भारत का हर सातवां व्यक्ति मानसिक रोग का शिकार

सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : भारत में हर सात में से एक व्यक्ति मानसिक रोग से पीड़ित है। हालांकि रोग की गंभीरता कम या ज्यादा हो सकती है। मानसिक रोग के कारण भारत पर पड़ने वाले बोझ को लेकर भारतीय चिकित्सा शोध परिषद (आईसीएमआर) ने 2019 में पहली बार इस पर व्यापक अध्ययन किया। अध्ययन में पता चला है कि 4.57 करोड़ लोग आम मानसिक विकार अवसाद और 4.49 करोड़ लोग बेचैनी से पीड़ित हैं।शोध में पता चला है कि भारत में मानसिक बीमारी साल दर साल बढ़ी है। इसमें जो तथ्य सामने आए हैं, उसके मुताबिक करीब 19.7 करोड़ लोग या हर सातवां भारतीय किसी न किसी तरह की मानसिक बीमारी से ग्रस्त है। अवसाद, बेचैनी, सिजोफ्रिनिया, द्विध्रुवीय रोग, आचरण संबंधी रोग और ऑटिज्म आदि मानसिक रोग के प्रकार हैं।

इनमें डिप्रेशन (अवसाद), एंग्जाइटी (चिंता) और सिजोफ्रेनिया से लोग सबसे ज्यादा परेशान रहे। डिप्रेशन और एंग्जाइटी सबसे सामान्य रूप से मिलने वाली समस्याएं थीं। इन दोनों का असर भारत में बढ़ता दिख रहा है। साथ ही महिलाओं और दक्षिण भारतीय राज्यों में इनका असर सबसे ज्यादा दिखाई दिया। उत्तर भारत में एंग्जाइटी का असर सबसे कम देखा गया। हैरान करने वाली बात यह है कि 2019 में मानसिक बीमारी के रोगियों की संख्या 1990 की तुलना में दोगुनी हो गई है।

अध्ययन के मुताबिक देश में 2019 में 19.7 करोड़ लोग मानसिक विकार से ग्रस्त थे। डिप्रेशन पीड़िताें में उम्रदराज लोगों की संख्या ज्यादा है। डिप्रेशन की वजह से होने वाली आत्महत्याओं में भी इजाफा हुआ है। बचपन में होने वाले मानसिक विकार के मामले उत्तर भारतीय राज्यों में ज्यादा देखे गए। हालांकि, देशभर में बच्चों के इस तरह के मामले पहले की तुलना में कम हुए हैं।

दरअसल, देश में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को सामान्य चिकित्सा सेवाओं में शामिल कर इसका इलाज लेने में लोगों की झिझक दूर करने की जरूरत है। 1990 में कुल रोगियों की संख्या में 2.5% रोगी मानसिक विकारों से पीड़ित होते थे, जबकि 2019में यह संख्या बढ़कर 4.7% हो गई।

2019 की विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक देश की जनसंख्या का 7.5% हिस्सा मानसिक विकारों से पीड़ित था। 2005 से 2015 के बीच दुनिया में डिप्रेशन के मामले 18% बढ़े थे। तब दुनियाभर में डिप्रेशन के करीब सवा तीन करोड़ पीड़ित थे। इनमें लगभग आधे दक्षिण-पूर्वी एशिया में थे। इसका देश की वृद्ध आबादी पर सबसे ज्यादा असर हो रहा है। सभी मानसिक रोगों में अवसाद का हिस्सा 33.8 फीसदी है। इसके बाद बेचैनी 19 फीसदी और सिजोफ्रिनिया के मरीज 9.8 फीसदी हैं।

खुदकुशी से जुड़े होने के कारण अवसाद सबसे बड़ी चिंता
प्रो भार्गव ने बताया, चूंकि भारत में अवसाद खुदकुशी मौतों से जुड़ा है इसलिए इसे काबू करना हमारी सबसे बड़ी चिंता है। यह बीमारी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा है। उन्होंने कहा कि 1990 से 2019 के बीच मानसिक रोग का प्रसार करीब दोगुना हो गया है। यह शोध हाल ही में लांसेट सैकियाट्री जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

बच्चों व किशोरों में सबसे ज्यादा बौद्धिक अक्षमता से पीड़ित
अध्ययन के मुताबिक बचपन व किशोरावस्था में होने वाले मनोरोग में बौद्धिक अक्षमता और सनकपन 4.5 फीसदी, आचरण संबंधी समस्या 0.8 फीसदी, ध्यान नहीं देने की बीमारी 0.42 फीसदी और ऑटिज्म (आत्मकेंद्रित) की बीमारी 0.35 फीसदी है।

एम्स के मनोरोग विभाग के प्रोफेसर डॉ राजेश सागर ने कहा, भारत में मानसिक बीमारी तेजी से बढ़ रही है। मानसिक स्वास्थ्य सेवा उन्नत करने, जागरूकता, सामाजिक लांछन को खत्म करना और उपचार तक लोगों की पहुंच आसान बनाना वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है। उत्तर भारत के पिछड़े राज्यों में बच्चों व किशोरों में मानसिक रोग की दर सबसे ज्यादा है, जबकि वयस्क होने के दौरान यह दर विकसित दक्षिणी राज्यों में ऊंची है।

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