सैनिटाइजर जमाखोरी और MRP से अधिक कीमत पर हो सकती है जेल, जानें क्‍या है कानून

 

सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : चीन के वुहान शहर से फैले कोरोना वायरस के संक्रमण में इस समय दुनिया के करीब 147 देश आ चुके हैं। कई देशों में इसकी वजह से हालात बहुत ही खराब हो गए है। भारत में भी अगले कुछ बहुत ही संवेदनशील रहने वाले हैं। कोरोना वायरस के खतरे को रोकने के लिए सरकारों ने बड़ी तैयारी की है, तो वहीं पीएम मोदी के आह्वान पर आज  रविवार को जनता कर्फ्यू लगने जा रहा है। भविष्य में क्या और कैसे हालात रहेंगे, यह भविष्य के गर्त में है। लेकिन वर्तमान की स्थिति को देखते हुए और भविष्य में लॉक डाउन की संभावनाओं को लेकर लोगों ने अपने घरों में स्टॉक लगाना शुरू कर दिया है, तो वहीं बाजार में जमाखोरी और कालाबाजारी भी तेज हो गई है।

कोरोना वायरस से संक्रमण के खतरे की वजह से इस समय बाजार में मास्क और सैनिटाइजर की बिक्री बढ़ गई है। इन सामानों की बिक्री बढ़ने से इन चीजों को मनमाने दाम पर बेचने या फिर मार्केट में उपलब्ध ही न होने की शिकायत सामने आ रही है। अब लगातार आ रही शिकायतों को देखते हुए सरकार ने कुछ वस्तुओं सहित मास्क और सैनिटाइजर दोनों ही चीजों को आवश्यक वस्तु की सूची में शामिल कर लिया गया है।  केंद्रीय उपभोक्ता मामले मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि बीते कुछ हफ्तों के दौरान कोविड-19 (कोरोना वायरस) के मौजूदा प्रकोप को देखते हुए और कोविड-19 प्रबंधन के लिए लॉजिस्टिक संबंधी चिंताओं को देखते हुए सरकार ने यह फैसला लिया है क्योंकि मास्क (2 प्लाई एवं 3 प्लाई सर्जिकल मास्क, एन95 मास्क) और हैंड सैनिटाइजर या तो बाजार में अधिकांश विक्रेताओं के पास उपलब्ध नहीं है या बहुत अधिक कीमतों पर बमुश्किल से उपलब्ध हो रहे हैं। यह दोनों ही चीजें अब 30 जून, 2020 तक आवश्यक वस्तु की सूची में शामिल रहेंगी। इसका साफ मतलब यह हुआ कि सरकार इनके उत्पादन, बिक्री और वितरण पर नियंत्रण करेगी। सरकार का साफ उद्देश्य लोगों को सहज और कम दामों पर इन दोनों ही चीजों को उपलब्ध कराए जाने से हैं। जिससे आम जनमानस को किसी भी प्रकार की दिक्कतों का सामना न करना पड़ें।

केंद्र सरकार ने इसको लेकर ऐसे नियम बना दिए और इसको आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के अन्तर्गत लाकर कानून के दायरे में भी ला दिया है। अगर किसी ने भी मनमाने दाम पर मास्क या सैनिटाइजर्स बेचने की कोशिश की तो उनको जेल की सजा भी हो सकती है। दरअसल आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत आवश्यक वस्तु की सूची में जिन चीजों को शामिल किया गया है, सरकार उन चीजों का उत्पादन, बिक्री, दाम, आपूर्ति और वितरण को नियंत्रित करती है। इस कानून में आने के बाद अगर कोई भी वस्तु को मनमाने दाम पर बेचता, जमाखोरी या कालाबाजारी करता है, तो ऐसी स्थिति में 7 साल जेल की सजा तक का प्रावधान है। आइए आज इस कानून के बारे में जानते हैं और यह भी जानेंगे कि किन चीजों को आवश्यक वस्तु की श्रेणी में डाला गया है। आखिर क्या है ये आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955? इसके तहत कितने साल की हो सकती है जेल? कौन-सी हैं वो चीजें जिन्हें आवश्यक वस्तु की श्रेणी में डालते हैं।

सरकार ने तय किए रेट

कोरोना वायरस के फैलने के बाद अब सरकार ने रेट तय कर दिए है। बेहताशा कीमतों में बढ़ोत्तरी होने की वजह से केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने कीमतों को तय कर दिया है। अब आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के तहत 2 और 3 प्लाई मास्क में इस्तेमाल होने वाले फैब्रिक की कीमत वही रहेगी जो 12 फरवरी 2020 को थी, 2 प्लाई मास्क की खुदरा कीमत 8 रुपये प्रति मास्क और 3 प्लाई की कीमत 10 रुपये प्रति मास्क से अधिक नहीं होगी.। यही नहीं, सेनेटाइजर की कीमतों को भी कम करने के लिए सरकार ने रेट को निर्धारित कर दिया है। हैंड सेनिटाइजर की 200 ग्राम बोतल की खुदरा कीमत 100 रुपये से अधिक नहीं होगी। यह कीमते पूरे देश में 30 जून 2020 तक पूरे देश में लागू रहेंगी।

जानें आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955

बाजार से कालाबाजारी और जमाखोरी रोकने के मकसद से आवश्यक वस्तु अधिनियम को 1955 में भारत की संसद ने पारित किया गया था। इस अधिनियम को बनाने का उद्देश्य  ‘आवश्यक वस्तुओं’ का उत्पादन, आपूर्ति और वितरण को नियंत्रित करना  है ताकि ये चीजें उपभोक्ताओं को उचित दाम पर बाजार में उपलब्ध हो सकें। सरकार अगर किसी चीज को ‘आवश्यक वस्तु’ घोषित कर देती है तो सरकार के पास अधिकार आ जाता है कि वह उस पैकेज्ड प्रॉडक्ट का अधिकतम खुदरा मूल्य तय कर दे। उस मूल्य से अधिक दाम पर चीजों को बेचने पर सजा हो सकती है। मंत्रालय ने अभी हाल ही में आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 की अनुसूची में संशोधन करते हुए, मास्क और सैनिटाइजर को दिनांक 30 जून, 2020 तक आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत आवश्यक वस्तु के रूप में घोषित करने का आदेश दिया है। यही नहीं सरकार की तरफ से अब विधिक माप विज्ञान अधिनियम के तहत एक एडवाइजरी भी जारी कर दी गई है। आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत, राज्य, विनिर्माताओं के साथ में विचार-विमर्श करके उनसे इन वस्तुओं की उत्पादन क्षमता बढ़ाने, सप्लाई चेन को सुचारु बनाने के लिए कह सकते हैं । बता दें विधिक माप विज्ञान अधिनियम के तहत राज्य इन दोनों वस्तुओं की अधिकतम खुदरा मूल्य (एम.आर.पी.) पर बिक्री सुनिश्चित कर सकते हैं। अब सरकार की तरफ से मॉक्स का रेट भी निर्धारित कर दिया गया है।

आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 का क्या है मकसद?

केंद्र सरकार ने  आम जनमानस की जिंदगी से जुड़ी हुई सभी आवश्यक खाने-पीने की चीजें, दवा, ईंधन जैसे पेट्रोलियम के उत्पादों को अपने नियत्रंण में रखती है। अगर कालाबाजारी या जमाखोरी की वजह से इन चीजों की आपूर्ति प्रभावित होती है तो इससे आम मानस भी प्रभावित होता है। मंत्रालय की तरफ से जारी कानून को लेकर साफ कहा गया है कि कुछ चीजें ऐसी हैं जिसके बगैर इंसान का ज्यादा दिनों तक जिंदा रहना मुश्किल है या इंसान के लिए बहुत ही जरूरी है। ऐसी चीजों को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत आवश्यक वस्तु की सूची में डाल दिया जाता है। सरकार का इन सब चीजों को लेकर साफ मकसद होता है कि लोगों को जरूरी चीजें उचित दाम पर और आसानी से उपलब्ध हो जाए। लेकिन अगर कोई दुकानदार उस मूल्य से अधिक दाम पर चीजों को बेचता है तो उसे सरकार सजा भी सुना सकती है।

आवश्यक वस्तु की इस श्रेणी में शामिल हैं वस्तुएं

आवश्यक वस्तु अधिनियम 1957 सात बड़ी वस्तुओं को इस श्रेणी में डाल दिया गया है जिनमें से कुछ इस तरह से हैं। 1. पेट्रोलियम और इसके उत्पाद जिनमें पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल, नेफ्था और सोल्वेंट्स वगैरा शामिल हैं। 2. खाने की सभी चीजें जैसे खाने का तेल और बीज, वनस्पति, दाल, गन्ना और इसके उत्पाद जैसे गुड़, चीनी, चावल और गेहूं आदि 3. टेक्सटाइल्स 4. समस्त जरूरी ड्रग्स, 5. फर्टिलाइजर्स की वस्तुओं को शामिल किया है। इनके अलावा कई बार सरकार कुछ चीजों को आवश्यक वस्तु की श्रेणी में डाल चुकी है और बाद में स्थिति सामान्य होने पर निकाल दिया गया है। कभी लोह और स्टील समेत कई उत्पादों को आवश्यक वस्तु की सूची में डाला गया था।

कितने साल की होती है सजा

आवश्यक वस्तु अधिनियम 1957 के  सेक्शन 7(1) ए (1) के तहत अगर सही से रिकॉर्ड नहीं रखा है, यही नहीं अगर रिटर्न फाइल नहीं किया है, तो यह कानून का उल्लंघन माना जाएगा और इसे जुर्म माना जाएगा। इसके लिए तीन महीने से एक साल तक की सजा का प्रावधान है। सेक्शन 7(1) ए (2) में बड़े अपराधों जैसे जमाखोरी, मुनाफाखोरी, कालाबाजारी आदि के लिए सजा का प्रावधान है। इस स्थिति में सात साल तक जेल की सजा या जुर्माना, या दोनों हो सकता है। कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए भारत सरकार के राजपत्र संख्या-980 में कोरोना की रोकथाम के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के तहत मास्क (दो प्लाई एवं थ्री प्लाई सर्जिकल मास्क, एन 95 मास्क) हैंड सैनिटाइजर के उत्पादन, गुणवत्ता, वितरण, लॉजिस्टिकल को विनियमित किया गया है। उन्होंने कहा कि अनाधिकृत संचय/जमाखोरी की रोकथाम के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम में निहित प्रावधानों में निरोधात्मक कार्रवाई होगी।

कानून को लागू कराने की किसी है जिम्मेदारी

इस अधिनियम को लागू कराने के लिए खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग सुनिश्चित करता है कि कानून के प्रावधानों पर  दुकानदार सही तरह से अमल करें। अगर उल्लंघन होता है, तो ऐसी स्थिति में विभाग के अधिकारी व्यापारी के परिसर पर स्थानीय पुलिस के साथ छापा मारते हैं। पुलिस के पास ऐसे आरोपियों को गिरफ्तार करने का अधिकार होता है। इसके तहत किसी व्यक्ति को सात साल कारावास की सजा भुगतना पड़ सकता है यानी उन्हें जुर्माना भरना पड़ सकता है या जेल व जुर्माना दोनों से उन्हें दंडित किया जा सकता है।

आप कहां दर्ज करा सकते हैं शिकायत

अगर आपको लग रहा है कि आपके आसपास कालाबाजारी की जा रही है, तो ऐसी स्थिति में आप राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही जगह पर शिकायत दर्ज करा सकते हैं। दोनों ही जगहों पर शिकायत दर्ज कराने के लिए हेल्पलाइन जारी करने की सलाह दी गई है। वैसे अगर आपसे कोई मास्क या सैनिटाइजर का ज्यादा दाम वसूलता है या जमाखोरी करता है तो आप इसकी शिकायत नेशनल कंज्यूमर हेल्पलाइन नंबर 1800-11-4000 पर सबसे पहले कर दीजिए। इसके अलावा  ऑनलाइन शिकायत www.consumerhelpline.gov.in पर भी की जा सकती है या विभाग की वेबसाइट www.consumeraffairs.nic.in पर की जा सकती है। मेल के माध्यम से dsadmin-ca@nic.in और dirwm-ca@nic.insecy.doca@gov.in पर शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।

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