दिव्यांग रेल यात्री गाड़ियों के कोच अरेंजमेंट में एसएलआर (SLR) का मतलब क्या होता है?

सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : वह सैकिन्ड क्लास जनरल कोच होता है। आगे वाला दिव्यांंग के लिए और पीछे वाला महिलाओ के लिए SLR कोच का प्रयोग होता है भारतीय रेलवे में जितने भी प्रकार के कोच चल रहे हैं, रेलवे के विभागीय उद्देश्य के लिए उनके कुछ कोड निर्धारित किये गये हैं। यह कोड कोच के बफर के ऊपर लिखा होता है। अब LHB कोच में बफर भी नहीं होता है। इसमें CBC (Centre Buffer Coupling) कपलिंग ही बफर का काम कर देती है।

SLR एक ऐसा कोच है जिसमें :—

  • S – स्टेंड्स फार सैंकिंड क्लास जनरल।
  • L – स्टेंड्स फार लगेजवान।
  • R – स्टेंड्स फार गार्ड (GUARD से R ले लिया गया, G इसलिए नहीं लिया गया कि G किसी और तरह के कोच के कोड में प्रयुक्त हो चुका होगा।)

यह कोच अमूमन ट्रेन के रैक में एंजिन के बाद सबसे पहला और सबसे आखिरी डिब्बा होता है। आखिरी डिब्बे में तो गार्ड रहता है, लगेजवान उसकी कस्टडी में रहता है और आधे हिस्से में सैकिंड क्लास का साधारण डिब्बा होता है, जो हमेशा महिलाओं के उपयोग के लिए होता है।

जो लोग 60 वर्ष से ऊपर होंगे उन्होंने एंजिन के पास वाले SLR मे एक रेल कर्मचारी को चलते देखा होगा, जो हरी झन्डी भी दिखाता था। उसे ‘ब्रेक्समैन’ कहते थे बाद में उसका नाम सहायक गार्ड रख दिया गया। उसका काम ट्रेन के स्टापेज वाले स्टेशन पर लगेजवान में सामान चढ़ाना, उतारना होता था।

1980–85 के बाद से वह पोस्ट रेलवे ने समाप्त कर दी और आगे वाले SLR के लगेजवान को प्राइवेट एजेंसी को टेंडर निकाल कर कांट्रेक्ट पर दे दिया। अब वह एजेंसी अपना आदमी रखती भी है और नहीं भी रखती। वह एजेंसी ट्रेन के प्रारंभिक स्टेशन से अन्तिम स्टेशन का सामान उसमे भर देती है और सीलिंग और लाकिंग कर देती है। अन्तिम स्टेशन पर उनका आदमी उसमे से सामान निकालकर डिस्ट्रीब्यूट कर देता है। इसमें सामान बुक करके पैसे लेने की जुम्मेदारी उसी एजेंसी की होती है। रेलवे केवल यह देखती है कि उस एजेंसी ने तय सीमा से ज्यादा सामान तो लोड नहीं किया। रेलवे उस एजेंसी से कांट्रेक्ट की शर्तो के अनुसार किराया लेती है।

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