सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : डॉक्टर हो या वकील, ड्राइवर हो या कुली, सबके पास एक ड्रेस होती है और सबके पास सरकार की तरफ से मिला एक पहचान पत्र होता है। इससे उनकी सेवा लेने वाले व्यक्ति को सेवा की गुणवत्ता के बारे में एक भरोसा मिलता है और किसी भी तरह की धोखाधड़ी से बचने में मदद भी मिलती है। लेकिन दूध सप्लाई करने वाले दूधिए के पास न तो कोई पहचान पत्र होता है और न ही उसका कोई प्रशिक्षण होता है।इससे लोगों तक असुरक्षित या निम्न गुणवत्ता का दूध पहुंचने की आशंका बनी रहती है। लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा क्योंकि FSSAI ने हर ‘दूध वाले भैया’ को एक पहचान पत्र देने का फैसला किया है। पहचान पत्र दिए जाने के पहले दूधियों का प्रशिक्षण भी कराया जाएगा, ताकि वे अपनी सेवाओं के दौरान दूध की गुणवत्ता सुनिश्चित कर सकें।
अब दूध वाले ‘भैया’ के लिए जरूरी होगा रजिस्ट्रेशन! पहचान पत्र के साथ ही बेच सकेंगे दूध
भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी पवन अग्रवाल ने राष्ट्रीय दुग्ध दिवस (National Milk Day) पर देश में दुग्ध उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए एक एक्शन प्लान का विमोचन किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि दूध भी खाद्य पदार्थों की श्रेणी में आता है और इसे बेचने वालों के लिए रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है। लेकिन एजेंसियों के ढीलेढाले रवैये के चलते इसे अब तक लागू नहीं किया जा सका। वही, अब दुग्ध उत्पाद बेचने वालों के लिए रजिस्ट्रेशन कराने के लिए जागरुकता अभियान चलाया जाएगा।
उनका लक्ष्य है कि पहले चरण में न्यूनतम एक लाख दूधियों रजिस्ट्रेशन कराया जाए। रजिस्ट्रेशन के बाद इसके परिणामों का ज्यादा गहराई के साथ अध्ययन किया जाएगा। अगर परिणाम अच्छे आते हैं और सामान्य जनता की तरफ से इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है, तो इसे पूरे देश में सबके लिए अनिवार्य कर दिया जाएगा। अनुमानतः देश में लगभग 25 लाख दूधिए हैं। जबकि रजिस्ट्रेशन के नाम पर लगभग पांच फीसदी बड़ी डेयरियों/दुग्ध विक्रेताओं ने ही रजिस्ट्रेशन करा रखा है।
दरअसल, इस समय दूधिये सीधे दूध लोगों को बेचते हैं। लेकिन नियम तय हो जाने के बाद दूधियों को एक पहचान पत्र मिलेगा। साथ ही, उनके पास दूध की गुणवत्ता बताने वाला लैक्टोमीटर भी होगा। इससे वे स्वयं उस दूध की गुणवत्ता देख सकेंगे। ग्राहक की मांग पर भी उन्हें लोगों के घर पर ही दूध की गुणवत्ता चेक करके दिखानी होगी। दूध वाले को इसके लिए प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। प्रशिक्षण का खर्च राज्य सरकार या एफएसएसएआई उठाएगा।
पहचान पत्र बनाने की सुविधा ऑनलाइन उपलब्ध कराई जाएगी। इसमें राज्य सरकारों और स्थानीय एजेंसियों को भी शामिल किया जाएगा। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण का मानना है कि पहचान पत्र होने से ग्राहक यह समझ सकेगा कि उसका दूधिया रजिस्टर्ड है और उसे दिया जाने वाला दूध अच्छी क्वॉलिटी का है। इससे उसका विश्वास बढ़ेगा। वहीं, दूधिए स्वयं अपने स्तर पर कोई गड़बड़ी न कर सकें, इसे सुनिश्चित करने के लिए किसी स्वतंत्र संस्था से बीच-बीच में लगातार चेकिंग कराए जाने का भी प्रावधान किया जा रहा है। इस योजना को अमल में आने में डेढ़ महीने का समय लग सकता है।
दरअसल, दूध सबसे प्रमुख आहारों में से एक माना जाता है। लेकिन दूध की गुणवत्ता लगातार सवालों के घेरे में आती रही है। त्योहारी सीजन के दौरान किसी भी दुग्ध उत्पाद की गुणवत्ता बेहत संदेह के घेरे में रहती है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि दूध का उत्पादन करने वाले हमारे गांव के किसान अभी भी कम पढ़े-लिखे हैं। कई बार अनजाने में वे अपने जानवरों को ऐसे पदार्थ खिला देते हैं, जिनकी वजह से दूध में हानिकारक तत्त्व मिल जाते हैं। यही बात दूधियों के साथ भी होती है। इसलिए दूध की गुणवत्ता तय करने के लिए किसानों, दूधियों और विक्रेताओं को प्रशिक्षित करने की योजना बनाई गई है।
भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने 34 राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों को भी दुग्ध की गुणवत्ता चेक करने वाली नई और उन्नत किस्म की मशीनें उपलब्ध कराई हैं। इनके जरिये केवल दस मिनट के अंदर दुग्ध उत्पाद की गुणवत्ता चेक की जा सकेगी। इसके अलावा दूध में किस प्रकार की मिलावट है या किस प्रकार का पदार्थ मिलाया गया है, इसकी सटीक जानकारी मिल सकेगी।
दूध और दुग्ध उत्पादों में पानी सबसे बड़ा मिलावट वाला तत्व है। इसके अलावा कुछ मिलावटखोर डिटर्जेंट, यूरिया, एफ्लाटॉक्सिन एम वन, वनस्पतियों या जानवरों का फैट और कई अन्य पदार्थ भी दुग्ध उत्पादों में मिलाते हैं, इनकी वजह से लोगों को अनेक प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। एफएसएसएआई के एक सर्वे के मुताबिक पिछले साल लगभग सात फीसदी दूध सैंपल गुणवत्ता के मामले में फेल पाए गए थे। वहीं कई दुग्ध सैंपलों में हाइड्रोजन परॉक्साइड, डिटर्जेंट और न्यूट्रिलाइजर भी मिला था। 156 सैंपलों में माल्टोडेक्सट्रिन भी पाया गया था। सबसे ज्यादा संख्या ऐसे मामलों की पाई गई थी, जिनमें दूध सुरक्षित तो था, लेकिन उनकी गुणवत्ता काफी खराब थी। ऐसा दूध में पानी मिलाए जाने के कारण होता है।
राजधानी दिल्ली के साथ-साथ पूरे देश में दूग्ध उत्पादों में मिलावट के लिए अनेक लोगों को दंडित भी किया गया है। वर्ष 2018-19 में एफएसएसएआई ने दूध की गुणवत्ता चेक करने के लिए 10,663 सैंपलों का परीक्षण किया था। इनमें 3,783 सैंपल मिलावटी और निम्न गुणवत्ता वाले थे। इसके लिए विक्रेताओं/दुग्ध उत्पादकों पर 19 आपराधिक और 2,485 सिविल केस दाखिल किए गए। वर्ष 2018-19 में लगभग एक हजार केसों में (पूर्व का या संबंधित वर्ष को मिलाकर) दोष साबित हुआ था। इन मामलों में 1569 लोगों/संस्थाओं पर जुर्माना लगाया गया और दोषी पाए गए लोगों को लगभग 3.04 करोड़ रुपयों का जुर्माना भरना पड़ा।