पीएम मोदी ने अगर मान ली पूर्व आर्थिक सलाहकार की बात तो हर महीने आपके बैंक खाते में आएंगे पैसे!

सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार :पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविंद सुब्रमण्यन (Arvind Subramanian) ने भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) को लेकर एक बार फिर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि सरकार इनकम टैक्स दर (Income Tax) घटाने की बजाय लोगों को यूनिवर्सल बेसिक इनकम (Universal Basic Income) स्कीम का फायदा दे. ऐसा करने से देश में मांग बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था में चल रहा डाउनफॉल खत्म हो जाएगा. बता दें कि पिछले बुधवार को उन्होंने कहा था कि भारत ‘गहरी आर्थिक सुस्ती’ में घिरती जा रहा है. बैंकों और कंपनियों की टूइन बैलेंसशीट क्राइसिस के कारण अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव है. आइए आपको बताते हैं कि क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम और कैसे इसके तहत हर परिवार के एक सदस्य को एक निश्चित राशि प्रति महीने या फिर एकमुश्त दी जा सकती है, जिसे यूबीआई यानी बुनियादी आमदनी के तौर पर जाना जाता है.

भारत में चल चुका है पायलट प्रोजेक्ट

सबसे पहले इंदौर जिले के 9 गांवों में पायलट प्रोजेक्ट की तरह इसे शुरू किया गया. साल 2010 से 2016 तक चले इस प्रोजेक्ट के तहत वयस्कों और बच्चों को हर महीने एक निश्चित रकम दी गई. यूनिसेफ से फंडिंग की गई और हर महीने पैसा लोगों के बैंक अकाउंट में पहुंचा. इसके बाद कई एनजीओ ने सर्वे भी किया कि इस रकम से लोगों के जीवनस्तर पर क्या फर्क आया. सर्वे के नतीजे अलग-अलग रहे लेकिन औसत नतीजा अच्छा रहा. इसी आधार पर सरकार ने अपने आर्थिक सर्वे में इस योजना की सिफारिश की.

सबसे पहले इंदौर जिले के 9 गांवों में पायलट प्रोजेक्ट की तरह इसे शुरू किया गया. साल 2010 से 2016 तक चले इस प्रोजेक्ट के तहत वयस्कों और बच्चों को हर महीने एक निश्चित रकम दी गई. यूनिसेफ से फंडिंग की गई और हर महीने पैसा लोगों के बैंक अकाउंट में पहुंचा. इसके बाद कई एनजीओ ने सर्वे भी किया कि इस रकम से लोगों के जीवनस्तर पर क्या फर्क आया. सर्वे के नतीजे अलग-अलग रहे लेकिन औसत नतीजा अच्छा रहा. इसी आधार पर सरकार ने अपने आर्थिक सर्वे में इस योजना की सिफारिश की.

दुनिया में कहां-कहां है यूबीआई

हालांकि ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनॉमिक डेवलपमेंट (ओईसीडी) के अनुसार दुनिया के किसी भी देश ने इसे वर्किंग-एज जनसंख्या की आय के मुख्य साधन के तौर पर नहीं अपनाया लेकिन किसी न किसी रूप में ये चल रहा है. कई देशों में यूबीआई को गारंटीड मिनिमम इनकम (जीएमआई) के नाम से भी जाना जाता है. यह सोशल वेलफेयर प्रोविजन है जो ये बात पक्की करता है कि सभी नागरिक न्यूनतम सुविधा पा सकें.विश्व के कई देश अलग-अलग स्तर पर अपने नागरिकों को ये सुविधा दे रहे हैं. इनमें साइप्रस, फ्रांस, अमेरिका के कई राज्य, ब्राजील, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, जर्मनी, नीदरलैंड, आयरलैंड, लग्जमबर्ग, स्वीडन, स्विटरजरलैंड और यूनाइटेड किंगडम शामिल हैं. इनमें से कई देशों में या तो पायलेट प्रोजेक्ट चल रहा है या फिर विभिन्न स्तरों पर सरकार नागरिकों को पैसे दे रही है.भारत में लागू होने पर हो सकती हैं ये मुश्किलें

देश में ये योजना लागू करने में कई बेसिक समस्याएं हैं. यूबीआई का आइडिया लाने वाले लंदन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गाई स्टैंडिंग के अनुसार इस योजना को लागू करने पर जीडीपी का लगभग 4 प्रतिशत खर्च आएगा. वर्तमान में सरकार जीडीपी का लगभग इतना ही हिस्सा विभिन्न तरह की सब्सिडी में दे रही है. ऐसे में सरकारी खजाने पर दोगुना बोझ पड़ सकता है. हालांकि इसका एक रास्ता उन्होंने ये भी सुझाया कि सब्सिडी को सरकार धीरे-धीरे खत्म करे और यूबीआई को पूरी तरह लागू कर दे. इससे जीवनस्तर सुधरेगा और आय में असमानता जैसी समस्याएं भी कम होने लगेंगी

 

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