सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : लो विजन के दिव्यांगों के साथ हो रहा है बहुत ही बड़ा पक्षपात दिव्यांग अधिनियम 2016 में दिव्यांग अधिनियम 2016 में इस बात का विशेष उल्लेख मिलता है कि किसे लो विजन दिव्यांगता में सम्मिलित करेंगे तो उस में पाया जाता है कि जिसकी दिव्यांगता प्रतिशत बेंचमार्क डिसेबिलिटी यानी 40% हो तो उन्हें दिव्यांग माना जाएगा और उनकी श्रेणी जोगी वह आंख से दिव्यांगों की होगी लेकिन उसी दिव्यांग अधिनियम में इस विषय की भी चर्चा मिलती है की हम कितने वर्ष तक के लोगों को इस दिव्यांग का श्रेणी में सम्मिलित करेंगे तो कहा गया है एक से लेकर 55 वर्ष की आयु तक के दिव्यांगों को इसमें सम्मिलित किया जाएगा उसके बाद के लोग इसमें सम्मिलित नहीं होंगे लेकिन इस नियम में बदलाव होना चाहिए क्योंकि भारत जैसे देश में इस श्रेणी के दिव्यांगों को बहुत ही प्रताड़ित होना पड़ रहा है मान लीजिए कि कोई लो विजन का दिव्यांग है ओर वह 50 साल तक जीवन जी गया उसके बाद वह अपना दिव्यांग प्रमाण पत्र कहीं भी ले जाते हैं तो उनका दिव्यांग प्रमाण पत्र अयोग्य घोषित हो रहा है क्योंकि कहां जा रहा है कि आप आपके दिव्यांग प्रमाण पत्र की कोई वैधता नहीं है क्योंकि दिव्यांग अधिनियम के सर्कुलर में यह लिखा हुआ है की 55 साल से ऊपर वाले व्यक्ति को लो विजन दिव्यांग नहीं माना जाएगा क्योंकि उसके ऊपर के लोगों का आंख का जोत या प्रकाश खुद ही कम होता है और लो विजन 55 साल तक ही माना जाता है इसलिए आपका यह सर्टिफिकेट अमान्य घोषित हो गया है दूसरी तरफ अगर समाज की विचारधारा को देखें तो यह दिव्यांग आंख से दिव्यांग की श्रेणी में आते हैं लेकिन किसी भी परीक्षा में आंख से जो भी दिव्यांग है उनका कट ऑफ मार्क अलग होता है और लो विजन दिव्यांग का कट ऑफ मार्क अन्य अन्य दिव्यांग श्रेणी की तरह निकलता है उसके अलावा जो सुविधा दोनों आंख से दिव्यांग या 100% दिव्यांग को मिलता है उस सुविधा से भी इन दिव्यांगों को वंचित कर दिया गया उदाहरण के तौर पर रेलवे कंसेशन सर्टिफिकेट मैं 100% दिव्यांगता की आवश्यकता है उससे नीचे वाले दिव्यांग को इस श्रेणी से निकाल दिया गया है पहले इसी श्रेणी में उनको भी सुविधा दी जाती थी पढ़ाई की बात कर ले तो लो विजन वाले दिव्यांगों को कोई विशेष सुविधा नहीं दी जाती है ब्रेल लिपि की पुस्तक एवं उनकी श्रेणी में भी उन्हें सम्मिलित नहीं किया जा सकता है तो ऐसी विचित्र स्थिति में जी रहे हैं लो विजन के दिव्यांग और भारतीय संविधान कहती है कि प्रत्येक व्यक्ति को भारतीय संविधान में समान जीने का अधिकार है तो नई दिव्यांग अधिनियम 2016 में लो विजन दिव्यांगों के साथ पक्षपात हो रहा है या कहें कि उन्हें कहा जाता है कि आप 55 साल तक अगर जी गए तो आप दिव्यांग ताकि श्रेणी में नहीं है क्या यह सही है उसके अलावा आंख से दिव्यांगों के लिए हॉस्टल आदि की व्यवस्था भारत में है लेकिन लो विजन दिव्यांगों को हॉस्टल की भी सुविधा प्रदान नहीं हो पाती है दोनों आंख से दिव्यांगों को अपने साथ सहयोगी ले जाने का अधिकार है लेकिन आंख से कम दिखने वाले को सहयोगी ले जाने का भी अधिकार क्यों नहीं है इसलिए हम माननीय प्रधानमंत्री जी से एवं भारत सरकार सामाजिक कल्याण न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से यह अनुरोध करते हैं की इस बात पर विचार करते हुए नई दिव्यांग अधिनियम 2016 में परिवर्तन की आवश्यकता है ताकि लो विजन के दिव्यांगों के साथ पक्षपात नही हो जितनी तकलीफ दोनों आंख से दिव्यांगों को पढ़ने में होती है उतनी तकलीफ लो विजन के दिव्यांगों को भी पढ़ने में होती है तो दोनों में अंतर क्यों किया जाता है जब दोनों की श्रेणी समाने हैं यह विचार योग्य बात है इस पर विचार किया जाए और नई दिव्यांग अधिनियम में परिवर्तन किया जाए और जियो और जीने दो की नीति को अपनाएं सामान व्यक्ति की श्रेणी वह संलित नहीं हो सकते और दिव्यांग श्रेणी मैं उनको अपना अधिकार नहीं मिलता तो लो विजन दिव्यांगता उनके लिए अभिशाप साबित हो रहा है यह कहना गलत नहीं होगा इस पर हमारी सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए ।