लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम,1994

सर्वप्रथम न्यूज़ आदित्य राज पटना:-

कानूनी अपराध

गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के अन्‍तर्गत गर्भाधारण पूर्व या बाद लिंग चयन और जन्‍म से पहले कन्‍या भ्रुण हत्‍या के लिए लिंग परीक्षण करना, इसके लिए सहयोग देना व विज्ञापन करना कानूनी अपराध है, जिसमें 3 से 5 वर्ष तक की जेल व 10 हजार से 1 लाख रू. तक का जुर्माना हो सकता है।

दोनों समान

चिकित्‍सा विज्ञान के विशेषज्ञों के अनुसार समाज में औसतन जितने लड़के पैदा होते हैं उतनी ही लड़कियां भी जन्‍म लेती हैं। कुदरत ने भी स्‍त्री एवं पुरूष को कुछ जैव वैज्ञानिक अन्‍तर को छोड़कर जीवन की समान शक्तियां एवं समान अवसर प्रदान किए हैं। जन्‍म के समय औसतन लडका और लडकी समान शक्तियों के साथ पैदा होते हैं। किन्‍तु सामुदायिक एवं सामाजिक व्‍यवहार से धीरे-धीरे पुरूषों की शक्ति स्त्रियों की तुलना में प्रभावी हो जाती हैं।

वर्तमान स्थिति

भारत में स्त्रियों की स्थिति प्रत्‍यक्ष और परोक्ष रूप से, बालिकाओं के स्‍वास्‍थ्‍य की स्थिति को प्रभावित करती हैं। इस प्रकार लिंग भेद के परिणामस्‍वरूप समाज में लड़के के जन्‍म को प्रमुखता, बालिका शिशु की भ्रुण अवस्‍था में ही हत्‍या, बाल्‍यावस्‍था अथवा किशोरावस्‍था में ही बालिकाओं का विवाह, पोषण, स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरतों में भेदभाव देखा जाता है। अपने तीव्रतम रूप में लड़के की चाहे कन्‍या की हत्‍या और कन्‍या गर्भपात में परिणित होती है। देश के विभिन्‍न भागों में किये गये अध्‍ययनों में कन्‍या शिशु हत्‍या के मामले पाये गये हैं कन्‍या भ्रुण हत्‍याओं को विभिन्‍न धर्मो के गुरूओं ने धार्मिक दृष्टि से अनुचित बताया है।

पारित अधिनियम

भारत सरकार ने स्‍पष्‍ट रूप से जन्‍म पूर्व लिंग निर्धारण के प्रति अपना विरोध व्‍यक्‍त किया। दिनांक 1.1.96 को प्रसव पूर्व निदान तकनीक (विनियमन और दुरूपयोग निवारण) अधिनियम, 1994 लागू कर ऐसी जॉचों को कानूनी अपराध ठहराया है। भारत सरकार ने उक्‍त अधिनियम में आवश्‍यक संशोधन कर दिनांक 14.2.2003 से अधिनियम का नाम गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध)अधिनियम, 1994 रखा है।

प्रसवपूर्व निदान तकनीकों का विनियमन

इस अधिनियम के अन्‍तर्गत पंजीकृत आनुवंशिक सलाह केन्‍द्रों, आनुवंशिक प्रयोगशालाओं, आनुवंशिक क्लिनिकों, अल्‍ट्रासाउण्‍ड क्लिनिकों और इमेजिंग सेन्‍टरों में जहां गर्भधारण पूर्व एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक से संचालन की व्‍यवस्‍था है वहां जन्‍म पूर्व निदान तकनीकों का उपयोग केवल निम्‍नलिखित विकारों की पहचान के लिए ही किया जा सकता हैः-

  • गणसूत्र सम्‍बन्‍धी विकृति।
  • आनुवंशिक उपापचय रोग।
  • रक्‍त वर्णिका संबंधी रोग।
  • लिंग संबंधी आनुवंशिक रोग।
  • जन्‍मजात विकृतियां।
  • केन्‍द्रीय पर्यवेक्षक बोर्ड द्वारा संसूचित अन्‍य असमानताएं व रोग।

इस अधिनियम के अन्‍तर्गत यह भी व्‍यवस्‍था है कि प्रसव पूर्व निदान तकनीक के उपयोग या संचालन के लिये चिकित्‍सक निम्‍नलिखित शर्तो को भली प्रकार जांच कर लेवें कि गर्भवती महिला के भ्रूण की जांच की जाने योग्‍य है अथवा नहीः-

  • गर्भवती स्‍त्री की उम्र 35 वर्ष से अधिक है।
  • गर्भवती स्‍त्री के दो या उससे अधिक स्‍वतः गर्भपात या गर्भस्‍त्राव हो चुके हैं।
  • गर्भवती स्‍त्री नशीली दवा, संक्रमण या रसायनो जैसे सशक्‍त विकलांगता प्रदार्थो के संसर्ग में रही है।
  • गर्भवती स्‍त्री या उसके पति का मानसिक मंदता या संस्‍तंभता जैसे किसी शारीरिक विकार या अन्‍य किसी आनुवांशिक रोग का पारिवारिक इतिहास है।
  • केन्‍द्रीय पर्यवेक्षक बोर्ड द्वारा संसूचित कोई अन्‍य अवस्‍था है।

लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम

स्त्रोत: चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग,राजस्थान सरकार।

Check Also

कितने मानव अंगों का प्रत्यारोपण किया जा सकता है?

🔊 Listen to this सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय अंग एवं …