सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : शिक्षकों के तीन लाख से अधिक पद रिक्त, पर बात गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बिन शिक्षक कैसे पढ़ेगा बिहार यह है बड़ा सवाल, कुछ जिलों में विद्यालय भवन का भी है अभाव जब शिक्षा की बात होती है तो वहां शिक्षकों की बात भी होती है। बिना शिक्षक के शिक्षा दे पाना संभव नहीं है। वर्तमान में अगर हम बात करे तो बिहार में शिक्षकों की कमी एक अहम मुद्दा है। सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को भले ही लाख दावे कर ले, लेकिन बिना शिक्षक के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे पाना संभव नहीं है। आज बिहार में विद्यालय में पढ़ने के लिए बच्चे नामांकित तो है लेकिन पढ़ाने के लिए शिक्षकों का अभाव है। साथ ही कुछ जिलों में विद्यालय भवन का भी अभाव है। राज्य के विद्यालयों में शिक्षकों की वर्तमान स्थिति: बिहार शिक्षा परियोजना के रिपोर्ट के अनुसार बिहार में विद्यालयों की संख्या पर बात करे तो 41,762 प्राथमिक विद्यालय 26,523 मध्य विद्यालय (कक्षा 1 से 8 तक) एवं 261 केवल मध्य विद्यालय है। बिहार में 3,276 विद्यालय पर सिर्फ एक शिक्षक, 12507 विद्यालय पर दो शिक्षक 10595 विद्यालय पर 3 शिक्षक, 7170. विद्यालय पर 4 शिक्षक, 4366 विद्यालय पर 5. शिक्षक, 3874 विद्यालय जहा 5 से अधिक शिक्षक कार्यरत है। यानी कुल मिलाकर 3874 विद्यालय में ही शिक्षकों की स्थिति ठीक ठाक है। पूरे बिहार को बात करे बिहार में शिक्षकों के रिक्त पद बिहार में कक्षा 1 से कक्षा 12 तक शिक्षकों के कुल स्वीकृत पद 7,28,937 है जिनमें से कार्यरत शिक्षकों की संख्या 4, 13, 159 है । इस प्रकार वर्तमान में शिक्षकों के रिक्त पदों की संख्या 3, 15, 778 है। इतने शिक्षकों के रिक्त पद के बावजूद भी सरकार समय पर शिक्षकों की बहाली नहीं करती। वर्तमान में 94000 शिक्षकों की नियुक्ति प्रतिया भी अटकी हुई है।चलायी जा रही है मुहिम राज्य में शिक्षकों का अभाव है फिर भी सरकार मुकदर्शक बनी हुई है। इस स्थिति को देखते हुए बिहार के युवाओं द्वारा एक मुहिम भी चलाई जा रही है जिसका नाम बिन शिक्षक के पढ़ रहा बिहार है। इस मुहिम की शुरुआत बिहार प्रारंभिक शिक्षक नियोजन फेसबुक पेज के फाउंडर सौरभ कुमार द्वारा किया गया। सौरभ ने बताया कि जब हमने बिहार के विद्यालयों में शिक्षकों की स्थिति का जायजा लेना शुरू किया तो शिक्षकों की कमी को देखकर दंग रह गया की जब रिक्त पद है तो सरकार समय कर बहाली क्यों नहीं करती। साथ ही साथ टीचर्स एकेडमी ग्रुप के विवेक कुमार ने बताया कि प्राथमिक स्कूलों (कक्षा एक से पांच) में कम सेकम प्रधानाध्यापक समेत छह शिक्षकों की आवश्यकता होती है, लेकिन कहीं 2 तो कहीं 1 ही शिक्षक कार्यरत हैं। बताते चलें कि नई शिक्षा नीति के तहत 30 बच्चों पर एक शिक्षक की जरूरत है. लेकिन बिहार में इस मामले में स्थिति दयनीय है।तो 9004 ऐसे विद्यालय है जहां शिक्षक छात्र का अनुपात 100 से ज्यादा का है। जबकि पूरे बिहार राज्य का शिक्षक छात्र अनुपात 57 है।सीतामढ़ी जिले में शिक्षक छात्र का अनुपात 75 है तो वहीं नालंदा जिले के शिक्षक छात्र का अनुपात 42 है राज्य में 2007-08 में विद्यालयों की संख्या 66627 थी जो की 2015-16 में बढ़कर 70934 हो गई। ये रिपोर्ट 2015-16 के यूनिफाइड राज्य शिक्षा सूचना प्रणाली के अंतर्गत है। अब बात करे विद्यालय में नामांकित बच्चे की तो सत्र 2021-22 के दौरान कुल 32,08,503 बच्चे का नामांकन हुआ, लेकिन अब इन बच्चों को बिन शिक्षक के शिक्षा कैसे मिलेगा। राज्य में कुल शिक्षकों की संख्या 3,83,176 है। ये बिहार सरकार के 2015- 16 के डाटा के अनुसार है। इसके बाद न तो डाय जारी हुआ है और न ही शिक्षकों की बहाली हुई। एक समय था कि बिहार शिक्षा के मामले में अग्रणी हुआ करता था, नालंदा जैसे प्राचीन विश्वविद्यालय ने देश-विदेश के लोगों को शिक्षित किया लेकिन आज शिक्षक के अभाव में बिहार खुद पीछे है। आरटीई एक्ट 2008 के तहत कक्षा 1 से 8 तक की शिक्षा को मौलिक अधिकार में शामिल किया गया। लेकिन आज सरकार बच्चों के मौलिक अधिकारका हनन कर रही हैं। बिहार के बच्चों को आखिरकब तक शिक्षक नसीब होगा। इस सवाल का जवाब बिहार सरकार और शिक्षा विभाग को ही देना है।
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