सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : संविधान की मूल प्रति में विख्यात चित्रकार नंदलाल बोस की कूची से बनाए हुए कुल 22 चित्र हैं। इनके आधार पर हम समझ सकते हैं कि हमारे संविधान निर्माताओं के मन-मस्तिष्क में कैसे आदर्श भारतीय समाज की परिकल्पना रही होगी। इन चित्रों की शुरुआत मोहनजोदड़ो से होती है। फिर वैदिक काल के गुरुकुल, रामायण में लंका पर प्रभु श्रीराम की विजय, गीता का उपदेश देते श्रीकृष्ण, भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म का प्रचार, गुप्त वंश की कला जिसमें हनुमानजी का दृश्य है, विक्रमादित्य का दरबार, नालंदा विश्वविद्यालय, उड़िया मूर्तिकला, नटराज की प्रतिमा, भागीरथ की तपस्या से गंगा का अवतरण, मुगलकाल में अकबर का दरबार, शिवाजी और गुरु गोविंद सिंह, टीपू सुल्तान और महारानी लक्ष्मीबाई, गांधी जी का दांडी मार्च, नोआखली में दंगा पीड़ितों के बीच गांधी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, हिमालय का दृश्य, रेगिस्तान का दृश्य, महासागर का दृश्य शामिल हैं। इन चित्रों के जरिये भारत की महान परंपरा की कहानी बयां की गई है। असल में ये भारत के लोकाचार और मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन्हीं चित्रों ने संविधान के जरिये शासन और सियासत के अभीष्ट निर्धारित किए गए थे। ये सभी चित्र भारत के महान सांस्कृतिक जीवन और विरासत के ठोस आधार हैं। राम, श्रीकृष्ण, हनुमान, गीता, बुद्ध, महावीर, नालंदा, गुरु गोविंद असल में भारतीय लोकजीवन के दिग्दर्शक हैं।
जाहिर है संविधान की मूल रचना में इन्हें जोड़ने के पीछे यही सोच थी कि भारत की आधुनिकता और विकास की यात्रा इन जीवनमूल्यों के आलोक में ही निर्धारित की जानी चाहिए, लेकिन दुखद है कि पिछले कुछ दशकों ने भारतीय संविधान निर्माताओं की भावनाओं के उलट देश के शासनतंत्र और चुनावी राजनीति के माध्यम से भारत के लोकजीवन को धर्मनिरपेक्षता के शोर से दूषित करने का प्रयास किया गया है।
क्या राम की मर्यादा, कृष्णा का गीता ज्ञान, हनुमान का शौर्य, बोस की वीरता, गुरुकुल की शैक्षणिक व्यवस्था, गांधी के रामराज्य, अकबर का सौहार्द, बुद्ध की करुणा, महावीर की शीलता, गुरुगोविंद सिंह का बलिदान, टीपू और लक्ष्मीबाई के शौर्य का अक्स भारत के साथ समवेत होने से हमारी आधुनिकता में कोई ग्रहण लगाने का काम करता है? हमारे पूर्वजों ने तो ऐसा नहीं माना। इसीलिए मूल संविधान में इन सभी प्रतीकों का समावेश किया है, क्योंकि भारत कोई जमीन पर उकेरी गई या जीती गई या समझौता से बनाई गई भौगोलिक संरचना मात्र नहीं है। यह तो एक जीवंत सभ्यता है जो सृष्टि के सृजन के समानांतर चल रही है।