सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कमार : कर्नाटक उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के एक फैसले को पलट दिया है। साथ ही अदालत ने 75 प्रतिशत दिव्यांग व्यक्ति को भी राहत दी है। कोर्ट ने कहा कि किसी दिव्यांग व्यक्ति को अलग रह रही पत्नी को भरण-पोषण देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने व्यक्ति की शारीरिक सीमाओं पर जोर देते हुए कहा कि पति बैसाखी की मदद से चल रहा है और भरण-पोषण के लिए उससे नौकरी की अपेक्षा करना अव्यवहारिक है। इस मामले में पति-पत्नी के बाद तलाक हुआ था और पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत भरण पोषण के लिए 15,000 रुपये प्रति माह दिए जाने की मांग की थी। हालांकि बाद में पति दिव्यांग हो गया और गुजारा भत्ता देने में अक्षम हो गया।हाई कोर्ट ने पति की दिव्यांगता के मद्देनजर उसकी पत्नी द्वारा दायर भरण-पोषण संबंधी याचिका को खारिज कर दिया। हालांकि हाई कोर्ट ने दिव्यांग पति के पिता से पोते के जरूरतों के लिए बेटे की दिव्यांगता से पहले का भुगतान वित्तीय सहायता के लिए महिला को देने को कहा।
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