बिहार की शिक्षा व्यवस्था क्यों बना रही है बिहार के छात्रों को मानसिक दिव्यांग।

सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार : शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार में सम्मिलित है दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016 की सबसे बड़ी विशेषता है शिक्षा के अधिकार में सबको समानता का अधिकार मिलेगा और 21वीं सदी का नारा भी है नॉलेज इज द पावर फिर क्यों बिहार की शिक्षा व्यवस्था छात्रों को मानसिक दिव्यांग क्यों बना रही है एक तरफ तो दिव्यांगता को समाप्त करने के लिए लाख योजनाएं बनाई जाती है उसमें से एक योजना है की शिक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य पर भी बल दिया जाएगा नियमित रूप से छात्रों की स्वास्थ्य की जांच होगी कोई कमी पाए जाने पर उसके रोकथाम का उपाय किया जाएगा लेकिन परिस्थिति इसकी बिल्कुल विपरीत आखिर करोड़ों रुपया जो इस योजना के नाम पर केंद्र सरकार और राज्य सरकार प्रत्येक वित्त वर्ष में खर्च करता है वह कहां खर्च हो रहा है यह सोचने की बात है सभी जानकारी विस्तार पूर्वक इस प्रकार है बिहार के स्कूलों में बढ़ रही मानसिक दिव्यांग बच्चों की संख्या दिव्यांगता प्रमाण पत्र और यूडीआईडी कार्ड बनाने में इन चिकित्सकों की है जरूरत सूबे के स्कूलों में मानसिक दिव्यांगों की संख्या बढ़ रही है। पिछले दो वर्षों में मानसिक हुई है। वर्ष 2021 में राज्यभर में जहां 25 हजार 207 मानसिक दिव्यांग बच्चे नामांकित थे, वहीं 2022 में इनकी संख्या 44 हजार 578 हो गई।हालांकि वर्ष 2019-2020 और 2020-2021 में कोरोना संक्रमण के कारण स्कूल बंद के दौरान बच्चे चिह्नित नहीं किए गए। इधर, बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की मानें तो मानसिक दिव्यांग बच्चे स्कूल तो जाते हैं, लेकिन उन्हें पढ़ाने और उनकी मानसिक स्तर को समझने के लिए कोई 25 हजार 207 मानसिक दिव्यांग बच्चे नामांकित थे 2021 में मानसिक दिव्यांग छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसके लिए पटना जिला में कई केंद्र बनाये गये है। पटना जिला के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एक मनोचिकित्सक है, जिन्होंने यूडीआईडी कार्ड बनाने में सहयोग दिया है।अमित कुमार, डीईओ पटना विशेष शिक्षक नहीं हैं। दूसरी तरफ समग्र शिक्षा के तहत स्कूलों में कुल 44578 मानसिक दिव्यांग बच्चों का नामांकन है और इनके इलाज के लिए,दिव्यांगता प्रमाण पत्र बनाने वाले विशेष डॉक्टर राज्यभर में कुल संख्या जेनरल सर्जन 200 आर्थोपेडिक 70 ईएनटी स्पेशलिस्ट 52 आई स्पेशलिस्ट 10 मनोचिकित्सक पिछले छह साल में मानसिक दिव्यांग बच्चों का नामांकन सत्र 2016-17 कुल मानसिक दिव्यांग 57767 सत्र 2017-18 मानसिक दिव्यांग 50915 सत्र 2018-19 मानसिक दिव्यांग 51858 सत्र 2019-2020 मानसिक दिव्यांग 29390 सत्र 2020-2021 मानसिक दिव्यांग 25207 सत्र 2021-2022 मानसिक दिव्यांग 44578 स्कूलों में मनोचिकित्सक का अभाव स्कूलों में मनोचिकित्सक का काफी अभाव है। इससे इन बच्चों की न तो काउंसिलिंग होती है और न ही इलाज होता है। यह स्थिति किसी एक स्कूल की नहीं है बल्कि राज्यभर के 72 हजार प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक स्कूलों की है। बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की मानें तो भोजपुर में छह, मधुबनी में एक और वैशाली में एक मनोचिकित्सक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कार्यरत हैं। इसके अलावा किसी भी जिला स्तर पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में मनोचिकित्सक नहीं हैं। कोई इंतजाम नहीं है।यही नहीं विशेष चिकत्सकों की कमी के कारण इनका दिव्यांगता प्रमाण पत्र और यूडीआईडी कार्ड भी नहीं बन रहा है। बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की मानें तो राज्य में कुछ विशेष चिकित्सकों को ही दिव्यांगता प्रमाण पत्र और यूडीआईडी कार्ड बनाने का अधिकार है। इसमें जेनरल सर्जन, आर्थोपेडिक, आई स्पेशलिस्ट, ईएनटी और मनोचिकित्सक शामिल हैं। ये सभी सरकारी होने चाहिए, एक तरफ तो सरकारी अस्पताल के चिकित्सा पदाधिकारी को दिव्यांग प्रमाण पत्र बनाने का अनुमति दिया जाता है और जब अपने ही बात में यह पदाधिकारी है ऐ अधिकारी गिरते नजर आते हैं तो लिखित सर्कुलर को भी वह झूठ लाने लगते जो संविधान में लिखित है वर्णित है पारित है जिसे भारत का प्रत्येक दिव्यांग व्यक्ति पड़ सकता है उसको झूठ लाने में लग जाते तो हमारी शिक्षा व्यवस्था किस दिशा और दशा मैं जा रही है यह सोचने की बात है क्या इसी तरीके से शिक्षा का मौलिक अधिकार भारत का प्रत्येक छात्रों को मिल पाएगा और क्या इससे समाज का कल्याण हो पाएगा सोचने की बात है।

Check Also

हॉस्पिटल का परिभाषा है भ्रष्टाचार।

🔊 Listen to this सर्वप्रथम न्यूज सौरभ कुमार : स्वास्थ्य विभाग के मिशन 60 और …