भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चंद्रयान-2 के विक्रम मॉड्यूल का सात सितंबर को चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने का प्रयास तय योजना के मुताबिक पूरा नहीं हो पाया था। चांद के सतह से महज 2.1 किलोमीटर पहले लैंडर का आखिरी क्षण में जमीनी केंद्रों से संपर्क टूट गया था। यह अभियान काफी चुनौती भरी थी। ज्ञात हो की विश्व का कोई भी देश अब तक चांद के दक्षिण ध्रुव पर लैंड नही कर पाया है।
वैज्ञानिक कभी हार नहीं मानते। इसरो और नासा की उम्मीद खत्म नही हुई है। वह अभी भी विक्रम से संपर्क करने की कोशिश में लगे रहेंगे। लेकिन जो हालात बन रहे हैं, उससे कहा जा सकता है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-2 का विक्रम, आज के बाद इतिहास बन जायेगा। हालांकि चंद्रयान-2 ने जो कीर्तिमान स्थापित किया है, वह कम नही है। इससे प्राप्त डेटा और तस्वीरें भविष्य की योजनाओं के लिए बहुत उपयोगी होगी। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अंधेरा बढ़ने लगा है। चांद का एक दिन पृथ्वी के करीब एक माह के बराबर होता है. इसमें 14 दिनों का दिन और लगातार 14 दिनों की रात होती है। ये रातें बेहद ठंडी होती हैं। चांद पर छाने वाले अंधेरे के साथ ही भारतीय वैज्ञानिकों और करोड़ों लोगोंं के सपनों पर भी अंधेरा छा जाएगा। चांद के दक्षिणी ध्रुव में जिस जगह पर लैंडर विक्रम पड़ा है वहां अगले 14 दिन तक सूरज की रोशनी नहीं पहुंचेगी। चांद का तापमान घटकर माइनस 183 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा। इतने कम तापमान में विक्रम के कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण शायद काम करने के स्थिति में न रहे। चांद पर छाने वाला अंधेरा इतना घना होता है कि अब भविष्य में विक्रम लैंडर की तस्वीर भी नही ली जा सकेगी। दोबारा लैंडर विक्रम से संपर्क साधने की सारी उम्मीदें भी लगभग खत्म हो जाएगी।
क्या, इसरो ने केवल 14 दिनों के लिए ही लैंडर विक्रम को चांद पर भेजा था? चर्चा है कि उसमें वो थर्मल उपकरण नहीं लगाया गया था, जो विक्रम को चांद पर रात होने की स्थिति में ठंड से बचाता और गर्म रखता। जो भी हो ऐसी चर्चायें तो होती ही रहेगी। ज्ञातव्य हो कि मंगल मिशन पर हमारे इन्हीं वैज्ञानिकों ने पहली बार में सफलता दिलाया था। चांद पर यह हमारा आख़िरी मिशन नही था। आज नही पहुंचे तो क्या हुआ, कल हमारा होगा। हमें यह नही भूलना चाहिए की इसरो ने कई मौके पर हमें गर्व करने, तिरंगा लहराने का मौका दिया है और देता रहेगा।
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