सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार :कोर्ट के फैसले में ASI का हवाला देते हुए कहा गया कि बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी खाली जगह पर नहीं किया गया था. विवादित जमीन के नीचे एक ढांचा था और यह इस्लामिक ढांचा नहीं था. कोर्ट ने कहा कि पुरातत्व विभाग की खोज को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
- सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन पर रामलला का हक माना
- कोर्ट के फैसले के बाद राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ
- अयोध्या में ही मस्जिद निर्माण के लिए दी जाएगी जमीन
अयोध्या में राम मंदिर बनने का रास्ता साफ हो गया है. देश की सबसे बड़ी अदालत ने सबसे बड़े फैसले में अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक माना है. जबकि मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया गया है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की विशेष बेंच ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया है.
शनिवार सुबह 10.30 बजे सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े, जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नज़ीर पहुंचे. पांच जजों ने लिफाफे में बंद फैसले की कॉपी पर दस्तखत किए और इसके बाद जस्टिस गोगोई ने फैसला पढ़ना शुरू किया.
खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी मस्जिद
फैसले में ASI (भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण) का हवाला देते हुए कहा गया कि बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी खाली जगह पर नहीं किया गया था. विवादित जमीन के नीचे एक ढांचा था और यह इस्लामिक ढांचा नहीं था. कोर्ट ने कहा कि पुरातत्व विभाग की खोज को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
हालांकि, कोर्ट ने ASI रिपोर्ट के आधार पर अपने फैसले में ये भी कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की भी पुख्ता जानकारी नहीं है. लेकिन इससे आगे कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पक्ष विवादित जमीन पर दावा साबित करने में नाकाम रहा है.
वहीं, कोर्ट ने 6 दिसंबर 1992 को गिराए गए ढांचे पर कहा कि मस्जिद को गिराना कानून का उल्लंघन था. ये तमाम बातें कहने के बाद कोर्ट ने विवादित जमीन पर रामलला का हक बताया. हालांकि, कोर्ट ने शिया वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े के दावों को खारिज कर दिया.
निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज
निर्मोही अखाड़े की लिखित दलील में कहा गया था कि विवादित भूमि का आंतरिक और बाहरी अहाता भगवान राम की जन्मभूमि के रूप में मान्य है. हम रामलला के सेवायत हैं और ये हमारे अधिकार में सदियों से रहा है. निर्मोही अखाड़े ने अपनी दलील में कहा था कि हमें ही रामलला के मंदिर के पुनर्निर्माण, रखरखाव और सेवा का अधिकार मिलना चाहिए. अखाड़े के इस दावे को कोर्ट ने खारिज कर दिया और विवादित जमीन पर मंदिर निर्माण के लिए अलग से ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया.
वहीं, शिया वक्फ बोर्ड का दावा भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. शिया वक्फ बोर्ड ने कहा था कि मस्जिद मीर बाकी ने बनवाई थी, जो एक शिया थे, ऐसे में यह मस्जिद सुन्नियों को नहीं दी जा सकती. कोर्ट ने शिया वक्फ बोर्ड के इस दावे को भी खारिज कर दिया.
केंद्र सरकार को ट्रस्ट बनाने का आदेश
विवादित जमीन पर रामलला का हक बताते हुए कोर्ट ने केंद्र सरकार को तीन महीने के अंदर ट्रस्ट बनाने का भी आदेश दिया. इस ट्रस्ट के पास ही मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी होगी. यानी अब राम मंदिर का निर्माण का रास्ता साफ हो गया है और इस पर अब आगे का काम केंद्र की मोदी सरकार को करना है.
मुस्लिम पक्ष को भी जमीन
कोर्ट ने विवादित जमीन पर पूरी तरह से रामलला का हक माना है, लेकिन मुस्लिम पक्ष को भी अयोध्या में जमीन देने का आदेश दिया है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही किसी उचित जगह मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ जगह दी जाए.
इस तरह 40 दिनों की लगातार सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आ गया है, जिसमें दशकों पुराने विवाद का खात्मा हो गया है और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया है.
क्या था इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट से पहले इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 में अपना फैसला सुनाया था. 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का बंटवारा कर दिया गया था. कोर्ट ने यह जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान के बीच जमीन बराबर बांटने का आदेश दिया था. हाई कोर्ट के इस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसपर लंबी सुनवाई के बाद शनिवार (9 नवंबर) को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया और विवादित जमीन रामलला को देने का आदेश दिया.