्रशिक्षण आरंभ होने का अनुमान है।
- आरंभ में वन धन विकास केंद्र की स्थापना एक पंचायत भवन में की जा रही है जिससे कि प्राथमिक प्रक्रिया की शुरुआत एसएचजी द्वारा की जा सके। इसके अपने भवन के पूर्ण होने के बाद केंद्र उसमें स्थानांतरित हो जाएगा।
- वन धन विकास केंद्र एमएफपी के संग्रह में शामिल जनजातियों के आर्थिक विकास में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर सिद्ध होगा जो उन्हें प्राकृतिक संसाधनों का ईष्टतम उपयोग करने और एमएफपी समृद्ध ज़िलों में टिकाऊ एमएफपी आधारित आजीविका उपयोग करने में उनकी सहायता करेंगे।
- गौण वन उपज (एमएफपी) वन क्षेत्र में रहने वाले जनजातियों के लिये आजीविका के प्रमुख स्रोत हैं। समाज के इस वर्ग के लिये एमएफपी के महत्त्व का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि वन में रहने वाले लगभग 100 मिलियन लोग भोजन, आश्रय, औषधि एवं नकदी आय के लिये एमएफपी पर निर्भर करते हैं।
योजना का उद्देश्य
- इस पहल का उद्देश्य प्राथमिक स्तर पर एमएफपी में मूल्य वृद्धि कर ज़मीनी स्तर पर जनजातीय समुदाय को व्यवस्थित करना है।
- इसके तहत जनजातीय समुदाय के वनोत्पाद एकत्रित करने वालों और कारीगरों के आजीविका आधारित विकास को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है।
- इस पहल के ज़रिये गैर लकड़ी वनोत्पाद की मूल्य श्रृंखला में जनजातीय लोगों की भागीदारी वर्तमान 20 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 60 प्रतिशत होने की उम्मीद है।
- एमएफपी या अधिक उपयुक्त के रूप में उल्लिखित गैरलकड़ी वनोत्पाद (एनटीएफपी) देश के लगभग 5 करोड़ जनजातीय लोगों की आय और आजीविका का प्राथमिक स्रोत है।
- गौरतलब है कि देश में अधिकतर जनजातीय ज़िले वन क्षेत्रों में हैं। जनजातीय समुदाय पारंपरिक प्रक्रियाओं से एनटीएफपी एकत्रित करने और उनके मूल्यवर्धन में पारंगत होते हैं।
- यही कारण है कि स्थानीय कौशल और संसाधनों पर आधारित जनजातीय लोगों के विकास का यह आदर्श मॉडल एनटीएफपी केंद्रित होगा।
योजना का प्रस्ताव क्या है?
देश के वन क्षेत्रों के जनजातीय ज़िलों में दो वर्ष में लगभग 3,000 ऐसे वन धन केंद्र स्थापित करने का प्रस्ताव किया गया है।
50 प्रतिशत से अधिक जनजातीय आबादी वाले 39 ज़िलों में प्राथमिकता के आधार पर यह पहल शुरू करने का प्रस्ताव किया गया है। इसके बाद धीरे-धीरे देश के अन्य जनजातीय ज़िलों में इनका विस्तार किया जाएगा।
इसके साथ-साथ यह भी प्रस्ताव किया गया कि वन धन एसएचजी के प्रतिनिधियों से गठित प्रबंधन समिति स्थानीय स्तर पर केंद्रों का प्रबंधन करेगी।
कार्यान्वयन हेतु नोडल एजेंसी
यह योजना केन्द्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण विभाग के तौर पर जनजातीय कार्य मंत्रालय और राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण एजेंसी के रूप में ट्राइफेड के माध्यम से लागू की जाएगी।
योजना के कार्यान्वयन में राज्य स्तर पर एमएफपी के लिये राज्य नोडल एजेंसी और ज़मीनी स्तर पर ज़िलाधीश महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
संबंधित अधिनियम के महत्त्वपूर्ण बिंदु
भारत सरकार ने पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 और अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रावधानों के माध्यम से इस क्षेत्र में कुछ सुधार किये है।
जिनके तहत उनके क्षेत्रों में पाए जाने वाले एमएफपी पर जनजातीय ग्राम सभा को स्वामित्व के अधिकार प्रदान किये गए है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना
2014 में, एमएफपी के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना शुरू की गई थी, जिसके तहत चयनित एमएफपी एकत्रित करने वालों को न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान किया जाता है।
हालाँकि यह कदम सही दिशा में है, लेकिन एमएफपी से जुड़े अधिकतर कारोबार गैर संगठित है, जिसके कारण वनोत्पाद एकत्रित करने वालों को कम मूल्य मिल पाता है और उत्पादों के सीमित मूल्यवर्धन से अधिक उत्पाद व्यर्थ हो जाते है।
इसलिये एमएफपी की आपूर्ति श्रृंखला के आगे और पीछे की कड़ी को सुदृढ़ करने और विशेष रूप से जनजातीय समुदाय को व्यवस्थित करने के लिये अधिक संस्थागत व्यवस्था की आवश्यकता है।
वन धन पहल के मुख्य बिंदु
इकाई स्तर पर वनोत्पाद एसएचजी द्वारा एकत्रित किये जाएंगे और लगभग 30 सदस्यों का वन धन विकास ‘समूह’ होगा।
एसएचजी क्षेत्र में उपलब्ध काटने और छानने, सजाने, सुखाने और पैक करने जैसे उपकरणों का उपयोग कर प्राथमिक स्तर पर एमएफपी का मूल्यवर्धन करेंगे।
वन धन विकास समूह में निहित सुविधाएँ
- आवश्यक भवन/बुनियादी ढाँचा सुविधा लाभार्थियों में से किसी एक के आवास/आवास के हिस्से या सरकारी/ग्राम पंचायत भवन में स्थापित किये जाने का प्रावधान।
- क्षेत्र में उपलब्ध एमएफपी के आधार पर काटने, छानने, सजाने, सूखाने जैसे छोटे औजार/टूल किट।
- प्रशिक्षण के लिये कच्चे माल के प्रावधान के साथ 30 प्रशिक्षुओं के बैच के लिये पूरी तरह से सुसज्जित प्रशिक्षण सुविधाएँ और ट्रेनी किट (बैग, पैड, पेन, विवरणिका, प्रशिक्षण पुस्तिका, पुस्तिका आदि शामिल) की आपूर्ति।
- वित्तीय संस्थानों, बैंकों, एनएसटीएफडीसी के साथ समझौतों के ज़रिये एसएचजी के लिये कार्यशील पूंजी का प्रावधान किया गया है।
- एक ही गाँव में ऐसे 10 एसएचजी के क्लस्टर से वन धन विकास केंद्र बनेगा।
- एक केंद्र में समूह के सफल संचालन के आधार पर अगले चरण में समूह के सदस्यों के उपयोग के लिये भवन, गोदाम जैसी सामान्य बुनियादी ढाँचा सुविधाएँ (पक्का केंद्र) उपलब्ध कराई जा सकती हैं।
- इस पहल के अंतर्गत कवर किये जा सकने वाले प्रमुख गौण वनोत्पादों की सूची में इमली, महुआ के फूल, महुआ के बीज, पहाड़ी झाड़ू, चिरौंजी, शहद, साल के बीज, साल की पत्तियाँ, बाँस, आम (आमचूर्ण), आँवला (चूरन/कैंडी), तेज़ पट्टा, इलायची, काली मिर्च, हल्दी, सौंठ, दालचीनी, आदि शामिल हैं। इनके अलावा मूल्यवर्धन के लिये संभावित अन्य एमएफपी शामिल किये जा सकते हैं।
योजना की वर्तमान स्थिति
सरकार जनजातीय मामलों के मंत्रालय की वन धन योजना के तहत देश भर में 30,000 स्वयं सहायता समूह को शामिल करके 3,000 वन धन केंद्रों की स्थापना करेगी।
वन धन योजना के तहत बीजापुर, छत्तीसगढ़ में 30-30 जनजातीय संग्रहकर्ताओं के 10 स्वयं सहायता समूह का गठन किया गया। जनजातीय मामले मंत्रालय वन उपज के मूल्य संवर्धन के लिए छत्तीसगढ़ के बीज़ापुर में अबतक का पहला वन धन विकास केंद्र आरंभ करेगा ।
इसके बाद इन सभी को प्रशिक्षण दिया गया तथा कार्यशील पूंजी प्रदान की गई ताकि वे जंगलों से प्राप्त सामग्री को एकत्र करने के बाद उसे और मूल्यवान बना सकें। ये समूह जिला अधिकारी के नेतृत्व में कार्य करते हैं। ये अपनी वस्तुओं को सिर्फ राज्य में ही नहीं बल्कि राज्य के बाहर भी बेच सकते हैं। प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता ट्राईफेड द्वारा प्रदान की जाती है।
जनजातीय मामले मंत्रालय ने जनजातीय लोगों के सामाजिक, आर्थिक विकास के लिए वन अधिकार अधिनियम, पीईएसए अधिनियम जैसी कई पहल की है तथा एमएफपी के बाजार विकास के लिए राज्य टीडीसीसी एवं टीआरआईएफईडी को वित्तीय सहायता देने के द्वारा एमएफपी के विकास के लिए कई योजनाओं का कार्यान्वयन कर रही है। भारत सरकार ने निर्धनता घटाने तथा देश के सबसे निर्धन, पिछड़े जिलों में जनजातीय लोगों विशेष रूप से महिलाओं एवं गरीबों के सशक्तिकरण के लिए एक महत्वकांक्षी योजना न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) एवं एमएफपी के लिए मूल्य श्रृंखला का विकास के जरिए गौण वन उपज के विपणन के लिए तंत्र आरंभ की है। यह योजना एमएफपी संग्रह करने वालों को उचित मूल्य प्रदान करने, उनके आय के स्तर को बढ़ाने तथा एमएफपी की टिकाऊ खेती सुनिश्चित करने के उद्देश्य से आरंभ की गई थी।
जनजातीय मामले मंत्रालय ने कौशल उन्नयन तथा क्षमता निर्माण प्रशिक्षण प्रदान करने तथा प्राथमिक प्रस्संकरण एवं मूल्य संवर्धन सुविधा केन्द्र की छत्तीसगढ़ राज्य के बीज़ापुर जिले में स्थापना करने के लिए प्रायोगिक आधार पर पहले बहुद्देश्यीय वन धन विकास केंद्र की स्थापना को मंजूरी दी है। इस पहले वन धन विकास केन्द्र मॉडल का कार्यान्वयन प्रशिक्षण, प्राथमिक स्तर प्रसंस्करण के लिए उपकरणों तथा औजार उपलब्ध कराने और केन्द्र की स्थापना के लिए बुनियादी ढांचे तथा भवन के निर्माण के लिए 43.38 लाख रुपये के कुल परिव्यय के साथ 300 लाभार्थियों के प्रशिक्षण हेतु किया जा रहा है। आरंभ में इस केन्द्र में टेमारिंड ईंट निर्माण, महुआ फूल भंडारण केन्द्र तथा चिंरोजी को साफ करने एवं पैकेजिंग के लिए प्रसंस्करण सुविधा होगी।
टीआरआईएफईडी ने छत्तसीगढ़ के बीजापुर जिले में इस प्रायोगिक विकास केन्द्र की स्थापना का कार्य सीजीएमएफपी फेडरेशन को सौंपा है तथा बीजापुर के कलेक्टर समन्वय का कार्य करेंगे। जनजातीय लाभार्थियों के चयन एवं स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के निर्माण का कार्य टीआरआईएफईडी द्वारा आरंभ किया गया है तथा 10 अप्रैल, 2018 से इसका प्रशिक्षण आरंभ होने का अनुमान है। आरंभ में वन धन विकास केन्द्र की स्थापना एक पंचायत भवन में की जा रही है जिससे कि प्राथमिक प्रक्रिया की शुरुआत एसएचजी द्वारा की जा सके। इसके अपने भवन के पूर्ण होने के बाद केन्द्र उसमें स्थानांतरित हो जाएगा।
वन धन विकास केन्द्र एमएफपी के संग्रह में शामिल जनजातीयों के आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर सिद्ध होंगे जो उन्हें प्राकृतिक संसाधनों का ईष्टतम उपयोग करने और एमएफपी समृद्ध जिलों में टिकाऊ एमएफपी आधारित आजीविका उपयोग करने में उनकी सहायता करेंगे।
वन धन विकास केंद्र शुरू करने का उद्देश्य
इस योजना को को लागू करने के पीछे भारत सरकार व जनजातीय मंत्रालय की मंशा स्पष्ट है। आदिवासी कार्य मंत्रालय देश के आदिवासी समुदाय की दशा और दिशा हर हाल में सुधारना चाहता है।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए ही वन धन विकास केंद्रों की स्थापना शुरू हो गई है। इस योजना का मकसद आदिवासी क्षेत्रों का विकास करना है।
- योजना के तहत जंगलों में सीमित मात्रा में मिलने वाले खाद्ध पदार्थों को जमा करना और उनको बेहतर ढंग से इस्तेमाल करना सिखाया जाएगा।
- जंगलों से सीमित मात्रा में मिलने वाले उत्पाद कुछ खास समय के दौरान ही प्राप्त होतें हैं। ऐसे में विपरीत मौसम में आदिवासी समुदाय को अपनी आजीविका चलाने और जीवन यापन करने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसलिये वन धन विकास केंद्रों के माध्यम से जंगलों से एकत्र की गई सामग्री को स्टोर करना व उनको प्रस्संकृत करके सुरक्षित रखा जाता है। ताकि प्रतिकूल मौसम व परिस्थितियों के हिसाब से उन वस्तुओं का उचित उपयोग किया जा सके।
- जनजातीय समूहों को जंगलों से मिलने वाली इस सामग्री से अपनी आय का 20-40% हिस्सा प्राप्त कर लेतें हैं। लेकिन इस सामग्री को जंगलों से इक्ठठा करने के दौरान वह अपना बहुत सारा कीमती समय बेकार में ही गवां देते हैं। इसलिये वन धन केंद्र योजना के तहत ऐसी व्यवस्था करने के प्रयास किये जा रहे हैं, जिससे आदिवासी लोग समय का उचित प्रबंधन भी कर सकें।
- जंगल आधारित उत्पादों से आदिवासी समूहों को काम उपलब्ध करना, जिससे वह वर्ष भर काम में व्यस्त रहें। साथ ही जनजातीय समूह की महिला को भी आर्थिक तौर पर सक्षम बनाना। जिससे वह अपने परिवारों को सुरक्षा प्रदान कर सकें।
- जंगल देश के 5 करोड़ से अधिक जनजातीय लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन है और जिन जिलों में जनजातीय लोग निवास करते हैं, उन जिलों में जंगल मौजूद होते हैं। इस लिये ट्राईफेड गैर लकड़ी वन्य उत्पादों के एवज में आदिवासी समाज को उचित मूल्य मूल्य उपलब्ध कराएगा।
योजना की विशेषताएं
- ईकाई स्तर पर स्वयं सहायता समूह के 30 सदस्यीय समूह के द्धारा उत्पादन को एकत्र किया जाएगा।
- वन धन केंद्र वन्य उत्पादों का संरक्षण करेंगें। जंगलों में मिलने वाली दुर्लभ व सामान्य जड़ी बूटियों का ठीक प्रकार से सरंक्षण व विपणन करना।
- वन धन विकास केंद्रों पर सिलाई उपकरण, उत्पादों को सुखाने वाले उपकरण, छोटी कटिंग मशीन आदि की भी व्यवस्था की जाएगी।
- उपरोक्त मशीनों व उपकरणों के इस्तेमाल से वन्य उत्पादों को बेहतर समर्थन मूल्य उपलब्ध कराया जाएगा।
- प्रत्येक वन धन केंद्र के पास सरकारी अथवा पंचायत स्तर पर एक भवन अवश्य होगा।
- मशीनों के इस्तेमाल से वन्य उत्पादों को सुखा कर व उनकी पैकेजिंग करके उनके मूल्य में उचित वृद्धि की जाएगी ताकि आदिवासी समाज को उनकी वस्तुओं का उचित मूल्य प्राप्त हो सके।
- वन धन विकास केंद्रों पर प्रशिक्षण पाने वाले 30 सदस्यीय समूह के लिये कच्चा माल, ट्रेनिंग किट, ट्रेनिंग बुक, कलम आदि सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगीं।
- वन धन विकास केंद्रों पर स्वयं सहायता समूह के लिये कार्यशील पूंजी का प्रबंध बैंकों तथा एनएसटीएफडीसी के द्धारा किया जाएगा।
- एक ही गांव में वन धन विकास केंद्र ऐसे 10 स्वयं सहायता समूह बनाएगा जो सफलता पूर्वक वन धन केंद्रों को का संचालन करेंगें। प्रत्येक समूहों की सफलता को देखते हुए इन केंद्रों पर भवन और गोदाम आदि को पक्का कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।
- योजना के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में महुआ फूल, महुआ के बीज, लाख के बीज, साल के बीज, साल की पत्तियां, पहाड़ी झाड़ू, इमली, बांस, चिरौंजी, शहद, आम, आंवला, तेजपत्ता, इलायची काली मिर्च, हल्दी, सूखा हुआ अदरक, दालचीनी, चाय, कॉफी के बीज आदि को लाया गया है। साथ ही इसके अतिरिक्त कुछ और चीजों को इस सूची में शामिल किया जा सकता है।