सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : देश में पांच राज्यों के चुनावों और बरोजगारी के मुद्दे के बीच RRB-NTPC की परीक्षा को लेकर बवाल मचा है। राजनीतिक दल केंद्र की मोदी सरकार की आलोचना में लगे हैं। इस बीच, रेलवे ने कहा है कि अपरेंटिस किए हुए युवाओं की भर्ती के लिए वह बाघ्य नहीं है। रेल मंत्रालय के मुताबिक भारतीय रेलवे अगस्त 1963 से अपरेंटिस अधिनियम के तहत अलग-अलग ट्रेड में प्रशिक्षुओं को ट्रेनिंग देता रहा है। इन आवेदकों को बिना किसी प्रतियोगिता या चयन के उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर ट्रेनी के रूप में भर्ती किया जाता है।
उचित प्रक्रिया से गुजरे बिना नौकरी के हकदार नहीं
रेलवे ने साफ किया है कि रेलवे ऐसे उम्मीदवारों को केवल ट्रेनिंग देने के लिए बाध्य था। जिन्होंने ट्रेनिंग पूरी कर ली थी, उन्हें 2004 से लेवल 1 के पदों के लिए विकल्प के रूप में नियुक्त किया जा रहा है। लेकिन विकल्प के तौर पर नियुक्त उम्मीदवार अस्थायी रूप से नियुक्त होते हैं, लेकिन वे नियुक्ति के उचित प्रक्रिया से गुजरे बिना स्थायी रोजगार में पाने के हकदार नहीं हैं।
2014 में बदला था नियम, 20% मिल रही वरीयता
रेलवे ने 2017 में सभी भर्तियों के लिए प्रक्रिया को लेवल 1 पर सेंट्रलाइज्ड कर दिया है। यह अब से एक आम कम्प्यूटर आधारित परीक्षण (CBT) के माध्यम से आयोजित किया जाता है। रेलवे के मुताबिक अपरेंटिस अधिनियम 2014 में संशोधित किया था। इसके तहत अधिनियम की धारा 22 में प्रावधान किया गया था कि नियोक्ता अपने प्रतिष्ठान में प्रशिक्षित ट्रेनी की भर्ती के लिए एक नीति तैयार करेगा। इसके तहत रेलवे प्रतिष्ठानों में प्रशिक्षित उम्मीदवारों को कुल पदों के 20% तक की सीमा में वरीयता देने का नियम बनाया गया था।
बिना भर्ती प्रक्रिया के नियुक्ति की मांग कर रहे युवा
रेलवे के मुताबिक अपरेंटिस किए हुए युवा अन्य उम्मीदवारों के बीच लिखित परीक्षा में आते हैं तो उन्हें न्यूनतम योग्यता अंक, मीटिंग और मेडिकल के मामले में वरीयता दी जाती है। सरकार के मुताबिक 2018 में 63,202 पदों में 12,504 लेवल 1 के पदों को ऐसे अपरेंटिस किए हुए प्रशिक्षुओं के लिए रखा गया था। इसी तरह 2019 में 1,03,769 पदों में से 20,734 पदों को लेवल-1 के लिए निर्धारित किया गया था। इस नोटिफिकेशन के लिए भर्ती होनी है, लेकिन ये अपरेंटिस किए युवा प्रशिक्षु रेलवे में बिना निर्धारित भर्ती प्रक्रिया के नियुक्ति देने की मांग कर रहे हैं। यानी कि लिखित परीक्षा और शारीरिक दक्षता परीक्षा, जो कि अन्य सभी उम्मीदवारों को मौजूदा नियमों के अनुसार गुजरना आवश्यक है। रेलवे का कहना है कि यह मांग कानूनी रूप से सही नहीं है, क्योंकि यह संवैधानिक प्रावधानों और सार्वजनिक रोजगार के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का उल्लंघन है, जिसमें निष्पक्ष चयन की प्रक्रिया के अलावा कोई भी रोजगार प्रदान नहीं किया जा सकता है।