स्ट्रीट चाइल्ड पर चौंकाने वाला रिपोर्ट

सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार :स्ट्रीट चाइल्ड शब्द का अर्थ है कि सड़क पर काम करने वाला बच्चें, जिनका घर-परिवार कुछ नहीं है या जो बच्चें जयादातर सड़कों पर रहते हैं. हालांकि, सड़कों पर बच्चों की विभिन्न श्रेणियों की पहचान की गई है, लेकिन अभी भी स्ट्रीट बच्चों को पहचानने में जटिलता है जिसको अभी पूरी तरह परिभाषित करना मुश्किल है. स्ट्रीट चिल्ड्रेन के एक प्रमुख शोधकर्ता मार्क डब्ल्यू लुस्क ने अपने शोध में सड़क पर बच्चों की चार श्रेणियां को विकसित किया है जो इस प्रकार है, बच्चें सड़क पर काम करते हैं लेकिन रात में अपने परिवार के पास लौट जाते हैं, वे बच्चे जो सड़क पर काम करते हैं लेकिन जिनका परिवार से संबंध कम हो रहा हैं, सड़क पर अपने परिवारों के साथ रहते हैं और काम करते हैं, और जो बच्चें सड़क पर अकेले काम करते हैं और वहीं रहते हैं, ऐसे ही बच्चों को स्ट्रीट चिल्ड्रेन कहा गया है.देश में आज भी हजारों की संख्या में बच्चें सड़कों पर रहने को मजबूर हैं. इस गंभीर समस्या के पीछे के सबसे गंभीर कारण हैं विस्थापन, बेरोजगारी, पारिवारिक समस्याएं, प्रवासन आदि. सरकार लगातार इस दिशा में काम कर रही है. लेकिन फिर भी इस समस्या का समाधान कम होने की वजह और ज्यादा बढ़ रहा है अगर हम कर्नाटक राज्य की बात करें तो यहां भी सैकड़ों बच्चें सड़कों पर रहते हैं. केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी ने लोकसभा में चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक, 15 फरवरी 2020 तक, कर्नाटक में करीब 105 बच्चें बिना सहारे के अकेले सड़कों पर रह रहे हैं. वैसे सबसे ज्यादा 270 बच्चे उत्तर प्रदेश में और उसके बाद तमिलनाडु में 120 बच्चे सड़कों पर जीने को मजबूर हैं.मंत्री स्मृति ईरानी ने लोकसभा में जवाब देते हुए कहा कि आंकड़े ‘बाल स्वराज पोर्टल’ के सहयोग से तैयार किए गये हैं. इन आंकड़ों के अनुसार,  कर्टनाटक राज्य में लगभग 635 गलियों के बच्चे दिन में सड़कों पर रहते हैं और रात में घर वापस आ जाते हैं, जबकि 466 बच्चे अपने परिवार के साथ सड़कों पर रहते हैं. कर्नाटक राज्य में कुल 1,206 बच्चों की पहचान स्ट्रीट चिल्ड्रन के रूप में की गई है. दक्षिणी राज्यों में, स्ट्रीट चिल्ड्रन के मामले में कर्नाटक के बाद तमिलनाडु का नंबर आता है, जहां पर 1,703 स्ट्रीट चिल्ड्रन की पहचान की गई है.

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