प्रशिक्षण की जिजीविषा दिव्यांग शिक्षक जिन से मिलेगी आपको प्रेरणा

सर्वप्रथम न्यूज़ रत्नेश कुमार कलम से : दिव्यांग जब हम वास्तविकता को जानने समझने निकलते हैं या यूं कहें कि ज्ञान को उसके मूल रूप से परिणाम तक की खोज में खोजबीन छानबीन करने की जुगत में निकलते हैं तो उस समय की महत्वाकांक्षा कुछ पाने की लालसा जिज्ञासा को जन्म देती है जिसे उत्तम प्राप्ति के लिए प्रशिक्षण काले से गुजरना पड़ता है आप देख सकते हैं चाहे वह इंडस्ट्री हो चाहे वह नॉलेज इंडस्ट्री हो या फिर खाद्यान्न उत्पन्न तावा अनेकानेक लब्धि युक्त| व्यक्ति विशेष में चाहे वह किसी भी विभाग का क्यों ना हो अपने जीवन में उन पलों के जब हुआ प्रशिक्षणार्थी बना होगा, एकात्मक मनसे श्रद्धा पूर्वक गुरुजनों की वाणी विचार पर अमल अमल करने से ओतप्रोत होगा| कुछ मन है स्थितियां तो ऐसी होंगी जिनमें गुस्सा और कुछ नहीं भी, तो कुछ स्नेही भी कुछ मेहनत कर आगे बढ़ने का प्रबल तो कुछ कुंठित लेकिन सभी अर्थों में किया गया प्रयास या भाव भंगिमा दर्शाता है कि आखिर उच्च शिखर तक पहुंचा कैसे जाएं,| जहां तक बात सभी की करें तो आज के वैज्ञानिक व वैकल्पिक दुनिया में अनेक आयाम जिनकी मदद से इसे पूर्ण किया जाता है| पूर्व में प्रैक्टिकल पठन-पाठन हुआ करते थे , जैसे महाभारत रामायण काल में धनुर्विद्या सीखने की कला सिर्फ प्रैक्टिकल आधारित होती थी जिसकी ट्रेनिंग महर्षि रूपी गुरु करते थे, आज के समय में नाना प्रकार के प्रयोगात्मक अवलोक आत्मक सृजनात्मक आईसीटी भेज टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर बहुत आसान तरीके से प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं|
इसके दूसरे अर्थ में देखें तो पाते हैं कि प्रशिक्षण काल में व्यक्ति विशेष भूतकाल में पहुंच जाता है जब वह स्वयं विद्यालय वातावरण में रहा होगा जानने समझने सोचने की क्षमता का विकास करना| किसी भी परीक्षा को पार करने में सफल होने के लिए 6 महीने से साल भर या 2 साल तक के निरंतर प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है जैसे सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी बैंकिंग रेलवे एसएससी अन्य नौकरियों की तैयारी में किए जाने वाला प्रयास जो प्रशिक्षण के रूप में होता है, उनमें निरंतरता हो लग्न हो मेहनत की पराकाष्ठा हो वह इसको फलीभूत कर पाते हैं अतः किसी भी रूप में अर्थ में हो तो हमें भी दोनों स्वरूपों में इसका ध्यान रखना होता है कि प्रशिक्षण अवधि फलीभूत हो और पूर्ण हंड्रेड परसेंट इसको फलीभूत करने के लिए हमें भी प्रयास करते रहना होगा| ठेठ भाषा में कह सकते हैं ताली दोनों हाथों से बजती प्रशिक्षण करता के साथ प्रशिक्षणार्थी एवं इसके प्रयोजन हेतु उपलब्ध सामग्री जिसे स्टडी मटेरियल के नाम से भी जाना जाता है उसका होना|
इस के संदर्भ में कह सकते हैं कि यह वह मनोरम फल होता है जिसमें व्यक्ति विशेष के जीवन में मिठास की अनुभूति होती जिसके लिए वह दुनिया से दूर एकांत स्थान पर इसे गुरुकुल के नाम से भी जान जानते हैं उस स्थान पर या कह सकते हैं किसी वनवास वाले स्थान पर या फिर कह सकते हैं कि वैसा प्रशिक्षण स्थान जो शिक्षण के क्षेत्र में देखें तो डायट के नाम से जाना जाता है जिला शिक्षण प्रशिक्षण केंद्र की कहते हैं तथा प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र में अलग-अलग नामों से जाना जाता है|
भारत सरकार ने अनेकानेक एनजीओ को हायर किया हुआ है जिन्होंने भी भारत की शिक्षा प्रणाली में शिक्षकों को प्रशिक्षण देने का काम किया है तोशियास  जो दिव्यांग शिक्षकों को   सभी तरीकों से मदद प्रदान कर रही प्रशिक्षण के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं और देश के उन तमाम प्रशिक्षणार्थियों ट्रेंड कर रही है जो आने वाले समय में देश के नौनिहालों को देश का सच्चा नागरिक बनाने में निरंतर लगातार मेहनत कर रहे हैं |
मैंने लेखक के रूप में इस क्षण की अनुभूति लिखते हुए काफी बारीकियों से देखा है इस अवधि में मन बचपन मैं जो सीखने की क्षमता होती है उस अवधि में चला जाता है इसलिए सदा तत्पर रहें और इतनी बनाएं की लाखों-करोड़ों लोगों को सिखा सकें धन्यवाद अगले एपिसोड में फिर से इस पर विचार रखेंगे ।

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