सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षित वर्ग में नौकरी के संबंध में एक अहम फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार को आरक्षित वर्ग में ही नौकरी मिलेगी, चाहे उसने सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों से ज्यादा अंक क्यों न हासिल किए हों.
दोहरा लाभ नहीं
जस्टिस आर भानुमति और जस्टिस एएम खानविल्कर की पीठ ने कहा कि एक बार आरक्षित वर्ग में आवेदन कर उसमें छूट और अन्य रियायतें लेने के बाद उम्मीदवार आरक्षित वर्ग के लिए ही नौकरी का हकदार होगा. उसे समान्य वर्ग में समायोजित नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह फैसला आरक्षित वर्ग की महिला उम्मीदवार के मामले में दिया. याचिकाकर्ता ने कोर्ट से गुहार लगाई थी कि उसे सामान्य वर्ग में नौकरी दी जाए, क्योंकि उसने लिखित परीक्षा में सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों से ज्यादा अंक हासिल किए हैं.
नियम का हवाला :
कोर्ट ने कहा कि डीओपीटी की 1 जुलाई 1999 की कार्यवाही के नियम तथा ओएम में साफ है एससी/एसटी और ओबीसी के उम्मीदवार को, जो अपनी मेरिट के आधार पर चयनित होकर आए हैं, उन्हें आरक्षित वर्ग में समायोजित नहीं किया जाएगा. उसी तरह जब एससी/एसटी और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए छूट के मानक जैसे उम्रसीमा, अनुभव, शैक्षणिक योग्यता, लिखित परीक्षा के लिए अधिक अवसर दिए गए हों तो उन्हें आरक्षित रिक्तियों के लिए ही विचारित किया जाएगा. ऐसे उम्मीदवार अनारक्षित रिक्तियों के लिए अनुपलब्ध माने जाएंगे. याचिकाकर्ता ने उम्र सीमा में छूट लेकर ओबीसी श्रेणी में आवेदन किया था. उसने साक्षात्कार भी ओबीसी श्रेणी में ही दिया था। इसलिए वह सामान्य श्रेणी में नियुक्ति के अधिकार के लिए दावा नहीं कर सकती.
ऐसे समझें फैसले के मायने
उदाहरण के लिए अगर कोई उम्मीदवार आवेदन भरते समय ही खुद को आरक्षित श्रेणी में बताता है और इसके तहत मिलने वाला लाभ लेता है. लेकिन बाद में उसके अंक सामान्य श्रेणी के कटऑफ के बराबर या अधिक होते हैं, तो भी उसका चयन आरक्षित सीटों के लिए ही होगा. इसके तहत उसे सामान्य वर्ग की सीटें नहीं मिलेंगी.
क्या है मामला
दीपा पीवी ने वाणिज्य मंत्रालय के अधीन भारतीय निर्यात निरीक्षण परिषद में लैब सहायक ग्रेड-2 के लिए ओबीसी श्रेणी में आवेदन किया था. इसके लिए हुई परीक्षा में उसने 82 अंक प्राप्त किए. ओबीसी श्रेणी में उसे लेकर 11 लोगों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया. लेकिन इसी वर्ग में 93 अंक लाने वाली सेरेना जोसेफ को चुन लिया गया. जहां तक सामान्य वर्ग का सवाल था, वहां न्यूनतम कटऑफ अंक 70 थे. लेकिन कोई भी उम्मीदवार ये अंक नहीं ला पाया. दीपा ने इस श्रेणी में समायोजित करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे निरस्त कर दिया. इसके बाद दीपा सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी.