सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : रेलवे लोको पायलट की दिनचर्या वैसे तो कोई भुक्तभोगी पायलट ही लिखता तो ठीक रहता। चलो में कल्पना के सहारे लिखने की कोशिश करता हूँ, लेकिन फिर भी मुझे यकीन है कि 75% तो सही ही होगा, क्यों कि मैं एंजिन पर लोको पायलटों के साथ अपनी नौकरी के दौरान बहुत चला हूँ।
लोको पायलट की एक पूरी साईकिल, यानि एक बार ड्यूटी से घर आने से लेकर दोबारा घर आने तक, का वर्णन करता हूँ। इससे आपको रेलवे सिस्टम भी समझ में आएगा कि ट्रेन वर्किंग कैसे होती है ?
- मान लो कि लोको पायलट साहब की 10 वर्ष की नौकरी हुई है इसलिए अभी मालगाड़ी ही चलाते हैं, शादी हो चुकी है और 2 बच्चे हैं, एक 3 वर्ष का बेटा और एक 7 वर्ष की बेटी, जो दूसरी क्लास में पढ़ती है।
- रात भर ड्यूटी करने के बाद सुबह 10 बजे लोको पायलट महोदय अपने घर वापिस आते हैं। घर पर पत्नी और 3 वर्ष का बेटा मिलेगा, बेटी स्कूल गयी है।
- पायलट महोदय अपना ड्यूटी बैग एक तरफ पटक कर पहले एक कप चाय पिएंगे। चाय पीते-पीते ही पत्नी जी कहेंंगी कि बेटे को सर्दी लग गयी है आज डाक्टर को दिखाना पड़ेगा। अब नहा धोकर पायलट महोदय 12 बजे तक खाना खाकर सो जाएंगे। 2 बजे स्कूल से बेटी आएगी उससे उसकी माँ कहेगी बेटा ज्यादा हल्ला नहीं करना, पापा अभी सोए हैं।
- पायलट महोदय शाम 5 बजे तक सो कर उठेंगे। एक चाय पिएंगे, बेटी से बात करेंगे। बेटी अपने स्कूल के प्रोजेक्ट के लिए कुछ सामान बाजार से लाने का कहेगी। पापा जी तैयार होकर बाजार जाने की तैयारी करेंगे। बेटे को डाक्टर को दिखाना है और बेटी का कुछ सामान लाकर देना है।
- पति-पत्नी और बेटा मोटरसाइकिल से बाजार निकल जायेंगे, बेटी घर पर ही रह जाएगी। बाजार के काम कर के 8 बजे तक लौट आयेंगे। अब 9 बजे तक शाम का खाना और रात 2 बजे ड्यूटी जाने की चिन्ता। सुबह 09.30 पर साइन आफ किए थे तो 16 घंटे बाद यानि रात 01.30 के बाद कभी भी काल आ सकती है। इसलिए पायलट महोदय रात 10 बजे से 2–4 घंटे की नींद लेने की कोशिश करते हैं।
- रात 02.00 बजे माबाइल फोन पर काल आ जाती है कि 03.00 बजे मालगाड़ी लेकर झाँसी से आगरा (220 किलोमीटर) जाना है। वह 15 मिनिट में कपड़े पहनकर अपना बैग उठाकर पत्नी को बताकर स्टेशन निकल जाएंगे क्यों कि 02.30 पर साइन आन करने हैं।
- रेलवे स्टेशन पर लोको पायलट लाबी (आफिस) में साइन आन करके वह अपनी गाड़ी के एंजिन पर पहुँचते हैं। इसके पहले उनका ब्रेथलाइजर टैस्ट होता है कि कहीं उन्होंने शराब तो नहीं पी रखी।
- एंजिन पर पहुँचकर आउटगोइंग पायलट से चार्ज लेकर एंजिन को चैक करेंगे। उनका सहायक लोको पायलट भी उनके साथ होगा। अब 03.00 बज चुके हैं और पायलट साहब सिगनल मिलने का इंतजार कर रहे हैं। मेल – एक्सप्रेस गाड़ियाँँ एक के बाद एक निकलती जा रही हैं इसलिए उन्हें सिगनल नहीं मिल रहा। आखिर 04.15 पर सिगनल मिलता है सहायक लोको पायलट स्टार्ट होने की सीटी मारता है और गार्ड का ओ.के. सिगनल देखने के बाद पायलट महोदय को बोलता है चलिए सर। 04.20 पर मालगाड़ी स्टार्ट होती है। करारी, दतिया, सोनागिर, कोटरा स्टेशन पर थ्रो सिगनल मिलते हैं और डबरा स्टेशन पर लूप लाइन में खड़ा कर दिया जाता है 05.20 पर। शायद पीछे से कोई मेल एक्सप्रेस आगे निकालना है।
- सहायक पायलट अपना थर्मस निकालकर रेलवे कैंटीन से चाय लेने चला जाता है। वैसे एंजिन में भी हीटर लगाकर चाय बनाने की गुंजाइश होती है। जैसा समय हो वैसा करते हैं। दोनों चाय पीते हैं और सिगनल मिलने का इतजार करते हैं। 3 सुपरफास्ट गाड़ियाँ निकाल कर आखिर 06.15 पर सिगनल मिलते हैं और ट्रेन पुनः आगे बढ़ती है। अनन्तपेठ, आँतरी, सन्दलपुर स्टेशन पर थ्रो सिगनल मिलते हैं और सिथोली स्टेशन पर फिर लूप लाइन में 07.00 बजे खड़ा कर दिया जाता है। स्टेशन मास्टर से वाकी टाकी पर बात करके पता करते हैं कि लगभग कितनी देर रुकना पड़ेगा। स्टेशन मास्टर आधा घंटा रुकने की बात कहते हैं। इतनी देर में पायलट और सहायक पायलट एक-एक करके खेत में फ्रैश होकर आते हैं। और फिर सिगनल मिलने का इंतजार करने लगते हैं। 3 एक्सप्रेस गाड़ियों के निकलने के बाद 07.50 पर सिगनल मिलते हैं। ट्रेन आगे बढ़ती है और ग्वालियर, बिरलानगर, रायरू, बानमोर थ्रो सिगनल मिलने के बाद साँक स्टेशन पर फिर लूप लाइन में खड़ा कर दिया जाता है 08.40 पर।
- फिर से 2 एक्सप्रेस गाड़ियाँ निकलती हैं और 09.20 पर पुनः आगे बढ़ने के सिगनल मिलते हैं। अब इस बार मुरैना, सिकरोदा, हेतमपुर, धोलपुर, मनिया, जाजौ स्टेशन से थ्रो निकलने के बाद भाँडई स्टेशन पर लूप लाइन में खड़ा कर दिया जाता है 10.30 पर। आगरा अगला ही स्टेशन है लेकिन एक स्टेशन के लिए अटक गयी गाड़ी। यही है मालगाड़ी के लोको पायलट की जिंदगी। मेल एक्सप्रेस पर थोड़ी हालत सुधरती है। अब 3–4 एक्सप्रेस गाड़ियाँ आगे निकाली जाती हैं फिर इस मालगाड़ी को 11.30 बजे सिगनल दिए जाते हैं और ट्रेन चल पड़ती है। आऊटर (बाहरी सिगनल – अब आऊटर न होकर होम सिगनल होता है) पर 10 मिनिट खड़ा करके आगरा यार्ड में रिसीव किया जाता है।
- आगरा 12.00 बजे अराईवल होता है। वहाँ दूसरा लोको पायलट चार्ज लेने के लिए रेडी है। उसे चार्ज देकर लोको पायलट आगरा की लाबी में पहुँचते हैं वहाँ 12.30 पर साइन आफ करते हैं। इस प्रकार सुबह 02.30 साइन आन से 12.30 साइन आफ तक 10 घंटे की ड्यूटी हो गयी। अब पायलट रनिंग रूम (रैस्ट हाउस) जाएंगे। रनिंग रूम 13.00 बजे पहुँचे। खाना बनवाना है तो रेलवे कुक को अपना आटा, सब्जी, दाल दी और नहाने चले जाते हैं। अब रेलवे का कुक न होकर यह सिस्टम कान्ट्रेक्टर को आऊटसोर्स कर दिया गया है। नहा धोकर खाना खाकर 14.00 बजे सो जायेंगे। 17.00 बजे (05.00pm) उठे, चाय पी और थोड़ा बहुत टहले। शाम का खाना बनवाकर टिफिन में रखवाया। आऊट स्टेशन पर 6 घंटे के रैस्ट के बाद कभी भी काल आ सकती है। लोको पायलट वेटिंग में ज्यादा हैं और ट्रेन कम हैं तो 8 घंटे में भी काल आती है।
- तो आज 8 घंटे बाद 20.30 पर काल आती है कि 21.30 की गाड़ी लेकर झाँसी वापिस जाना है। 21.00 बजे लाबी में जाकर साइन आन फिर एंजिन पर पहुँच कर चार्ज लेना, एंजिन चैक करना और सिगनल मिलने का इंतज़ार करना। यही है जिंदगी। 21.30 से इंतजार करते-करते 23.00 बजे सिगनल मिलते हैं। इस बीच सहायक पायलट और पायलट अपना टिफिन खोलकर खाना खा लेते हैं। 23.05 पर गार्ड से वाकी टाकी पर बात करके ट्रेन स्टार्ट करते हैं। अब लौटते समय वही घिसी पिटी कहानी दुबारा नहीं सुनाऊँगा। हालांकि ट्रेन वैसे ही रुकते रुकाते चलेगी।
- सुबह 08.30 पर ट्रेन झाँसी यार्ड में आकर खड़ी हो जाती है। 09.00 बजे साइन आफ किए। बीती रात आगरा में 21.00 बजे (9pm) पर ही साइन आन किये थे, इस प्रकार 12 घंटे की ड्यूटी हो गयी।
- अब सुबह 09.30 बजे फिर से घर में घुसना हुआ लगभग 31–32 घंटे बाद। अब घर पर रुकने को 16 घंटे मिलेंगे। इसका मतलब हुआ कि जिंदगी का 2/3 हिस्सा (32 घंटे) घर से बाहर और 1/3 हिस्सा (16 घंटे) घर में।
- घर में फिर से वही रुटीन शुरु हो जाएगा। एक पूरी रात (22 से 6 बजे तक) घर में सोने को साप्ताहिक रैस्ट में ही मिलता है। रैस्ट की परिभाषा है वन फुल नाइट इन बैड और 30–32 घंटे कुल।
इतने बड़े उत्तर के बाद इसके कई निष्कर्ष निकलते हैं। उन से भी अवगत करा देना उचित रहेगा उससे कई नये प्रश्नों के उत्तर अपने आप मिल जाएंगे।
- आपने देखा कि झाँसी से आगरा 220 किलोमीटर की यात्रा तय करने में मालगाड़ी को 8–9 घंटे लग रहे हैं। हमेशा इतने नहीं लगते कभी-कभी 5–6 घंटे में भी पहुँच जाते हैंं। ऐसा इस वजह से है कि उन्हीं ट्रैक पर मेल एक्सप्रेस को चलना है उन्हीं पर मालगाड़ी को।
- जब DRFC (Dedicated Rail Freight Corridor) बन जाएंगे तो मालगाड़ियाँ बिना रुकावट के इन लाइनों पर चलेंगी और मेल एक्सप्रेस अपनी पुरानी लाइनों पर। तो और मेल एक्सप्रेस गाड़ियाँ चल सकेंगी और वह लेट भी नहीं होंगी।
- इतने धीमे चलने के बावजूद भी माल ढोने से ही रेलवे को फायदा है। जब मालगाड़ियाँ 100 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से चलेंगी तो रेलवे का फायदा बढ़ेगा। हम यात्री गाड़ियों में भी और अच्छी सुविधा दे पायेंगे।
नोट :— अपनी नौकरी के दौरान सिगनल इंस्पेक्टर (JE- signal), पी. डब्ल्यू. आई. (JE – P-way) और सभी अधिकारियों (पर्सैनल, एकाउंट्स, मेडीकल को छोड़कर) को ट्रेन एंजिन पर डे और नाईट ‘फुट प्लेट’ इंस्पेक्शन करने होते हैं। मैंने भी किए हैं, इसीलिए इतना जीवंत वर्णन कर पाया। एक से एक अच्छे लोको पायलट (ड्राईवर) मिलते हैं।
जब 1988 में भोपाल शताब्दी चली थी तब मैं फरीदाबाद में था। महीने में एक बार दिल्ली से आगरा और आगरा से दिल्ली मुझे उससे फुट प्लेट करना होता था। सुबह 3.30 बजे उठकर 4.30 बजे की ट्रेन से 5.30 बजे तक नई दिल्ली पहुँच कर 06.15 बजे छूटने वाली शताब्दी के एंजिन पर 06.00 बजे तक पहुँच जाना होता था। एक बार एक ड्राईवर Mr. J. J. Dick मिले। क्रिश्चियन थे। बहुत मस्त थे। ट्रेन चलने के बाद उनने अपना टिफिन खोला और एक चपाती और आलू की टिकिया उसमें लपेटकर मुझे दी और अपने लिए भी निकाली। मैंने लेने में संकोच किया कहा कि मैं नाश्ता करके आया हूँ। उन्होंने कहा, “डोन्ट वरी वेजिटेरियन है खा लो, अच्छी लगेगी”। मैंने खायी, उसके बाद उन्होंने मुझे एक चोकलेट टाफी दी। फिर कुछ देर बाद थर्मस से गरम चाय निकाल कर दी। ड्राईवर भी अपने खुश रहने के तरीके निकाल लेते हैं। और वही सही रवैया है जिंदगी जीने का, नौकरी करने का।
सबकी नौकरी एक सी तो नहीं हो सकती। जैसी है उसे स्वीकार करो, ईश्वर के शुक्रगुज़ार हो कि तुम्हें कम से कम यह नौकरी मिली तो है। लाखों करोड़ो बेरोजगारों से तो अच्छे हो।