दिव्यांग छात्र बिहार युनिवर्सिटी करती है बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़

सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : दिव्यांग बिहार युनिवर्सिटी में अगर एडमिशन ले लिया है, तो यह युनिवर्सिटी आपके भविष्य के साथ इतना खेल खेलेगी कि आप देखते रह जाएंगे। आपके आंखों के सामने आपके अंक पत्र और बाकि सभी कागजात रखे रहेंगे मगर आप चाहकर भी अपने अंक पत्र नहीं ले पाएंगे क्योंकि यहां की व्यवस्था इतनी ढ़ीली है कि बच्चों को एक-एक काम के लिए घोड़ों के जैसे दौड़ लगानी पड़ती है।

अधिकारी से लेकर सामान्य शिक्षक या कर्मचारी सभी के तेवर इतने गर्म होते हैं कि जब उनसे अंक पत्र या अपने ही कागजात मांगों तो लगता है, जैसे आपने उनके साथ कौन सा दुव्यवहार कर दिया है।

शिक्षा पर मुख्यमंत्री के खोखले वादे

यह बात केवल मैं नहीं कह रही बल्कि यहां पढ़ने वाले सभी बच्चों का यही कहना है। एक तो परीक्षाएं देर से होती हैं, जनाब यहां का सेशन ही लेट ही मगर हमारे मुख्यमंत्री एजुकेशन को सुधारने की बात करते हैं। यह बात अगर सच होती तो सेशन इतना लेट नहीं होता। हालांकि यहां बैठकें खुब होती है मगर कोई परिणाम नहीं निकलता। बैठकें सैकड़ों मगर नतीजा शुन्य।एक बार परीक्षा का परिणाम आ भी जाए तो उसके बाद अंकों को सुधरवाने के लिए भी खुद ही दौड़ लगानी पड़ती है। हां सही बात है कि अपना काम खुद करना चाहिए मगर जान बुझकर की गई गलती, जिससे बच्चों का भविष्य सीधे खराब होगा उसके लिए भी युनिवर्सिटी प्रशासन बच्चों से दौड़ लगवाता है। यही नहीं इसके साथ बच्चों से घुस भी मांगे जाते हैं।

रेस में पीछे रह जाएंगे

एक बात तो बच्चों से भी है कि आखिर वे घुस देने के लिए क्यों तैयार हो जाते हैं, इस पर जवाब मिलता है (नाम छुपाने की शर्त पर) अगर नहीं देंगे तो करियर दांव पर जाएगा। इतनी प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है अगर वक्त रहते कागजात नहीं निकले तो हम रेस में पीछे रह जाएंगे। सही बात है, आगे बढ़ने की होड़ होनी चाहिए, जिससे एजुकेशन डिपार्टमेंट भी आगे बढ़ें।

मेरी भी ऐसी घटना

मैं दिव्यांग छात्र अपने साथ बीती एक घटना आपके साथ शेयर कर रहा हूं। मुझे भी अपने कुछ पेपर्स निकलवाने थे। एक तो चार बार गलतियां करने के बाद युनिवर्सिटी ने उसे सुधारा तथा उसके बाद ओरिजनल पेपर के लिए मुझे कई बार परेशान किया गया मगर बाद में छात्रों के सहयोग और छात्रसंघ के हस्तक्षेप से मुझे मेरे पेपर्स मिले।

उसी बीच मैंने एक कर्मचारी को यह भी कहते सुना कि पेपर्स को छुपा दो ताकि बच्चें बार-बार कॉलेज के दौड़ लगाए और इसी बीच हम अपनी कमाई भी कर लें।

व्यवस्था सुधरेगी क्या?

इस तरह ऐसे कर्मचारी हर जगह बैठ हैं, जो बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करते हैं क्योंकि प्रशासन ध्यान नहीं देता। एजुकेशन सेक्टर में इतना ज्यादा करप्शन है कि बच्चों को अपनी पढ़ाई पूरी करने में जहां माथापच्ची करनी पड़ती है, उतनी ही माथापच्ची कर्मचारियों और डिपार्टमेंट के लोगों से भी करना पड़ती है। ऐसे में क्या शिक्षा व्यवस्था सुधरेगी? दिव्यांग अधिनियम 2016 का खुलेआम उल्लंघन हो रहा जिससे तोशियास संस्था कभी भी बर्दाश्त नहीं करेगी और शिक्षा सचिव आरके महाजन जी से बात करके इस समस्या का समाधान करवाया जाएगा ताकि दिव्यांगों को अपनी पढ़ाई में किसी प्रकार की असुविधा का सामना नही पड़े ।

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