अब तारीख पर तारीख देने की प्रथा खत्म करने का निर्देश दिया सुप्रीम कोर्ट ने ।

सर्वप्रथम न्यूज़ सौरभ कुमार :जस्टिस एमआर शाह और एएस बोपन्ना की पीठ ने नाराजगी जताई. पीठ ने कहा कि अब वक्त है वर्क कल्चर को बदलने का. कोर्ट ने कहा कि बार-बार के स्थगन से कानूनी प्रक्रिया धीमी होती है. ऐसे में न्याय वितरण प्रणाली में विश्वास बहाल करने की कोशिश की जानी चाहिए, जिससे कानून के शासन में विश्वास बना रहे.न्यायमूर्ति शाह ने इस संबंध में फैसला देते हुए कहा कि कई बार बार बेईमान वादियों की बार-बार सुनवाई टलवाने की रणनीति से दूसरे पक्ष के न्याय में देरी होती है. बार-बार स्थगन से वादियों का विश्वास डगमगाने लगता है. न्याय प्रशासन में लोगों के विश्वास को मजबूत करने के उद्देश्य के लिए अदालतों को बार-बार कर्तव्यों का पालन करने के लिए कहा जाता है. कोर्ट ने कहा कि कोई भी प्रयास जो न्याय व्यवस्था में आम आदमी के विश्वास को कमजोर करता है, उसे रोका जाना चाहिए.अब मामलों पर बार-बार स्थगन नहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसलिए अब अदालतें नियमित रूप से मामलों पर स्थगन नहीं देंगी और न्याय में देरी के लिए जिम्मेदार नहीं होंगी. पीठ ने कहा कि एक कुशल न्याय व्यवस्था लाने और कानून के शासन में विश्वास को बनाए रखने के लिए अदालतों को मेहनत करनी चाहिए. मामलों पर अदालतों को समय पर कार्रवाई कनरी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों को वादियों के प्रति अपने कर्तव्यों को ध्यान में रखना होगा. जो न्याय के लिए आए हैं और जिनके लिए अदालतें उन्हें समय पर न्याय दिलाने का प्रयास होना चाहिए.सालों से चली आ रही परंपरा तोड़ें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्याय वितरण प्रणाली में सालों से चली आ रही इस अदम्य स्थगन संस्कृति के चलते वादियों का फास्ट ट्रायल का अधिकार मायावी हो गया है. न्यायमूर्ति शाह ने कहा, इस तरह की देरी, लंबी रणनीति, बार-बार स्थगन की मांग करने वाले वकीलों और अदालतों द्वारा यंत्रवत और नियमित रूप से स्थगन देने के कारण बढ़ रही है. सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा कि इस तरह की प्रणाली अपनाए जाने से न्याय व्यवस्था पर विश्वास कमजोर होता है. अब ‘तारीख पर तारीख’ नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- सुनवाई को टालने के अनुरोध को न मानें अदालतें ।

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